अड़ियल रुख पर है सरकार और किसान

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केंद्र सरकार के कृषि कानून को लेकर जहां किसान सरकार की दलील नहीं समझ रहे वहीं किसानों के तर्क भी सरकार सुनने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि किसान एक माह से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलित है, तो सरकार भी गांवों में जाकर अपने तीनों कानून का महत्व समझाने का अभियान चला रही है। इस आंदोलन में आग में घी का काम कर रहे है नेताओं व मीडिया के व्यंग जो आंदोलित किसानों के ऊपर कसे जा रहे हैं। कोई कहता है कि पिज्जा खाने वाले, जींस पहने वाले, डीजे पर डांस करने वाले किसान हो ही नहीं सकते। जैसे ये व्यंग के तीर किसानों पर छोड़े जाते हैं किसानों में आंदोलन के प्रति उत्साह बढ़ जाता है। इसका परिणाम हमें अंबाला में हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर की गाड़ी को घेरना जींद के इकलौना में उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का हेलीकाप्टर उतरने से पहले हेलीपैड़ को खोदना, आंदोलन में आते किसानों प्रशासन द्वारा रोकने पर आंदोलित किसानों का सड़क पर जाम लगाना आदि घटनाएं देखने को मिल रही हैं। अनुमान है कि आंदोलन जितना लंबा होता जाएगा वह उतना ही ताकतवर होता जाएगा।

शुक्रवार को जहां पीएम मोदी ने किसान समान निधि ट्रांसफर करने के मौके पर अस्सी मिनट में से बीस मिनट किसानों से उनके मुद्दे पर बात करते हुए विश्वास दिलाना चाह कि सरकार उनका अहित नहीं होने देगी। पीएम का दावा है इस सरकार ने कानून बनने के बाद किसानों से एमएसपी पर रिकार्डतोर फसलें खरीदी। पीएम शुरू से ही यह कह रहे हैं कि किसान अपनी उपज को अपनी मजीं के अनुसार कहीं भी बेच सकता है, उसकी फसल हीं भी एमएसपी से कम पर नहीं खरीदी जाएगी, लेकिन इस पर यदि सरकार शुरू में ही लिखित वादा करती या एमएसपी को कानूनी दर्जा दे देती तो किसानों का गुस्सा अब तक शांत हो जाता, इस मुददे पर सरकार अडिय़ल रुख अपनाए हुए है। यही कारण है अब किसान का गुस्सा बढ़ रहा है। इसका ताजा उदाहरण शुक्रवार को पंजाब के कई शहरों में कानूनों के विरोध में किसानों ने प्रदर्शन किया। यही नहीं, आक्रोशित किसानों ने पंजाब के मलोट, संगरूर, फिरोजपुर, मोगा, पट्टी, छेहरटा समेत कई जगहों पर रिलायंस जियो के टावरो की बिजली काट दी है। और लुधियाना के एक पेट्रोल पंप को भी घेर लिया है। काशीपुर में रोकने का विरोध करते हुए किसानों एक पुलिस अधिकारी पर टैक्टर चढ़ाने का प्रयास किया।

हरियाणा के किसानों ने भी तीन दिन तक टोल फ्री रखने का ऐलान कर दिया है, जिससे सरकार को काफी आर्थिक हानि पहुंचाने का मकसद है।। एक प्रश्न यह उठता है कि सरकार व किसान एक दूसरे की दलीलों को क्यों नहीं मान रहे हैं। इन कृषि कानूनों को किसान हित में दावा करने वाले सरकार व उसके प्रतिनिधियों को आशंका है कि विपक्षी पार्टियों ने भाजपा की छवि को धुमिल करने के लिए किसानों को गुमराह करते हुए भड़काया है। इसलिए आंदोलित किसान सरकार की वार्ताओं को ठुकरा रहे हैं। सरकार द्वारा किसानों को वार्ता का बार-बार का आफर देना व किसानों का ठुकराना, इस बात को दर्शाता है कि किसान कानून रद से कम पर पीछे नहीं हटने वाले हैं। भाकियू नेता बलबीर सिंह प्रधान का कहना है कि सरकार अब भी गोल-मटोल बातों में उलझाना चाहती है तथा वार्ता के लिए अलग-अलग बुलाकर यूनियन में फाड़ करना चाहती है जो किसानों को मंजूर नहीं है। किसान नेताओं का शुरू से ही कहना है कि एमएसपी को कानूनी दर्जा देने व इन तीन कानून को रद करने से कम पर वह आंदोलन रद नहीं करेंगे।

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