कोरोना की वजह से देश व दुनिया में भले ही कितना ज्यादा नुकसान पहुंचे मगर मेरा मानना है कि इससे कुछ ऐसे लाभ भी हौ जिनकी हम कभी कल्पना नहीं कर सकते हैं। समाचार चैनलो पर बताया जा रहा है कि सारा काम ठप होने के कारण गंगा-यमुना सरीखी नदियां कितनी स्वच्छ हो गई। सड़को पर कूड़ा कम नजर आ रहा हैं। लोगों ने थूकना कम कर दिया है।
इस सबके बीच में मेरा मानना है कि सबसे बड़ी उपलब्धि पत्रकारो द्वारा अपनी ही बिरादरी के कुछ लोगों का सार्वजनिक रूप से अभिनंदन करना है। वे उनके बारे में ऐसी-ऐसी बातों का खुलासा कर रहे हैं कि आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे। मेरा अपना अनुभव यह रहा है कि कुछ होशियार पत्रकार जब नेताओं के बीच होते हैं तो पत्रकार हो जाते हैं व बाकी पत्रकारो के नेता बनकर अपना खेल करते हैं व उनसे संस्थाओं में अहम पद हथियाने की कोशिश करते हैं।
कुछ नेता तो हुजूर का लंगूर बनने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। ये पत्रकार पहले चिल्लाकर तथाकथित खुलासे कर अपने आप को स्थापित करते है और फिर सत्तारूढ़ दलों के नेताओं के आगे दुम हिलाने लगते है। हाल ही में ऐसे ही एक बुलडॉग माने जाने वाले पत्रकार का खुलासा शुरू हुआ। उनके बारे में कुछ लिखने के पहले कानपुर से किसी परिचित द्वारा भेजी गई एक वीडियो का जिक्र करना जरूरी हो जाता है। यह नेता अपनी भाभी से कह रहा है कि भौजी तुम को तो भैया को छोड़कर किसी चैनल की एंकर बन जाना चाहिए।
वह पूछती है वो कैसे? देवर कहता है कि एंकर बनने के तुम्हारे अंदर सारे गुण है। तुम बहुत बदतमीजी के साथ सामने वाले पर चढ़ बैठती हो। जो जिस चीज के विशेषज्ञ है उन्हें तक नहीं बोलने देती हो व अपना ज्ञान देती रहती हो। बार-बार यह कहकर सामने वाले पर हावी होने की कोशिश करती हो कि दुनिया आज यह जानना चाहती है कि किसी विषय के बारे में जरा भी ज्ञान न होने के बावजूद उसकी विशेषज्ञ की तरह से व्यवहार करती हो। अगर कोई खबरिया चैनल तुम्हे देखते तो हाथो-हाथ अपनी एंकर बना देगा।
दरअसल कुछ पत्रकारों को अपने बारे में बहुत गलतफहमी होती है। उन्हें लगता है कि वे तो आम आदमी से अलग है। एक घटना याद आ जाती है। जब पंजाब में आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर था व स्वर्ण मंदिर में आपरेशन ब्लैक थंडर चल रहा था तो रात को हम कुछ पत्रकार दो-दो पैग लगाने के बाद स्वर्ण मंदिर के पास घूम रहे थे। वहां तैनात सीआरपीएफ के एक जवान ने वहां से हमें तुरंत हट जाने को कहा। हममें से एक ने कहा कि आपको पता नहीं कि हम लोग पत्रकार है। इस पर उस जवान ने हमारा उपहास करते हुए कहा, तो क्या पत्रकार होने के कारण गोली तुम्हे लगने के पहले तुम्हारा पहचान पत्र देखेंगी। वह ठीक था व उसने हमें हमारी हैसियत याद करवा दी थी।
जिन पत्रकार महोदय का इन दिनों सार्वजनिक अभिनंदन हो रहा है वे हुजूर के लंगूर रहे हैं। हमेशा सत्तारूढ़ दल के आगे उछल-कूद करते रहे। अपने अधीनस्थ पत्रकारो की मदद से जानकारी जुटाई व फिर उसके आधार पर दुहाई की। इतनी ज्यादा कि मुंबई के पॉश इलाके में करोड़ो रुपए का फ्लैट खरीद लिया और कुछ खास लोगों को नंगा करके अपनी ईमानदारी व पत्रकारिता स्थापित करने की कोशिश की। पहले एक बड़े चैनल में नौकरी हासिल की व उसका प्रमुख बन जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज तक को नहीं बख्शा व उनके खिलाफ उलजूलल टिप्पणी की।
एक रिटायर प्रतिष्ठित जज ने उनके खिलाफ सैकड़ो करोड का मान-हानि का दावा किया व परिणाम स्वरूप उनके संगठन ने उनकी छुट्टी कर दी पर उसने स्वतंत्र पत्रकारिता की रक्षा के नाम पर अपना इस्तीफा देने का दावा किया व एक उद्योगपति को सब्जबाग दिखाकर एक नया चैनल शुरू करवाया। उन्होंने जान लिया था कि केंद्र में सत्ता परिवर्तन होने वाला है। उनकी हरकतो से वाकिफ नए नेताओं ने उन्हें जरा भी लिफ्ट नहीं दी व जब उन्होंने उसके नेता का इंटरव्यू लिया तो बुलडॉग भी उसके सामने पोमेरेनियन कुत्ते की तरह दुम हिलाते रहे।
सत्ता में आने के बाद उन्होंने अपने पूरे चैनल से यह साबित करना चाहा कि दूरदर्शन को भी सरकार की कोई जरूरत नहीं है। जिन नेताओं को गालियां देते थे उनके पद संभालने के बाद अपने चैनल पर उनका इंटरव्यू करते हुए उनके जूते चाटने लगे। उन्हें लगता था कि एक दिन अपनी फितरत के कारण वह उनकी जमीन चाटने का भी इंतजाम कर लेंगे। मगर यह नेता भी कुछ कम नहीं थे क्योंकि उन्होंने कई बार अपने करीब होने का दावा करने वाले पत्रकार को औकात बोध करवाया। अब वे कांग्रेस को गालियां देने लगे। एक शहर में गाड़ी से आते समय इंक फेंके जाने की घटना के लिए सोनिया गांधी पर उनसे बदला लेने का आरोप लगाने लगे।
विरोधी पत्रकार तो मानो दुर्योधन बन गए व अंडरवियर न पहनने वाले इस संपादक की पेंट उतार कर रख दी। कुछ ने तो ईर्ष्यावंश पुलिस स्टेशन पर पूछताछ के दौरान उनकी पेंट गीली हो जाने की तस्वीर सार्वजनिक कर दी। इस संपादक का दावा था कि जब वह पुलिस थाने गया तो पुलिस वालो ने उससे 12 घंटे तक पूछताछ की। इसके जवाब में पुलिस ने कहा कि हम क्या करते क्योंकि 11 घंटे 55 मिनट तक इस पत्रकार ने अपना बोलना जारी रखा व हमें पूछताछ के लिए मात्र 5 मिनट का ही समय मिला।
लोग पूछ रहे हैं कि इतनी बडी कंपनी में चाहिए इतनी बड़ी पूंजी कहा से आई क्योंकि जब यह पत्रकारिता करने दिल्ली आया था तो हमेशा दूसरे पत्रकारो से लिफ्ट लेकर कांग्रेस के दफ्तर में उसके नेताओं के यहां जाता था। कहावत है कि खुदा अपने गधे को पेप्सी पिलाता है व पिज्जा खिलाता है। यहां तो खुद खुदा ने ही इस गधे को दुलत्ती मार कर अलग-थलग कर दिया।
विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)