सीबीआई जांच की आंच से ही सांच

0
287

अलीगढ़ में ठेके से खरीदी गई जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या एक सौ से ऊपर हो गई है। अब तक निकलकर आ रही जांच और आरोप प्रत्यारोप में आबकारी , प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत सामने आई है। ऐसे में चल रही जांच से सच्चाई सामने आने की उम्मीद नहीं है। जरूरी है कि पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच कराई जाए। यदि ऐसा न हुआ तो अधिकारी मामले को दबा लेंगे। मृतकों को न्याय नही मिल पाएगा। आरोपी छूट जाएंगें। जांच करने वाले एडीएम का कहना है कि अब तक जांच में आया कि 521 सरकारी ठेकों में से 351 पर ये जहरीली शराब बिक रही थी। यह भी पता चला है कि इस नकली शराब बनाने वालों की पूरी फैट्री चल रही थी। उधर अपर मुख्य सचिव आबकारी संजय भूस रेड्डी ने इन मौत के लिए अलीगढ़ के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को जिम्मेदार बताया है। उनका आरोप है कि जिस फैट्री की शराब पीने से ये कांड हुआ है।इसी की बनी मिथाईल एल्कोहल पीने से 2009 में भी नौ लोग मर चुके हैं।

उनका ये आरोप बहुत गंभीर है कि फैट्री चलाने वाले अनिल चौधरी और उसके भाई सुधीर चौधरी के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी। इसे 2011 में तत्कालीन एसएसपी सत्येंद्रवीर सिंह ने बदलवा दिया था। दोनों का नाम भी बाहर कर दिया। इसके बाद फिर से जहरीली शराब बनाने की फैट्री चलने लगी। श्री भूस रेड्डी ने कहा कि 2011 में अनिल चौधरी और सुधीर चौधरी को जेल से जमानत मिल गई। दोनों ने फिर से शराब का कारोबार बढ़ाया । इसे डीएम-एसपी जैसे जिले के प्रशासनिक अफसरों का संरक्षण मिला। 2009 से लेकर आज 2021 तक उस जिले में तैनात होने वाले सारे डीएम-एसपी ने अनिल के इस शराब कारोबार को संरक्षण दिया। अगर एक भी अफसर ने इन पर कार्रवाई की होती तो आज 100 से ज्यादा लोगों की जान नहीं जाती।भूसरेड्डी का कहना है कि इंक बनाने और दूसरे केमिकल उत्पाद के नाम पर लिए गए लाइसेंस वाली फैट्रियों में मिथाइल से शराब बनाई जा रही थी। जिले में डीएम ही लाइसेंसिंग अथार्टी होता है और पुलिस ऐसी गतिविधियों पर इंफोर्समेंट की कार्रवाई करती है।

भूसरेड्डी प्रदेश के महत्वपूर्ण अधिकारी हैं। उनका आरोप महत्वपूर्ण है। पिछले बारह साल के प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता के लिए जरूरी हो गया है कि इस पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच कराई जाए। जांच में श्री भूस(रेडड़ी द्वारा लगाए आरोप भी शामिल हों।इस पूरे प्रकरण में एक बात और निकल कर आ रही है कि ठेकों से बिकने वाली नकली शराब पर सरकार को टैस भी नहीं मिल रहा था। आबकारी से सरकार 560 प्रतिशत के आसपास टैस लेती है। नौ रुपये के आसपास फैट्री से चले 200 ग्राम के शराब पव्वे पर 56 से 58 रुपये के आसपास टैस है। अपर मुख्य सचिव आबकारी भूस रेड्डी के अनुसार 12 साल पूर्व हुई नौ मौत में कार्रवाई न होना, रिपोर्ट मुख्य आरोपी के नाम निकल जाना, 12 साल तक इस फैट्री का चलते रहना बड़ी साजिश को बता रहा है। यह भी बता रहा है कि इस प्रकरण में आबकारी ही नहीं 12 साल में यहां तैनात प्रशासनिक और पुलिस के बड़े अधिकारी और उनका अमला जिम्मेदार है।

12 साल से चल रही शराब फैट्री में राजनैतिक लोगों की संलिप्तता न हो , इससे इन्कार नहीं किया जा सकता। इतने लंबे समय से चल रहे इस उद्योग के राजनैतिक संरक्षण की भी जांच होनी चाहिए। प्रकरण में अभी तक आबकारी के ही अलीगढ़ से लखनऊ तक के अधिकारी ही निलंबित हुए हैं। अलीगढ़ के समाजवादी पार्टी कार्यकर्ता इस पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच की मांग कर रहे हैं। सांसद भी सतीश गौतम भी जिम्मेदार अधिकारियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे है। पूर्ण गुणवत्तायुक्त समझकर सरकारी ठेके से खरीदी गई शराब से हुई मौत अलग तरह का मामला है। इस मामले की जड़ तक जाने , सही आरोपियों और उनके संरक्षणदाताओं का पता लगने और उनपर कठोर कार्रवाई होने की जरूरत है। अलीगढ़ प्रशासन की जांच में इस पूरे प्रकरण की तह तक पंहुचना संभव नही है। इसके लिए इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच होनी ही चाहिए। कोई आयोग भी बनना चाहिए जो यह पता लगाए कि इस तरह के केस को कैसे रोका जाए?

अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here