सशक्त होता किसान आंदोलन

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गणतंत्र दिवस पर हुड़दंगियों द्वारा की गई शर्मनाक घटना के बाद लगने लगा था कि किसान आंदोलन अब ज्यादा दिन नहीं चलेगा। उम्मीद लग रही थी कि केंद्र सरकार अपनी शति के बल पर इस आंदोलन को एक-दो दिन में खत्म करा सकती है। क्योंकि सरकार ने आंदोलित किसानों के शिविरों की लाइट काटने के अलावा भारी मात्रा में पुलिस बल को तैनात किया था और बसों को आंदोलन स्थल पर भेजना शुरु कर दिया था। गुरुवार की रात पुलिस बल की मौजूदगी व स्थानीय लोगों द्वारा आंदोलन का विरोध करना ये दर्शा रहा था कि रात में कभी भी आंदोलन खत्म कराने की कार्रवाई हो सकती है। ऐन वत पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवता राकेश टिकैत का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें उनका यह कहना कि वह जान तो दे सकते हैं लेकिन आंदोलन रद नहीं कर सकते। उनके इस भावुक वतव्य से आंदोलन पलटी मार गया। जो लोग आंदोलन से चले गए थे क्या घर जाने की तैयारी तैयारी कर रहे थे, उनमें एक उत्साह झलका, सहसा वह आंदोलन में जान फूंकने को तैयार हो गए। राकेश टिकैत के इस वीडियो से न केवल आंदोलन स्थल पर मौजूद किसानों पर असर पड़ा बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन किसानों पर भी प्रभाव पड़ा जो अभी तक घर पर रहकर खेती बाड़ी देख रहे थे।

राकेश टिकैत के भावुक होने से उनके बड़े भाई नरेश टिकैत ने अपने पैतृक गांव सिसौली में किसानों की पंचायत आयोजित करके न केवल दिल्ली के आंदोलन को मजबूती देने का संकल्प दिलाया, बल्कि शुक्रवार को मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कालेज के मैदान में जुटने का आह्वान किया। टिकैत बंधुओं की सक्रियता के चलते आंदोलन में फिर से जान पड़ गई। आंदोलित किसानों ने लालकिले की घटना को लेकर शनिवार को एक दिन का उपवास रखने का प्रण लिया है। इससे लग रहा है कि किसान अब आंदोलन को नई दिशा देना चाहते हैं, उनका प्रयास होगा कि जनता के द्वारा जैसी सहानुभूति उन्हें गणतंत्र दिवस से पहले मिल रही थी वैसी ही आगे भी मिलती रहे। इस उपवास से किसान देश को यह संदेश देना चाहते हैं कि वह हिंसक नहीं है, यदि वह हिंसा चाहते तो अब से पहले भी कर सकते थे। वह इस आंदोलन को केवल अहिंसा के मार्ग पर चलकर चलाना चाहते हैं। यदि किसान अपने आंदोलन को सफल बनाने में कामयाब हो जाते हैं तो सरकार इन आंदोलनकारी किसानों से कैसे निपेटेगी।

क्योंकि किसानों का उद्देश्य कानून वापसी व एमएसपी को कानूनी दर्जा दिलाना है। जो सरकार किसी भी सूरत में नहीं करना चाहती है। ये सवाल भी समय के गर्भ में है कि सरकार अपनी जिद छोड़ेगी या किसान अपनी मांग। बरहाल, गणतंत्र दिवस की घटना के बाद किसान अपने इरादों से पीछे हटते नहीं दिखाई दे रहे हैं। अब सरकार कौन सा हथकंडा अपनाएगी जिससे वह इन किसानों को बिना मकसद के घर भेज सके। जिस तरह से मुजफ्फरनगर में नरेश टिकैत के आह्वान पर महापंचायत का आयोजन किया गया और नरेश की एक हुंकार पर पूरा मैदान किसानों की भीड़ से खचाखच भर गया पूरे दिन पंचायत होती रही उससे लग रहा है अब किसान अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो चुका है। वह कानून वापसी से कम पर नहीं मानने वाला। एक बात यह भी काबिल गौर है कि आंदोलन जितना लंबा चलेगा और सरकार जितना दमन करना चाहेगी ये उतना ही मजबूत होगा।

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