घर-घर पहुंचकर भी सवालों में घिरी ‘उज्ज्वला’

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सरकार ने मई 2016 में मुल्क के गरीब परिवारों के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना शुरू की थी और तीन सालों में इस योजना के तहत आठ करोड़ से अधिक गैस कनेक्शन बांटे जा चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस महत्वाकांक्षी योजना का मकसद पूरे भारत में स्वच्छ ईधन को बढ़ावा देना है। स्वच्छ ईंधन के जरिए सरकार महिलाओं व छोटे बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा का लक्ष्य साधना चाहती है। जो बीमारियां खाना बनाने के लिए उपयोग में आने वाले ईंधन यानी लकड़ी, कोयला, उपले आदि के जलने से होती हैं, उज्ज्वला योजना से उनमें कमी आने की उम्मीद की गई। प्रधानमंत्री मोदी ने कई चुनाव रैलियों व सार्वजनिक भाषणों में उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों की भारी संख्या बताई जिससे उनकी व एनडीए सरकार की अच्छी छवि बनी। माना गया कि यह महिलाओं व बच्चों की फिक्र करने वाली सरकार है। मगर क्या एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराना ही इस योजना को सफल साबित करने के लिए काफी है ? इस योजना से देश में अधिकतर घरों की स्वच्छ ईंधन तक पहुंच तो हो गई है, मगर एलपीजी सिलिंडर का इस्तेमाल स्थायी रूप से नहीं हो पा रहा है।

इसका बोझ झेलने की असमर्थता अभी भी समस्या बनी हुई है। हाल ही में आई एसबीआई इकोरैप रिपोर्ट बताती है कि एलपीजी सिलिंडर की बढ़ती कीमतें प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को लकड़ी, कोयला जैसे अशुद्ध ईंधन का इस्तेमाल करते रहने को मजबूर कर रही हैं। वास्तविक स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लाथार्थियों में से तकरीबन 25 प्रतिशत (24.6) यानी एक चौथाई ने दोबारा कभी सिलिंडर नहीं भरवाया। 17.9 प्रतिशत ऐसे लाभार्थी रहे जिन्होंने सिर्फ एक या दो बार सिलिंडर भरवाया। तीन बार सिलिंडर भरवाने वालों का प्रतिशत 11.7 है। चार या अधिक भरवाने वालों की संख्या 45.8 प्रतिशत है। लेकिन 45.8 प्रतिशत वाले आंकड़े से यह सवाल जुड़ा है कि नियमित रूप से सिलिंडर भरवाने वाले इन लोगों ने वास्तव में इसका अपने घर में इस्तेमाल किया या सब्सिडी वाले इस सिलिंडर को महंगे भाव पर बाजार में बेच दिया। सब्सिडी और गैर सब्सिडी वाले गैस सिलिंडरों के भाव में अंतर इस संभावना को सिरे से खारिज करने से रोकता है।

गरीबी व सिलेंडर की खपत के सह संबंध को लेकर उपलब्ध आंकड़े खुलासा करते हैं कि देश के जिन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है, वहां दोबारा सिलिंडर न भरवाने वाले लाभार्थियों की संख्या अन्य राज्यों से अधिक है। ऐसा करने वाले सबसे अधिक लाभार्थी (52.3 प्रतिशत) छत्तीसगढ़ में हैं। उसके बाद त्रिपुरा, झारखंड, ओडिशा, असम और मध्य प्रदेश हैं। दो माह पहले दिसंबर 2019 में नियंत्रक एवं महालेखाररीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में चेताया था कि इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2018-19 में ग्रामीण घरों में सिलिंडर की खपत सालाना 3 पाई गई जबकि गैर लाभार्थी के यहां 6.7 थी। कैग ने अपनी रिपोर्ट में उज्ज्वला योजना के वितरण में हुई कई गड़बड़ियों की ओर सरकार, व्यवस्था व अवाम का ध्यान खींचा है।

इस योजना के तहत निधार्रित शर्तो में एक यह भी है कि आवदेन करने वाली महिला बीपीएल श्रेणी की हो और यह भी कि उसकी उम्र 18 साल से कम न हो। लेकिन कैग की रिपोर्ट बताती है कि नियमों की अनदेखी करते हुए करीब 8.59 लाख कनेक्शन नाबालिगों को दिए गए। इसके अलावा 1.88 लाख कनेक्शन पुरुषों के नाम पर दिए गए। इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी सिलिंडर कनेक्शन फ्री देने के लिए ढांचागत संरचना व सपोर्ट सिस्टम को बेहतर बनाया गया। एक लिहाज से यह सफलता भी कही जाएगी। मगर बदले हालात में आज एलपीजी सिलिंडर की उपलब्धता अपने आप में बड़ी बात नहीं रह गई है। गैस कीमतों में वृद्धि ज्यादा बड़ी समस्या बन चुकी है। चाहे सिलेंडर दोबारा न भरवाने की बात हो या भरवाने के बाद अपेक्षाकृत महंगी कीमत पर हलवाइयों को बेच देने की, दोनों स्थितियों में उज्ज्वला योजना की सार्थकता पर सवालिया निशान तो लग ही जाता है।

अलका आर्य
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार है ये उनके निजी विचार हैं)

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