सुप्रीम कोर्ट के आदेश व गणतंत्र दिवस की परेड में खलल डालने की आशंका के चलते अब किसानों की ट्रैक्टर मार्च पर भी संशय बना है। किसान दिल्ली के बाहर आउटर रिंग रोड पर ही तिरंगे के साथ ट्रैक्टर रैली निकालेंगे। किसान नेताओं का मानना है कि लालकिले से इंडिया गेट तक की जाने वाली परेड़ में शामिल होने से जहां परेड में खलल पड़ेगा वहीं यह गैरकानूनी दायरे में आता है। इससे लग रहा है कि किसान ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहते जिससे सरकार को यह कहने का मौका मिले कि ये किसान नहीं बल्कि खालिस्तानी हैं या विपक्ष के भड़काने पर आंदोलन कर रहे हैं। किसान नहीं चाहते कि परेड़ में कोई बाधा पड़े। हालांकि किसान अपनी परेड का रिर्हसल 19 जनवरी यानि आज से ही टिकरी बॉर्डर पर शुरू करेंगे। वैसे भी सरकार इस आंदोलन को भड़काने में विपक्षी पार्टियों विशेषकर कांग्रेस को दोषी ठहरा रही है। इसमें सोने पे सुहागा ये कि हरियाणा भाकियू के अध्यक्ष गुरनाम चढूनी पर आंदोलन के नाम पर विपक्षी पार्टियों के नेताओं को बुलाने व कांग्रेस के एक नेता से आंदोलन के नाम पर दस करोड़ रुपये लेने का गंभीर आरोप लगना, आंदोलन को कमजोर कर रहा है और सरकार के आरोपों को मजबूती दे रहा है।
हालांकि चढूंनी के खिलाफ संगठन ने एक कमेटी बनाकर जांच शुरू कर दी है जिसकी रिपोर्ट आगामी 20 जनवरी को मिलेगी, उसी के आधार पर गुरनाम चढूनी पर कार्रवाई हो सकती है। एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के परेड में शामिल होने के ऐलान वाले मामले की गेंद पुलिस के पाले में डाल दी है। कोर्ट का ये कहना कि कौन आएगा कौन नहीं यह पुलिस को तय करना है। ये काम कोर्ट का नहीं है। इस बात का संकेत है कि कोर्ट इस मामले में ज्यादा हस्तक्षेप करने के मूढ में नहीं है। कोर्ट चाहता है कि गाइड लाइन के अनुसार पुलिस ही सुरक्षा व्यवस्था करे, हस मुद्दे पर कोर्ट बीच में न पड़े। हालांकि 20 जनवरी को कोर्ट फिर सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस सहित जस्टिस एएस बोपन्ना व वी रामा सुब्रमण्यन का यह कहना कि परेड में सुरक्षा व्यवस्था पुलिस का काम है। इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि कोर्ट अपना मत देने की बजाय पुलिस को जिमेदारी बताना चाहता है। सरकार की ओर से आए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल का यह कहना कि यदि कुछ किसान परेड में शामिल होंगे तो सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित होगी, इससे लग रहा है कि सरकार चाहती है कि कोर्ट दखल देकर किसानों को परेड में शामिल होने से रोके।
आज सरकार व किसानों की एक बार फिर वार्ता होने जा रही है। इस वार्ता का नतीजा भी पिछली वार्ता के नतीजों से अलग होने की उमीद नहीं है। सरकार केवल मुददों पर वार्ता करना चाहती जबकि किसान कानून रद करने से कम पर नहीं मान रहे हैं। कहने का मतलब न सरकार अपनी जिद छोडऩा चाहती है और न ही किसान अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं है। अब किसान भी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के अंदर न जाकर दिल्ली के बाहर ही राष्ट्रीय ध्वज के साथ ट्रैटर रैली निकालने की रणनीति बना सकते हैं। उन्हें लग रहा है कि बिना आज्ञा के उनका शामिल होना परेड में विध्न डाल सकता है जो राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है। किसान संगठन अपना आंदोलन कानून के दायरे में करने का संकल्प लिए हुए हैं। वह नहीं चाहते कि उनके आंदोलन से राष्ट्र को क्षति पहुंचे। आज की सरकार के साथ विज्ञान भवन में बैठक व आगामी 20 जनवरी को कोर्ट की सुनवाई के बाद फैसले पर निर्भर होगा कि किसान आगे की या रणनीति बनाएंगे? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।