यह घोर अनुशासन में रहने का समय है। कई लोग कोरोना से बचने के लिए बने अनुशासन को अपनी निजी स्वतंत्रता से जोड़कर टिप्पणी कर रहे हैं। मास्क पहनना, भीड़ से बचना इन सबको अपनी निजी स्वतंत्रता पर प्रहार न मानें। यह हमारी ही सुरक्षा के लिए है। अनुशासन है, तो हम सुरक्षित हैं। कोई टीकाटिप्पणी से पहले समझें कि निजी जीवन होता क्या है? निजी जीवन का एक ही अर्थ है अपनी आत्मा का स्पर्श करना, उस पर टिकना। जब हम शरीर, मन और बुद्धि पर टिककर जीवन जीते हैं, उस समय निजी नहीं होते। तब हमारे जीवन में दूसरे होते हैं और हम भी दूसरों के होते हैं। ‘मेरी खुशी का मालिक मैं’ जब यह घोषणा की स्थिति में हों, तब हम निजी जीवन में होते हैं। तो अनुशासन में रहना, उसका पालन करना किसी भी प्रकार से निजी स्वतंत्रता का हनन नहीं है। चूंकि हम अधिकांश समय शरीर, बुद्धि व मन पर टिके रहते हैं, तो यहां दूसरे आएंगे ही, और जब दूसरे आएंगे तो खतरा लाएंगे। फिर दूसरों से खतरा लेकर हम उसे अपने लोगों तक पहुंचाएंगे। यदि खतरे की इस चेन को तोडना है, जिसे कोरोना एडवायजरी की भाषा में कहा गया है-‘संक्रमण की चेन’ तो इसका एकमात्र उपाय है अनुशासन। शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक रूप से अनुशासित हो जाएं और आत्मिक रूप से जाग्रत हो जाएं..। वरना कहीं यह खतरा फिर नए रूप में लौटकर न आ जाए।