वाइरस से लड़ने में लापरवाही

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हम भारत के लोग और हमारे हुक्मरान भी शुतूरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन गाड़ कर यह समझ रहे थे कि तूफान हमारा कुछ नहीं कर सकता है। हम तूफान को नहीं देख रहे हैं तो तूफान भी हमको नहीं देख रहा है। एक महीने पहले केरल में कोराना वायरस का पहला मामला सामने आया था। उससे सरकारों को एलर्ट होना चाहिए था, तैयारियां शुरू करनी चाहिए थी और लोगों को भी जागरूक करना चाहिए था। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहां तक नहीं हुआ कि देश की 130 करोड़ की आबादी को देखते हुए जरूरी संया में मास्क का उत्पादन होता और जरूरी दवाएं स्टोर की जातीं। अब जबकि कोराना वायरस का तूफान भारत पहुंच गया है तो आग लगने पर कुआं खोदने के अंदाज में इससे लडऩे के उपाय होने लगे हैं। सरकार ने इटली, जापान, ईरान और दक्षिण कोरिया के लोगों को जारी वीजा निलंबित कर दिया है। कई दवाओं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई है। अखबारों में बड़े विज्ञापन देकर बताया जा रहा है कि लोगों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। हकीकत यह है कि दो महीने से ज्यादा समय तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने का नतीजा यह हुआ है कि भारत कम से कम तैयारियों के मामले में बुरी तरह से बैकफुट पर पकड़ा गया है। जरूरत आने पर इस समय सामान्य क्वालिटी के मास्क भी नहीं मिल रहे हैं।

अच्छी क्वालिटी के मास्क की कीमत आसमान पर पहुंच गई है। अल्होकल युक्त जिस सैनिटाइजर को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने का अच्छा उपाय माना जा रहा है, उसकी उपलधता भी कम हो गई है। दवाओं की अभी से कमी होने लगी है। अस्पतालों की हालत भारत में वैसे भी बहुत अच्छी नहीं है और न अच्छी क्वालिटी के लैब हैं। सरकार अब लोगों को जागरूक कर रही है। यह काम अगर दुनिया के हालात को देखते हुए पहले किया गया होता तो आज ऐसी नौबत शायद नहीं आती। चीन की यात्रा से लौटे भारतीय को अगर पहले से पता होता कि वह संक्रमित हो सकता है तो वह अपनी जांच कराता न कि अपने बच्चे के जन्मदिन की पार्टी देकर उसमें शामिल होता। नोएडा के स्कूल को बंद करने की नौबत आई है तो कारण यही है कि पढ़े-लिखे और उच्च वर्ग के लोग भी इसे लेकर जागरूक नहीं थे। सोचें, भारत में संक्रमण की यह बीमारी निचले तबके से नहीं शुरू हुई है और वहां फैली है। यह उच्च वर्ग में फैली है। राजधानी दिल्ली के पांच सितारा होटल को बंद करने की नौबत आई है या दिल्ली और एनसीआर के सबसे महंगे स्कूल बंद हुए हैं। सोचें, जब इस वर्ग के लोगों को संक्रमण के बारे में पता नहीं था और वे जागरूक या तैयार नहीं थे तो आम लोगों के बारे में क्या कहा जा सकता है। अब जबकि इससे लडऩे की चुनौती आ गई है तब इसका दायरा बहुत सीमित दिख रहा है, जबकि जरूरत इस बात की है कि केंद्र और राज्यों की सरकारें पूरी ताकत से इसे रोकने का प्रयास करें। इसे बड़े पैमाने पर फैलने से रोकना पहली जरूरत है। इस वायरस की सबसे खास बात यह है कि इसका संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है और कई चीजों से फैल सकता है। जैसे लोगों के हाथ मिलाने से यह संक्रमण हो सकता है।

अगर किसी संक्रमित व्यक्ति ने किसी चीज को छुआ है तो स्वस्थ व्यक्ति भी उसे छूने से संक्रमित हो सकता है। संक्रमित व्यक्ति के बनाए खाने से या उसकी इस्तेमाल की गई किसी भी वस्तु से इसका संक्रमण हो सकता है। अभी कुल 77 देश इसकी चपेट में हैं पर यह तथ्य है कि आधे देशों यानी 38 देशों में इसका संक्रमण सिर्फ पांच दिन में पहुंचा है। दूसरे किसी भी वायरस के मुकाबले इसकी एक खास बात यह भी है कि इसके संक्रमण का अंदाजा तत्काल नहीं होता है। संभव है कि संक्रमित व्यक्ति को दो हफ्ते तक पता नहीं चले और वह अपने जुकाम, बुखार और गले में खराश को सामान्य मौसमी बीमारी समझता रहे। ध्यान रहे भारत में इस समय मौसम बदल रहा है और यह समय वैसे भी मौसमी बीमारियों वाला होता है। तभी संभव है कि बड़ी संया में लोग सामान्य खांसी, सर्दी, जुकाम से पीडि़त हों। अब उनके मन में भी संशय होगा कि उन्हें कोरोना वायरस का संक्रमण तो नहीं है। अगर ऐसे सारे लोग जांच के लिए भागते हैं तो अस्पतालों में बेवजह भीड़ बढ़ेगी और लोगों पर आर्थिक बोझ अलग पड़ेगा। और अगर नहीं जांच कराते हैं तो संभव है कि इन्हीं में से कोई कोरोना वायरस का संक्रमण निकल आए। सो, आम लोगों के लिए भी यह मुश्किल समय है।

वैसे चीन ने इससे निपटने के जैसे उपाय किए हैं उससे इतना तो पता चल गया है कि यह कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। यानी संक्रमण रोकना थोड़ा मुश्किल है पर संक्रमित व्यक्ति का इलाज संभव है। तभी कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में मौत का आंकड़ा दो फीसदी का है। 50 हजार के करीब लोग इलाज से ठीक हुए हैं। ध्यान रहे इससे पहले 2002-03 में जब सार्स का वायरस फैला था, तब उससे संक्रमित लोगों में मरने वालों का आंकड़ा नौ फीसदी था। लेकिन तब सिर्फ आठ सौ के करीब लोग मरे थे। अभी मरने वालों का आंकड़ा 32 सौ पहुंच गया है और संक्रमित लोगों की संया लाख में पहुंच रही है। इसका मतलब है कि इसके संक्रमण के फैलने की रफ्तार पहले के किसी दूसरे वायरस से कई गुना ज्यादा है। तभी लोगों को आगाह करना, जागरूक करना जरूरी है तो साथ-साथ जांच की व्यवस्था और इलाज के समुचित उपाय की भी जरूरत है। अगर तत्काल और युद्धस्तर पर ये उपाय नहीं किए गए तो भारत में इसकी महामारी चीन के मुकाबले बहुत ज्यादा घातक होगी।

(लेखक हरिशंकर व्यास वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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