मेरा मानना है कि दिक्कत में भगवान को याद करना लगभग वैसा ही होता है जैसे कि सिरदर्द होने पर सिरदर्द की गोली डिस्प्रिन या सेरोडान खाना। उसकी सिर्फ इतनी ही भूमिका होती है कि वह हमें दर्द महसूस नहीं होने देती है। हालांकि वह दर्द का स्थायी उपचार नहीं होता है। हाल ही में जब सरकार द्वारा कोरोना वायरस से लड़ने में होम्योपैथी की दवाई को अहमियत देते हुए देखा तो अपना एक विचार याद हो आया। अपना शुरू से मानना रहा है कि जीवन में हर तरफ से निराशा होने पर इंसान, इंसाफ मिलने के लिए पत्रकार होम्योपैथी की दवा व डाक्टर की शरण में जाता है। उसे यह भ्रम होता है कि यही लोग उसे अब इंसाफ दिला सकते हैं। जैसे कि हमारी हिंदी फिल्मो में भी होता है। जब हीरो या उसके परिवार का सदस्य बुरी तरह से फंस जाता है तो वह सहयता पाने के लिए सीधे मंदिर जाकर भगवान की मूर्ति के आगे गाना गाने लगता है और वे उसका कष्ट दूर करते हैं।
बंदूक की गोली भी उसे मार नहीं पाती है। अब जब सारी दुनिया कोरोना वायरस का ईलाज ढूढ़ने की कोशिश कर रही है तो भारत सरकार ने अपनी पूरी आस्था भगवान की तरह से होम्योपैथी पर जता दी है। सरकार के आयुष मंत्रालय ने कोविड के बचाव के लिए तमाम देश को आर्सेनिक एलबम-30 के इस्तेमाल की सलाह दी है। अब इस दवा को लेकर देश में यह विवाद पैदा होने लगा है कि इस बात का क्या प्रमाण है कि यह दवा कोविड से बचाव करती है व उसका कोविड-19 से बचाव के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।वैज्ञानिक खासतौर पर यह सवाल उठा रहे हैं कि सरकार के पास अपनी बात साबित करने के लिए क्या प्रमाण है। इस संबंध में जहां तमाम राज्य सरकारों ने सहमति जता दी है वहीं राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व केरल की सरकार ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। मगर मुंबई में अधिकारियों ने लोगों के बचाव के लिए वहां के दो वार्डो में इस दवा को बांटना शुरू कर दिया है।
लोग यह दवा खरीदने के लिए दुकानों पर पहुंचने लगे हैं। इसका भंडारण शुरू हो गया है व यह काफी महंगी भी बिकने लगी है।पहले तो इस दवा के बारे में जान लिया जाए। आमतौर पर माना जाता है कि आर्सेनिक एलबम-30 नामक दवा शरीर की जलन को कम करती है व इसको लेने से सर्दी जुकाम व खराब पेट ठीक हो जाते हैं। डाक्टर इसकी गोलियां मरीज को देते हैं जिससे मात्र एक फीसदी आर्सेनिक ही होता है। सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्योपैथी (सीसीआरएम) ने 20 जनवरी को यह सलाह दी थी कि यह दवा कोरोना रोग को रोकने में सहायक साबित हो सकती है। उसके अगले ही दिन आयुष मंत्रालय ने सभी राज्यो के मुख्य सचिवो की कोरोना रोग को रोकने के लिए इस दवा के इस्तेमाल करने के लिए पत्र लिखा क्योंकि इस मामले में उसे रक्षात्मक उपचार करने वाला बताया गया था। इस पत्र में कहा गया था कि यह होम्योपैथी दवा , हैजा इनफ्लूंजा, येलो फीवर, टायफाड सारी महामारियों से बचाव का काम करती पाई गई हैं।
पत्र में कहा गया था कि 2014 में इबोला रोग फैलने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस दवा के इस्तेमाल की सलाह दी थी क्योंाकि जहां एक ओर इसके फायदा पहुंचने का कोई प्रमाण नहीं वहीं इसके द्वारा नुकसान पहुंचाने की भी खबर नहीं है। जब तक कोरोना की कोई वैक्सीन न बन जाए तब तक इसे लेते रहने में कोई बुराई नहीं है। वैसे भी सरकार कोरोना के ईलाज के लिए निजी प्रैक्टिस करने वाले होम्योपैथी व आयुर्वेद के डाक्टरो में इसकी वैकल्पिक दवाओं के इस्तेमाल की इजाजत दे चुकी हैं। डब्ल्यूएचओ ने इसके इस्तेमाल के बारे में तो चुप्पी साध ली है। आयुष मंत्रालय ने तो सांस लेने की तकलीफ होने पर इस दवा के फायदा पहुंचाने के कारण इसके प्रमाण को हरी झंडी दिखाई है। डाक्टर मानते हैं कि हर मरीज पर इसका अलग-अलग असर होता है। वैसे होम्योपैथी के बारे में मेरी राय अलग है।
कभी वह फायदा कर जाती है तो कभी उसके नतीजो पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। जब मुझे दिल की बीमारी हुई तो मैंने होम्योपैथी का ईलाज भी करवाया। जोकि पहाड़गंज के एक जाने-माने बुजुर्ग डाक्टर करते थे। इस दौरान मेरे भतीजे की शादी हुई व घरवालों के दबाव में आकर मैंने अपने बाल काले करवा दिए। वे बाल काले करने की दवा भी दे रहे थे। एक दिन जब मैं उनके यहां दवा लेने गया तो डाक्टर साहब ने सभी बैठे मरीज को मेरे बाल दिखाते हुए कहा कि देखो मेरी दवा का कमाल। इसके सारे बाल काले हो गए व देखा इसका चेहरा कितना ग्लो (चमक) कर रहा है। मैंने शादी के दौरान नाई से फेशियल भी करवाया था। अगली बार जब दवा लेने गया तो डाक्टर के घर पर ताला लगा था। पड़ोसी ने बताया कि डाक्टरनॉबीमार पड़ गई थी अतः डाक्टर साहब उन्हें अस्पताल लेकर गए हैं।
विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)