ये हमारी खुशकिस्मती है कि कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए एक साल के अंदर ही देश के वैज्ञानिकों ने कोरोना का टीका तैयार करके देश को गौरांवित होने का अवसर दिया। शनिवार से ही इस अभियान की शुरुआत पीएम मोदी ने वर्चुअल बैठक करके की अपने संबोधन के दौरान उनकी आंखे भी छलक उठी शायद वह इस महान उपब्लधि के लिए हों। लेकिन इस टीकाकरण होती सियासत आम जनता के बीच भ्रम व खौफ पैदा कर रही है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी का यह कहना कि जनता में वैक्सीन के प्रति विश्वास पैदा करने के लिए राजनेताओं को पहली श्रेणी में टीका लगना चाहिए लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो रहा है। जबकि दुनिया के हर देश में वहां के लीडर्स ने टीका लगावाया। अमेरिका में प्रेसिडेंट इलेट जो बाइडेन और वाइस प्रेसिडेंट इलेट कमला हैरिस ने भी वैक्सीन लगवाकर। ब्रिटेन में वीन एलिजाबेथ और प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी टीका लगवाकर वहां की जनता में भरोसा पैदा करने का प्रयास किया जबकि भारत में हमारे राजनेता पीछे स्वास्थ्यकर्मी या सुरक्षाकर्मियों को आगे रखा गया है।
तिवारी के इस बयान से जनता में भ्रम व अफवाह जन्म ले रही हैं। इसके अलावा पहले दिन देश में सौ से अधिक साइड इफैट के मामले भी सामने आ चुके हैं। जिससे जनता में वैक्सीन के प्रति विश्वास डगमगा सकता है। हालांकि भाजपा सांसद डा. महेश शर्मा ने पहली पंति में ही टीका लगवाकर और वैक्सीन से किसी भी तरह का डर का अनुभव न करने की अपील कर लोगों में विश्वास पैदा करने का प्रयास किया। लेकिन एक मात्र सांसद के ऐसा करने से जागरूकता कैसे पैदा होगी? दूसरा सवाल यह पैदा होता है कि कोरोना फ्रंटलाइन वर्कर में केवल स्वास्थ्यकर्मी या सुरक्षाकर्मी ही हैं? हमारे नेता किस श्रेणी में आते हैं? हालांकि जहां पीएम मोदी ने वैक्सीनेशन के ऊपर प्रकाश डाला और भविष्य में इसे सफल बनाने की भी अपील की। गृहमंत्री अमित शाह व यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी बारी पर टीकाकरण कराने का विश्वास दिलाया। इसे भी सफलता ही कहा जाएगा कि पहले दिन 60 प्रतिशत लोगों को ही कोरोना वैक्सीन लगाई गई। सरकार ने पहले कहा था कि 3,006 जगहों पर 3 लाख 15 हजार 37 लोगों को टीका लगेगा।
हालांकि वैक्सीन की साइट्स तो बढ़कर 3351 हो गई थीं, लेकिन यहां एक लाख 91 हजार 181 को ही टीका लगाया जा सका। लेकिन जिस तरह से अकेले दिल्ली में 52 मामले साइड इफेट के सामने आए हैं ऐसी स्थिति में अफवाह व भ्रम के चलते जनता का विश्वास डगमगा सकता है। ऐसी स्थिति में देश वीआईपी लोगों को भी पहले चरण में टीकाकरण कराना चाहिए। क्योंकि सच्चाई के मुकाबले अफवाहें तीव्र गति से चलती है जिसका आम लोग आसानी से यकीन कर लेते हैं। जिस पर यदि नियंत्रण नहीं किया गया और जनता को वैक्सीनेशन के साइडइफैट होने का कारण नहीं बताया गया तो इससे लोगों में गलतफहमी की स्थिति बन सकती है। सरकार के अथक प्रयासों से शुरू हुआ टीकाकरण अभियान प्रभावित हो सकता है। हालांकि लगभग दो लाख लोगों में से यदि सौ लोगों को साइडइफेक्ट हुआ तो इसका दोष हमें वैक्सीन को नहीं देना चाहिए, क्योंकि बहुत से लोगों की प्रतिरोधक क्षमता वैसीन को सहन करने में कम हो, उन्हें साइडइफेक्ट हो गया हो। बरहाल आम लोगों को वैक्सीन पर विश्वास करते हुए इस अभियान को सफल बनाने में अपना योगीदान देना चाहिए, ताकि देश से महामारी को जड़ से मिटाया जा सके।