सफलता जागरूक व्यति का मुख्य उद्देश्य होता है। लेकिन सफलता हर किसी के हाथ नहीं लगती। काफी गौर करने पर महसूस हुआ कि अपने उद्देश्य में वहीं इंसान सफल होता है जो लग्नशील, परीश्रमी, मन और मस्तिष्ट को एकाग्र बनाए रखे। जो अपने मन में तय कर ले और उसके लिए दिन-रात परीश्रम करे तो सफलता उसके कदम जरूरत चूमती है। जो लोग केवल दिखावे के लिए कार्य करते हैं या उनका तन, मन और भटकता रहता है। तन कहीं हैं मन कहीं तो ऐसे व्यति को कभी सफलता नहीं मिल सकती है। लापरवाही इंसान की तरकी में रोढ़ा डालती है। कामयाबी हासिल करने के लिए अपने मन और तन को एकाग्र बनाए रखना जरूरी है।
इस बारे में स्वामी विवेकानंद जी का एक सीख वाला किस्सा याद आ रहा है। जिससे आज के वातावरण में भटके युवाओं को सीख मिलेगी। एक बार स्वामी विवेकानंद किसी देश में भ्रमण कर रहे थे। अचानक, एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने देखा पुल पर खड़े कुछ युवाओं को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगा रहे हैं। किसी भी युवक का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था। तब उन्होंने ने एक युवक से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे। उन्होंने अंडे पर पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगाए। फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 10 निशाने लगाए।
और सभी बिलकुल सटीक लगे, ये देख युवक दंग रह गए और उन्होंने पूछा कि स्वामी जी, भला आप ये कैसे कर लेते हैं? आपके सारे निशाने बिलकुल सटीक कैसे लग गए। स्वामी विवेकनन्द जी बोले असंभव कुछ भी नहीं है, तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उस समय उसी एक काम में लगाओ। अगर तुम किसी चीज पर निशाना लगा रहे हो तो तुहारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने निशाने के लक्ष्य पर होना चाहिए। तब तुम अपने लक्ष्य से कभी चुकोगे नहीं। यदि तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचों मेरे देश में बच्चों को यही पढ़ाया जाता है।
-एम. रिजवी मैराज