सरकार का सराहनीय प्रयास

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आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार योजना वाकई में काबिले तारीफ है। अब जरूरी है कि योजना का क्रियान्वयन उचित ढंग से हो। ऐसी योजना की जरूरत बहुत पहले से महसूस की जा रही थी। मनरेगा की शुरूआत जब तत्कालीन कांग्रेसनीत केन्द्र सरकार ने वामपंथियों के सुझाव पर की थी तो उक्त योजना का उद्देश्य भी यही था कि लोगों को स्थानीय स्तर पर एक न्यूनतम दिनों का रोजगार मिले। पहले मनरेगा देश के कुछ पिछड़े जिलों में लागू की गई थी। बाद में इसके सकारात्मक परिणामों को देखते हुए पूरे देश में लागू की गई। इस योजना का काफी अच्छा प्रभाव रहा। स्थानीय श्रमिकों का दूसरे प्रान्तों में प्रवास घटा। परन्तु इस योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार ने इसे प्रभावहीन बनाने में कोरकसर नहीं छोड़ी। सरकार ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के कई प्रयास किये परन्तु भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रहती हैं। इस योजना का लाभ केवल ग्रामीण क्षेत्रों के लाभार्थियों को मिलता है। हालांकि प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी व कांग्रेस ने आत्मनिर्भर योजना को लेकर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है। समाजवादी पार्टी ने इसे ड्रामा करार दिया है। सपा का कहना है कि भाजपा ने 1.25 करोड लोगों को रोजगार देने का ड्रामा किया है।

इसकी दूसरा मिसाल मिलना मुश्किल है। सपा का कहना है कि जब पहले से ही युवा बेरोजगार घूम रहा है तो दूसरे प्रदेश से आये युवाओं को रोजगार कहां मिल पायेगा। अन्तत: उन्हें फिर दूसरे प्रदेशों में रोजगार के लिए जाना पड़ेगा। कांग्रेस ने भी आत्मनिर्भर उप्र रोजगार अभियान को झूठ व फरेब का पुलिन्दा बताया। कांग्रेस का कहना है कि मजूदरों को उनके कौशल के अनुरूप किसी संगठित उद्योग में काम दिलाना चाहिये था। सरकार जो उपलधियां गिना रही है उस काम को तो पहले से लोग रोजगार के रूप में करते आये हैं। कार्य के अलोचनाओं का आधार भी आधार होता है परन्तु नीयत साफ हो और प्रयास में ईमानदारी हो तो हर जनहित योजना सफल होती है। सफलता आलोचनपाओं को आधार से ही निर्मूल साबित कर देती हैं। किसी भी योजना को बनाना तथा उसे लागू करना बहुत मुश्किल नहीं होता है। मुश्किल होता है उस योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करना। उद्देश्य की प्राप्ति तभी होती है जब योजना को क्रमबद्ध पूरी निष्ठा से लागू किया जाय। योजनाओं को लागू करते समय राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं होनी चाहिए। सरकार की दृष्टि जनसेवार्थ की होनी चाहिए। भ्रष्टाचार रूपी दीमक का इलाज भी जरूरी है नहीं तो जनकल्याणकारी योजनायें भ्रष्टाचार की भेंट चढ़कर असफल हो जाती हैं।

इससे लाभार्थियों को कोई लाभ नहीं पहुंचता वरन् सरकारी पैसा डूब जाता है। देश को आर्थिक नुकसान पहुंचता है। आत्मनिर्भर यूपी रोजगार अभियान में 25 तरह के कार्यों को चिन्हित किया गया है। जिनमें प्रवासी श्रमिकों को समायोजित किया जायेगा। इसकी जिम्मेदारी ग्राम्य विकास, पंचायतीराज, परिवहन, खनन, पेयजल व स्वच्छता, वन एवं पर्यावरण जैसे एक दर्जन विभागों को दी गई है। इस योजना में प्रदेश के 31 जिलों के 32,300 ग्राम पंचायतों को शामिल किया गया है। योजना के तहत रोजगार से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों में 1.25 करोड़ लोगों को रोजगार हेतु समायोजित किया जायेगा। कुल मिलाकर यदि यह योजना सफल होती है तो उप्र के इतिहास में यह स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज किया जायेगा। उप्र के लोग आजादी से पहले से ही विभिन्न कारणों से रोजगार की तलाश में अन्य प्रदेशों यहां तक की विदेशों में पलायन करते रहे हैं। घनी आबादी, रोजगार के कम अवसर उन्हें अपना स्थानीय निवास छोडऩे पर मजबूर कर देती है।

उप्र से लोग आजादी के पहले सूरीनाम, गुयाना व मारीशस गये और वहीं बस गये। आज भी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, खाड़ी देशों, थाइलैण्ड व अन्य देशों में उप्र के लोग रोजगार की तलाश में जाते हैं। पासपोर्ट की जब ऑनलाइन व्यवस्था नहीं थी तब पासपोर्ट के लिए महीनों की प्रतीक्षा सूची रहा करती थी। महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, आंध्रप्रदेश सहित अन्य राज्यों में उप्र के श्रमिक मिल जायेंगे। इसके अलावा अन्य प्रान्तों में बड़ी संख्या में उप्र के निवासी स्वरोजगार व सेवाक्षेत्र में हैं। अन्य प्रदेशों के विकास में उप्र के निवासियों को योगदान महत्वपूर्ण है। लॉकडाउन में पलायन की स्थिति देखकर यह लगता है कि यहां श्रमिकों के कौशल के अनुरूप कार्य मिलना चाहिये। यदि प्रदेश में सिानीय स्तर पर रोजगार मिला तो प्रवासी श्रमिक के व्यवसाय कौशल का लाभ प्रदेश को भी मिलेगा। प्रदेश उन्नति के पथ पर अग्रसारित होगा।

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