परिस्थितियों पर करना होगा नियंत्रण

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कानपुर में पुलिस की शहादत के बाद एक तथ्य सामने आता है कि आखिरकार यूपी में संगठित अपराध व अपराधियों की विषवेल क्यों उगती है! इस पर समाजशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों व पुलिस विभाग को मंथन करना होगा। यदि किसी व्यक्ति को अपराधी बनने ही न दिया जाये तो संगठित अपराध व अपराधियों की संगठित गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकेगी। आज भी हिस्ट्रीशीट खोलने की प्रक्रिया पुरानी ही है। एक बार यदि हिस्ट्रीशीट खुल जाये तो मरते दम तक खुली रहती है। यदि अपराधी सुधरने का प्रयास करे भी तो उसका अतीत पीछा करता रहता है। पुलिस की कार्यप्रणाली भी ऐसी है कि हिस्ट्रीशीटरों पर मुकदमे लादती चली जाती है। जब भी कोई अभियान अपराधियों के खिलाफ चलाया जाता है तो हम देखते हैं कि तमाम लोगों का चालान अवैध अस्त्र रखने के अपराध में होता है। ऐसे लोग गिरफ्तार किये जाते हैं जिन पर पूर्व में मुकदमा दर्ज हो या अपराधिक इतिहास हो। कई मामलों में आंकड़े दुरुस्त करने के लिए पुलिस अवैध अस्त्र रखने के अपराध में चालान कर देती है। एक बात समझ में नहीं आती कि पुलिस अभियान में सक्रिय होती है तो काफी संख्या में लोग हवालात में पहुंच जाते हैं। ऐसी सक्रियता हमेशा क्यों नहीं रहती! जिन लोगों के पास अवैध अस्त्र बरामद होते हैं उनसे यह क्यों नहीं पता लगाया जाता है कि उन्होंने अवैध अस्त्र व कारतूस कहां से खरीदा।

अवैध अस्त्र व कारतूस बेचने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती! पुलिस की कार्यप्रणाली में और भी खामियां हैं। इन्हीं खामियों के चलते थानों में मानवाधिकार का उल्लंघन होता है। फर्जी मुठभेड़ों के कई मामलों में पुलिसकर्मियों पर दोष सिद्ध हुआ है और अदालतों से सजा मिलती है। पुलिस कार्यप्रणाली व कार्यपद्धति को अपराध समाप्त करने के लिए कारगर बनाना होगा। व्यवस्था में ऐसा परिवर्तन करना होगा कि पुलिस संगठित अपराध व अपराधियों पर लगाम लगा सके। पुलिस की कार्यप्रणाली व कार्यपद्धति में परिवर्तन करने के साथ ही हमें इस पर भी ध्यान देना होगा कि जनता अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का साथ क्यों देती है। अनेक जनप्रतिनिधि जो कि अपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे हैं, उन्हें जनता ने अपना जनप्रतिनिधि चुना होता है। ऐसा क्यों होता है! जनता क्यों ऐसे लोगों को अपना जनप्रतिनिधि चुनती है। अब तो ईवीएम के जरिए चुनाव होता है। अब यह भी नहीं कहा जा सकता है कि अपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे उम्मीदवार बूथ कैप्चरिंग करके चुनाव जीत जाते हैं। चुनाव जीतने के बाद उन्हें मंत्रिमंडल में क्यों शामिल किया जाता है, यह भी यक्ष प्रश्न है। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों व उनके निकटतम स्वजनों को राजनीतिक पार्टियां अपना उम्मीदवार क्यों बनाती हैं!

लगभग सारी पार्टियां एक—दूसरे पर अपराधिक बैकग्राउंड वाले व्यतियों को प्रश्रय देने का आरोप लगाती हैं परन्तु चुनाव जीतने के लिए ऐसे लोगों को टिकट देने में संकोच नहीं करतीं। संगठित अपराधी के माली हालात में लगातार इजाफा होता रहता है। दिन दूना रात चौगुना के सूत्र पर बढ़ता रहता है। संबंधित सरकारी एजेंसियां सोती रहती हैं। जहां अपराधी के विरुद्ध माहौल बनता है उसकी सम्पत्ति सरकारी एजेसियों द्वारा खंगालनी शुरू कर दी जाती है। यदि शुरू में ही अपराधी तत्वों की संपत्ति पर ध्यान रखा जाय तो निश्चित ही अपराधियों की विषवेल को खाद — पानी मिलना बंद हो जाएगा। इसके साथ ही राजनीतिक प्रश्रय देने वालों को जनता के सामने बेनकाम करना होगा क्योंकि राजनीतिक प्रश्रय अपराधियों के विषवेल को ट्री गार्ड की तरह सुरक्षा देता है। अब जरूरत है कि पुलिस प्रशासन का ध्यान अपराधियों व अपराध को नियंत्रित करने के साथ ही इसको पनपन ही न देने की तरफ जाना चाहिए। इसके लिए प्रदेश को पूरा एक तंत्र को विकसित करना होगा जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल हों। ये निर्विवाद सत्य है कि अधिकतर अपराधी जन्मजात नहीं होते, उन्हें परिस्थितियां अपराधी बना देती हैं। हमें ऐसी परिस्थतियों पर भी नियंत्रण करना होगा।

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