एयरपोर्ट को भी तो बदलो

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कोविड ने एक ओर जहां अर्थव्यवस्था पर बुरे प्रभाव डाले हैं, वहीं इसने इनोवेशन और बदलाव में तेजी दिखाई, जो इससे पहले कभी नहीं देखी गई। अब विमानन क्षेत्र 2021 में मुश्किल परिस्थितियों से गुजर रहा है, यह क्षेत्र भी व्यापक बदलाव और इनोवेशन की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। कुछ बदलाव दिखने भी लगे हैं जैसे डिजिटल तकनीक ने एयरपोर्ट पर कॉन्टैक्टलेस प्रक्रिया और सेल्फ सर्विस शुरू की है। पर बड़ा बदलाव मांग में आने वाले उतार-चढ़ाव या बदलाव को पूरा करने की हमारी क्षमताओं में होगा। हालांकि घरेलू हवाई यातायात प्री-कोविड स्तर के 60 फीसद के आसपास ही पहुंचा है और अंतरराष्ट्रीय ट्रैफिक मामूली स्तर पर बढ़ा है, पर यह कहना सुरक्षित है कि ट्रैफिक अब बढ़ेगा ही। हालांकि, वृद्धि दर को लेकर अनिश्चितता है। त्योहारों के दौरान यात्रा में बढ़त देखी गई, लेकिन इससे व्यापारों का बनाए रखने के लिए जरूरी स्थिर मांग नहीं मिलेगी।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की वजह से बिजनेस यात्रियों की कुछ मांग हमेशा के लिए खो सकती है। हालांकि, जैसे-जैसे टीकाकरण के असर में तेजी दिखेगी, बिजनेस ट्रैवल भी बढ़ सकता है। कार्गो ने इस साल रेवेन्यू मजबूत बनाए रखने में मुख्य भूमिका निभाई है। मांग में उतार- चढ़ाव का इसपर कम असर होता है, इसीलिए एयरलाइंस और एयरपोर्ट, दोनों इसपर ज्यादा ध्यान देंगे। इससे उत्तर-पूर्व के साथ आर्थिक इंटर-कनेक्टिविटी मजबूत हो सकती है, चूंकि चौथे दौर में उड़ान योजना के करीब 50त्न रूट इसी क्षेत्र को जोड़ेंगे। एयरक्राफ्ट के लिए लीज़ का किराया एयरलाइंस के लिए सबसे बड़ी लागत होती है। मांग में उतार-चढ़ाव के प्रबंधन के लिए इस लागत को परिवर्तनीय लागत में बदलना होगा, जिसमें हवाईजहाजों के बेड़े का आकार घटानेबढ़ाने की क्षमता भी तेज हो। भारत लीज़ इंडस्ट्री को देश में लाने के लिए उत्सुक रहा है।

घरेलू (और क्षेत्रीय) बाजार अकेला लीज़ व्यापार की मदद नहीं कर सकता। लचीले वैश्विक व्यापार का महत्व 2021 में बढ़ेगा क्योंकि मांग की अस्थिरता पर प्रतिक्रिया देने की क्षमता सफलता का मुख्य कारक बन रही है। एयरपोर्ट को लेकर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का एयरपोर्ट के पुनरुत्थान के तरीकों और निवेशकों के आत्मविश्वास पर महत्वपूर्ण असर पड़ेगा। सैद्धांतिक रूप में, नियामक तंत्र को एयरलाइनों से वसूले जाने वाले शुल्कों के मामले में मांग में कमी के प्रभाव को देखना चाहिए। हालांकि, नियामक प्रक्रिया ने न तो मांग में इतनी कमी पर ध्यान दिया, न ही प्रस्तावित मांग की अनिश्चितता पर। दिल्ली और मुंबई जैसे एयरपोर्ट का उच्च राजस्व का वादा ज्यादा ट्रैफिक की उम्मीदों पर आधारित था।

अब दोनों एयरपोर्ट ने रेवेन्यू शेयर पेमेंट पर छूट पाने के लिए अदालत का रुख किया है। इसपर और मोरैटोरियम वाले कर्ज में एक्सटेंशन पर फैसला एयरपोर्ट्स के लिए पर्याप्त कैशफ्लो को तय करेगा। कुल मिलाकर सरकार और नियामक के लिए यह एयरपोर्ट की नियामक नीतियों पर पुनर्विचार का अवसर है। उनकी सक्रियता से उन एयरपोर्ट के कर्जदाता और निवेशकों को राहत मिलेगी, जो विाीय पूर्ति का इंतजार कर रहे हैं, साथ ही वे जिनके निजीकरण की योजना है। लागत घटाने और जहां संभव हो वहां पूंजीगत खर्च को टालने के अलावा, एयरपोर्ट को अपने बिजनेस को मांग की उच्चस्तरीय अनिश्चितता के लिए तैयार करने की जरूरत है।

उदाहरण के लिए सिंगापुर के चांगी एयरपोर्ट ने टर्मिनल का कुछ हिस्सा गैर-यात्रियों के लिए खोल दिया है और चांगी फेस्टिव विलेज और ‘अ नाइट एट द एयरपोर्ट’ जैसी पहल शुरू की हैं, ताकि वे अपनी संपत्तियों का व्यावसायिक इस्तेमाल कर सकें। जबकि भारतीय एयरपोर्ट्स में मांग में गिरावट चांगी एयरपोर्ट जैसे अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट जितनी नहीं है, लेकिन उचित नए प्रयोगों की निश्चित तौर पर जरूरत है। अंत में, एयरपोर्ट को अपनी अनुमान व विश्लेषण की क्षमताओं को भी तेजी से बेहतर बनाना होगा। आर्थिक तथा स्वास्थ्य मोर्चे पर प्रगति और लोगों की जोखिम को लेकर धारणा व व्यवहार में बदलाव जैसे मांग में वृद्धि के कई संकेतक आगे जाकर उपलब्ध होंगे। डेटा एनालिटिक्स का लाभ लेकर पहले से ही टर्मिनल के इस्तेमाल में बदलाव, लागत का फिर से हिसाब लगाने और पूंजीगत खर्च को फिर शुरू करने जैसे कार्य किए जा सकते हैं।

मनीष अग्रवाल
(लेखक पार्टनर, प्राइसवाटरहाउसकूपर्स हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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