चैत्र नवरात्रि आज से

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अभी चैत्र मास चल रहा है और इस मास की अमावस्या के बाद चैत्र नवरात्रि शुरू हो जाती है। मंगलवार, 13 अप्रैल से बुधवार, 21 अप्रैल तक चैत्र नवरात्रि रहेगी। इन दिनों में देवी मां के अलग- अलग स्वरूपों की पूजा करनी चाहिए। देवी मां ने दैत्यों का वध करने के लिए कई अवतार लिए हैं। देवी मां ने महिषासुर का वध करने के लिए दुर्गा के रूप में अवतार लिया था। इसी वजह से देवी को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है। इस बार पूरे नौ दिन देवी मां की भक्ति की जा सकेगी। इन दिनों में मत्स्य अवतार और श्रीराम नवमी पर्व भी मनाए जाएंगे। चैत्र नवरात्रि में मां के नौ स्वरूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा खासतौर पर करनी चाहिए। ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार दुर्गा सप्तशती में देवी के अवतार के बारे में बताया गया है। पुराने समय में महिषासुर नाम के एक असुर ने देवताओं को स्वर्ग के निकालकर वहां अपना अधिकार कर लिया था। कोई भी देवता उसे पराजित नहीं कर पा रहा था। स्वर्ग से निकलकर सभी देवता शिवजी और विष्णुजी के पास पहुंचे। महिषासुर के आंतक से शिवजी और विष्णुजी क्रोधित हो गए।

उस समय सभी देवताओं के मुख के एक तेज प्रकट हुआ, ये तेज एक देवी रूप में बदल गया। शिवजी के तेज से देवी का मुख, यमराज के तेज से केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से वक्षस्थल, सूर्य के तेज से पैरों की उंगलियां, कुबेर के तेज से नाक, प्रजापति के तेज से दांत, अग्नि के तेज से तीन नेत्र, संध्या के तेज से भृकुटि और वायु के तेज से देवी के कानों की उत्पत्ति हुई। इस तरह देवताओं के तेज से देवी उत्पन्न हुई। सभी देवताओं ने अवतरित हुई देवी को अपनी-अपनी शक्तियां भेंट में दीं। शिवजी ने त्रिशूल और अग्निदेव ने अपनी शक्ति देवी को प्रदान की। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र दिया। वरुणदेव ने शंख, पवनदेव ने धनुषबाण, देवराज इंद्र ने वज्र और घंटा, यमराज ने कालदंड भेंट किया। प्रजापति दक्ष ने स्फटिक की माला, ब्रह्मादी ने कमंडल, सूर्यदेव ने अपना तेज प्रदान किया। समुद्रदेव ने आभूषण भेंट किए। सरोवरों ने कभी न मुरझाने वाली फूलों की माला, कुबेरदेव ने शहद से भरा दिव्य पात्र, पर्वतराज हिमालय ने सिंह भेंट में दिया। देवताओं से मिली इन शक्तियां से देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। महिषासुर का वध करने की वजह से ही देवी को महिषासुरमर्दिनी कहा जाता है। चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा की विशेष पूजा करनी चाहिए। अगर पूजा के लिए ज्यादा समय न हो तो देवी के दर्शन रोज करें और लाल फूल जरूर चढ़ाएं।

नवसंवतसर: उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन से ही हिन्दू नववर्ष शुरू होता है। इस बार नवसंवत् 2078 शुरू होगा। पुराने समय में इसी तिथि पर ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर मत्स्य अवतार और नवमी तिथि पर श्रीराम अवतार हुआ था।

3 ग्रहों का राशि परिवर्तन: इस हफ्ते की शुरुआत सोमवती अमावस्या से हुई है। इसके बाद 13 अप्रैल से चैत्र नवरात्र शुरू हो जाएंगे। इसी दिन हिंदू नववर्ष का नया संवत्सर भी शुरू हो जाएगा। नवरात्र होने से पूरे हते देवी पूजा और व्रत-उपवास रहेंगे। साथ ही देखा जाए तो 6 दिन लगातार यानी 12 से 17 अप्रैल तक सोमवती अमावस्या, चैत्र प्रतिपदा, सिंधारा दूज, गणगौर तीज, विनायक चतुर्थी और श्री पंचमी जैसे व्रत और पर्व रहेंगे। इसलिए तीज-त्योहारों के लिहाज से ये सप्ताह बहुत ही खास रहेगा। ज्योतिषीय नजरिये से देखा जाए तो इन दिनों में सूर्य, मंगल और बुध ग्रह राशि बदलेंगे। इन 3 ग्रहों की चाल में बदलाव होने के साथ ही इस हफ्ते खरीदारी और नए कामों की शुरुआत के लिए 4 दिन रहेंगे। 13 अप्रैल, मंगलवार को सर्वार्थसिद्धि और अमृतसिद्धि योग है। 14 अप्रैल, बुधवार को सर्वार्थसिद्धि योग, सूर्य और मंगल का राशि परिवर्तन है। 16 अप्रैल, शुक्रवार को रवियोग और वाहन और संपत्ति खरीदी का विशेष मुहूर्त, बुध का राशि परिवर्तन है। 18 अप्रैल, रविवार को रवियोग हैं।

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