क्या भारत झेल सकेगा यह लहर ?

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देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर चल रही है। दुनिया के जिस भी देश में दूसरी या तीसरी लहर आई वह पहले से ज्यादा तीव्र रही। हालांकि तीव्रता सिर्फ संक्रमण की रफ्तार में बढ़ती है। जैसे जैसे नई लहर आती है वह कम घातक होती जाती है। यानी संक्रमण की दर तेज रहती है पर उसकी मारक क्षमता कम हो जाती है। भारत में भी यही देखने को मिल रहा है। इस बार संक्रमण की दर पहले से बहुत तेज है। लेकिन वायरस की मारक क्षमता कम हो गई है। पहली लहर के पीक समय में यानी पिछले साल सितंबर में जब 90 हजार से ज्यादा केसेज एक दिन में आ रहे थे तो मरने वालों की संख्या एक हजार से ज्यादा होती थी, जबकि अभी यह संख्या पांच-छह सौ के बीच है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के आंकड़े का ध्यान दिलाते हुए बताया कि पिछले साल जब तीन- चार हजार केसेज आ रहे थे तब 30- 40 लोगों की मौत हो रही थी, जबकि इस लहर में 13-14 लोगों की मौत हो रही है। जाहिर है वायरस की संक्रमण क्षमता बढ़ गई है पर मारक क्षमता कम हो गई है। वायरस की इस लहर का दूसरा पहलू यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर भले कहा जाए कि यह दूसरी लहर है पर स्थानीय स्तर पर या हर राज्य में यह दूसरी ही लहर नहीं है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इसे चौथी लहर बताया है। हालांकि कायदे से दिल्ली में इसे तीसरी लहर बोल सकते हैं।

पहली लहर पूरे देश के साथ आई थी और दूसरी लहर तब आई, जब देश में पहली लहर का पीक आकर केसेज कम होने लगे थे। पूरे देश में जब सितंबर में केसेज कम होने लगे तो दिल्ली में अचानक केसेज में बहुत इजाफा हुआ था और नवंबरदिसंबर में दिल्ली में रिकार्ड संख्या में केसेज आने लगे थे। दिसंबर में ही इसमें कमी आने लगी और फरवरी में लगने लगा था कि अब कोरोना खत्म हो गया। सो, इस लिहाज से दिल्ली में यह तीसरी लहर है। ऐसे ही जब देश में पहली लहर चल रही थी तो केरल में केसेज कम हो रहे थे और पहली लहर खत्म हुई तो केसेज बढऩे लगे। अब दूसरी लहर चल रही है तो केरल इकलौता राज्य है, जहां संक्रमण दर में 40 फीसदी तक की कमी आई है और केसेज कम हो रहे हैं। दिल्ली और केरल की मिसाल से समझा जा सकता है कि वायरस का व्यवहार पूरे देश में एक जैसा नहीं है और हर राज्य की स्वास्थ्य सुविधाओं और कोरोना से निपटने की राज्य सरकार की तैयारियों पर इसका व्यवहार निर्भर करता है। यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि दिल्ली में तीसरी या चौथी लहर और केरल में दूसरी या तीसरी लहर के बावजूद पैनिक वाले हालात यों नहीं हैं और यों दोनों राज्यों की सरकारें मान रही हैं कि वे इस पर काबू कर लेंगी?

इसका कारण यह है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान जब देश में सख्त लॉकडाउन लागू हुआ तो इन राज्यों ने कोरोना से निपटने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे का बेहतर इंतजाम किया। इसी वजह से दोनों राज्यों में संक्रमण की दर कम रही और मृत्यु दर भी कम रही। इसके उलट जिन राज्यों ने अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं और कोरोना से निपटने की जरूरी बुनियादी व्यवस्था को मजबूत नहीं किया उनके यहां पैनिक के हालात हैं। यह बात पूरे देश के लिए कही जा सकती है। असल में लॉकडाउन वायरस से लडऩे का साधन नहीं है, बल्कि यह वायरस से निपटने की तैयारियों के लिए समय हासिल करने का साधन है। पूरी दुनिया में जब लॉकडाउन लागू हुआ तो उस समय का फायदा उठा कर स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाओं का विकास किया गया। शहरों में कोविड सेंटर बनाए गए। लाइन ऑफ ट्रीटमेंट तय किया गया। दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की गई औऱ वैक्सीनेशन की तैयारी हुई। इन सारी तैयारियों के लिए ही लॉकडाउन लागू किया जाता है। जिस देश ने या जिन राज्यों ने लॉकडाउन में मिले समय का इस्तेमाल करके ये बुनियादी तैयारियां नहीं कीं उनके यहां ज्यादा दिक्कत होगी।

दिल्ली या केरल में ज्यादा परेशानी इसलिए नहीं है क्योंकि वहां अनेक कोविड सेंटर बन गए हैं, निजी अस्पतालों में कोविड वार्ड बने हुए हैं, बेड, आईसीयू के कमरे, वेंटिलेटर आदि आरक्षित हैं, ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है, टेस्टिंग की फैसिलिटी बढ़ाई गई है और टेस्टिंग से लेकर इलाज तक की कीमत तय कर दी गई है। लॉकडाउन का असली मकसद यही करना था। तभी अगर अब दूसरी लहर में भी कोई राज्य अपने यहां लॉकडाउन लागू कर रहा है तो इसका मतलब है कि पहले के लॉकडाउन में मिले समय का इस्तेमाल करके उसने अपने यहां स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाओं का विकास नहीं किया है। उसने वायरस के संक्रमण को भगवान भरोसे छोड़ा। उसे रोकना का सुनियोजित उपाय नहीं किया। ऐसे राज्यों में बिहार, बंगाल, ओडि़शा, उत्तर प्रदेश सहित अनेक राज्य आते हैं। तभी अगर दूसरी लहर में केसेज और बढ़ते हैं तो इन राज्यों में आने वाले समय में बहुत ज्यादा घबराहट फैलेगी औऱ फिर से लॉकडाउन का उपाय आजमाया जाएगा, जिसके बारे में यह बात स्थापित हो गई है कि यह वायरस को रोकता नहीं है, बल्कि लोगों की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को बढ़ा देता है। यह तय मानें कि कोरोना की दूसरी लहर पहली से ज्यादा बड़ी होगी।

इसका कारण यह है कि दूसरी लहर में ब्रिटेन वाले स्ट्रेन का बड़ा हाथ है, जिसके बारे में वैज्ञानिक एकमत हैं कि वह पहले के मुकाबले 70 फीसदी ज्यादा तेजी से फैलता है। इसलिए इस बार वायरस ज्यादा तेजी से फैलेगा। लेकिन इसे पहले के मुकाबले ज्यादा आसानी से रोका जा सकता है क्योंकि अब किसी को अंधेरे में तीर चलाने की जरूरत नहीं है। सबको पता है कि इसका इलाज कैसे करना है। लोगों के मन से इसका डर भी निकल गया है और अब देश में वैक्सीनेशन का अभियान भी तेजी से चल रहा है। करीब सात करोड़ लोगों को टीका लगाया जा चुका है। वायरस का संक्रमण बढऩे के साथ साथ टीकाकरण की रफ्तार भी बढ़ेगी। लोग सावधानी भी बरतेंगे। होम आइसोलेशन का मॉडल सफल रहा है योंकि लोग उसमें रहने और वायरस से निपटने का तरीका सीख गए हैं।

अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं बेहतर हो गई हैं और डॉक्टर भी इलाज का सफल तरीका खोज चुके हैं। हां, गंभीर बीमारी वाले लोगों के ऊपर खतरा क्या बेहद लापरवाह लोगों के ऊपर खतरा है। सो, कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य के नजरिए से कोरोना वायरस की इस लहर से निपटना मुश्किल नहीं है। परंतु अगर जान बचाने या संक्रमण घटाने के उपाय के तौर पर लॉकडाउन या बेवजह की पाबंदियों का तरीका आजमाया गया तो जो आर्थिक असर होगा उसे देश नहीं झेल पाएगा। देश की आर्थिक स्थिति अभी तक सुधरी नहीं है। भले सरकार कितना भी दावा करे कि जीएसटी की वसूली बढ़ गई या कारों की बिक्री बढ़ गई या पेट्रोल-डीजल की खपत बढ़ गई, लेकिन हकीकत यह है कि देश की आर्थिकी खोखली हो गई है। लोकल स्तर पर लगाया जा रहा लॉकडाउन और छोटी-छोटी पाबंदियां भी इसमें सुधार की संभावना को कम करेंगी।

अजीत द्विवेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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