मंगलामुखी यानि ट्रांसजेंडरों को केन्द्रीय सशस्त्र बलों में कार्मिक के तौर पर स्वीकार किया जाना एक सुखद स्थिति है। यह कार्य बहुत पहले हो जाना चाहिए था परन्तु देर आदए दुरुस्त आयद की स्थिति भी संतोषजनक है। मंगलामुखी का राजनीति व धार्मिक क्षेत्र में पहले से ही भागीदारी हो गयी है। कई मंगलामुखियों ने चुनाव में हिस्सा लिया और कई जनप्रतिनिधि चुनी भी गयीं। धार्मिक केन्द्र में भी इनके केन्द्र हैं। परन्तु अद्र्धसैनिक बलों में कार्मिक के तौर पर नियुक्त किया जाना इस वर्ग के लिए सामाजिक तौर पर परिवर्तनकारी युग की शुरुआत होगी। गृह मंत्रालय ने पांच अद्र्धसैनिक बलों से टिप्पणी मांगी थी कि सहायक कमांडेंट की परीक्षा में ट्रांसजेंडरों को शामिल किया जाये कि नहीं! इस पर बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी और सीआरपीएफ ने ट्रांसजेंडरों को आखिरी के तौर पर स्वीकार करने की अपनी स्वीकृति दे दी है। इन बलों ने कहा है कि उनके यहां लैंगिक तटस्थता का पालन होता है लेकिन एक अन्य अद्धैसैनिक बल केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल ने सरकार को जवाब देने के लिए समय मांगा है।
हालांकि सीआईएसएफ की तरफ से माना जा रहा है कि सहमति देने के लिए वक्त मांगने का मतलब यह नहीं है कि बल इस कदम के खिलाफ है। यह भी माना जा रहा है कि केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की तरफ से सहमति देने में देर या कोई ठोस कारण दिया जाता है तो संघ लोकसेवा आयोग के जरिए होने वाली सहायक कमांडेंट की परीक्षा में ट्रांसजेंडर सीआईएसएफ को छोड़कर अन्य अद्र्धसैनिक बलों के लिए आवेदन कर सकेंगे। एक और सुखद खबर है कि वडोदरा की जोया खान देश की पहली ट्रांसजेंडर कामन सर्विस सेंटर की ऑपरेटर बनी हैं। इस संबंध में जानकारी देते हुए केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि जोया ने टेलीमेडीसिन परामर्श के साथ सीएएससी का काम भी शुरू किया है। जोया का ध्येय ट्रांसजेंडरों को डिजिटल रूप से साक्षर बनाने व सुगम अवसर देने का है। जोया खान ने जो शुरुआत की है उससे निश्चित तौर पर मंगलामुखी जगत को एक नई दिशा मिलेगी। अद्र्धसैनिक बलों में प्रवेश के बाद मंगलामुखी समुदाय को न केवल देशसेवा का अवसर मिलेगा बल्कि सामाजिक स्थिति में भी सुधार होगा।
उन्हें वह सामाजिक स्थान मिलेगा जिसका हकदार सभी मनुष्य होते हैं। वैसे अगर मंगलामुखी समुदाय की स्थिति का आंकलन किया जाय तो सामाजिक व आर्थिक तौर पर असली आरक्षण की हकदार वही है। आज भी मंगलामुखी समुदाय का समाज में वह स्थिति नहीं है जो उन्हें मिलना चाहिए। मंगलामुखी का नाम आते ही जेहन में मांगलिक अवसरों पर बधाई गीत गाकर व नृत्य करके अपना जीवन यापन करने वाले या ट्रेनों या अन्य स्थान पर भीख मांगने वालों की स्थिति उभर कर आती है। मंगलामुखियों ने देश के स्वतंत्रता संग्राम व कई देशभक्ति के अवसरों पर अपना बलिदान दिया है। उनकी शारीरिक स्थिति के लिए वे नहीं बल्कि प्रकृति उारदायी है। प्राकृतिक तौर पर देखा जाय तो वे भी बिल्कुल ऐसे ही हैं जैसे हम स्त्री व पुरुष। इसके बावजूद समाज ने अघोषित तौर पर उनको सामाजिक व आर्थिक रूप से वंचित कर रखा है। बहुत से लोग मंगलामुखियों को देखकर उपहास उड़ाते हैं। ऐसे लोग निन्दा के पात्र हैं।
ऐसे लोग केवल मंगलामुखियों का ही उपहास नहीं उड़ाते वरन जिस प्रकृति ने उन्हें उत्पन्न किया है, उसका उपहास उड़ाते हैं। सरकार व समाज दोनों को ही मंगलामुखियों को उनका सामान्य सा अधिकार देना चाहिए। मंगलामुखियों को भी चाहिए कि अपनी स्थिति को सुदृढ़़ करने के लिए शिक्षा ग्रहण करें व सामान्य व्यक्तियों की तरह जीविकोपार्जन का उपाय करें। इसके लिए सरकार को व्यवस्था देनी चाहिए और मंगलामुखियों को भी अपने अधिकारों के लिए आगे आना चाहिए। मंगलामुखियों के जीवन स्तर व सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने के लिए आरक्षण जैसी सुविधा देनी होगी। जिन परिवारों में मंगलामुखी बच्चे का जन्म होता है उसे वे परित्याग न करके अन्य बच्चे की तरह उसका पालन पोषण करें। उपयुक्त शिक्षा देकर समाज में उसे जीविकोपार्जन के लिए तैयार करें। समाज की भी सोच मंगलामुखी के लिए बदलनी होगी। इसके लिए मंगलामुखियों को शैक्षिक रूप से सुदृढ़ व अधिकारों के लिए जागरूक होना होगा।