चीन के बहिष्कार की टिकाऊ नीति बने

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भारत सरकार ने चीन के कई मोबाइल एप्लीकेशंस पर पाबंदी लगाई है और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत एप इनोवेशन चैलेंज’ लांच किया। इसे प्यास लगने पर कुआं खोदना कहते हैं। ऐसा लग रहा है कि सरकार मान रही है कि एप विकसित करना निबंध लिखने या चित्र बनाने जैसी कोई कला है, जिसके लिए चैलेंज घोषित करके या इनाम की घोषणा करके बढ़िया एप बनवा लिया जाएगा और चाइनीज एप जैसे टिक टॉक, यूसी ब्राउजर, हेलो आदि को करारा जवाब दे दिया जाएगा। ऐसा होता तो भारत में पहले ही बड़ी संख्या में लोग वैकल्पिक एप बना चुके होते और भारत विदेशी एप्लीकेशंस पर इतना निर्भर नहीं होता। यह सिर्फ चाइनीज एप्स का मामला नहीं है। सरकार टुकडों-टुकड़ों में चीन का बहिष्कार कर रही है। सरकारी संचार कंपनियों में 4जी अपग्रेड के लिए चीनी सामान नहीं लेने की बात हुई है तो पावर सेक्टर में भी चीनी उत्पाद से बचने को कहा गया है। कुछ जगह ठेके आदि भी रोके गए हैं। पर यह सब कुछ तात्कालिक है, जिसे अंग्रेजी में ‘नी जर्क रिएक्शन’ कहा जाता है। असलियत यह है कि भारत में पहले से किसी चाइनीज एप या तकनीक का विकल्प तैयार नहीं किया गया था, जैसे किसी अमेरिकी एप का भी विकल्प भारत के पास नहीं है। पर अचानक एक दिन चाइनीज एप्स पर पाबंदी लगा दी गई। हालांकि इन एप्स पर पाबंदी लगाना एक ऐसा फैसला है, जिससे न तो भारत को कोई बड़ा आर्थिक नफा-नुकसान होने वाला है और न चीन को। इसका कारण यह है कि इन एप्स के पीछे बहुत बड़ी पूंजी का निवेश नहीं है।

हां, यह जरूर है कि भारत में इससे जुड़े लोगों की संख्या बहुत ज्यादा थी। यह कोई बड़ी आर्थिक चोट पहुंचाने वाला फैसला नहीं है पर चीन को एक सख्त मैसेज इसके जरिए दिया जा सकता है। इससे चीन को यह बात समझ में आएगी कि भारत सरकार बडा कदम भी उठा सकती है। जैसे भारत में बैंक ऑफ चाइना को बैंकिंग सेवा देने की अनुमति मिली हुई है। डिजिटल पेमेंट से जुड़ी बड़ी कंपनी पेटीएम में चीन का पैसा लगा है या चीन की ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा भी भारत में काम कर रही है और उसने कई कंपनियों में पूंजी निवेश किया है। छोटे छोटे एप्स के बाद इनकी बारी भी आ सकती है और उसके बाद चीन का बड़ा निवेश भी प्रभावित हो सकता है, जो उसने गुजरात या दूसरे राज्यों में किया है। अगर चीन समझ जाए तो ठीक है नहीं तो भारत को इस मामले में तात्कालिक प्रतिक्रिया देने की बजाय लंबे समय की नीति बनानी होगी और उससे पहले कुछ ठोस तैयारियां करनी होंगी। भारत को कैसी तैयारी करनी होगी उसका अंदाजा 59 चाइनीज एप्स पर पाबंदी के बाद हो गया है। पाबंदी के फैसले का एक नुकसान यह है कि भारत के जो लोग इन चाइनीज एप्स का इस्तेमाल कर रहे थे उनके पास दूसरा विकल्प नहीं है। अगर है तो वह उनकी गुणवत्ता वाला नहीं है। भारत सरकार की असली दिक्कत यहीं है कि प्रधानमंत्री आत्मनिर्भरता की बात करते हैं या दूसरे देशों को आर्थिक झटका देने के फैसले करते हैं पर उससे पहले अपनी जमीनी तैयारी नहीं करते। वे चीन से सबक नहीं लेते। चीन ने दुनिया के देशों पर से निर्भरता कम की है या खत्म की है तो उससे पहले उसने अपने को आत्मनिर्भर बनाया है।

दुनिया उसके माल की खरीददार है या उसकी सेवाओं की उपभोक्ता है, दूसरे देशों पर उसकी निर्भरता बहुत सीमित है। अगर सिर्फ डिजिटल प्लेटफॉर्म या एप्स की बात करें तो चीन ने अमेरिकी कंपनियों की नकल करते हुए उनके सारे पॉपुलर एप्स खुद बना लिए हैं। मिसाल के तौर पर गूगल दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन है पर चीन में इस्तेमाल नहीं होता है। चीन के पास गूगल की जगह अपना बाइडू है। इसी तरह व्हाट्सएप की जगह उसके पास वीचैट है। चीन ने फेसबुक की जगह रेनरेन और लिंक्डइन की जगह माईमाई बना लिया है। उबर की जगह दीदी शूसिंग है। उसने अमेजन की जगह अलीबाबा बना लिया और एपल की जगह शाओमी बना ली। सो, उसने सब कुछ अपना बनाया और उसके बाद दूसरे देशों के उत्पादों को पूरी तरह से छोड़ दिया। इसके उलट भारत ने एकाध अपवादों को छोड़ कर अपना कुछ नहीं बनाया। तभी जितने चाइनीज एप्स बंद हुए हैं उनकी जगह भारत के लोग दुनिया के दूसरे देशों के एप्स का इस्तेमाल करने लगेंगे। यानी चीन छोड़ेंगे तो किसी और देश पर निर्भर हो जाएंगे। यह भी याद रखना चाहिए कि कुछ समय पहले तक भारत में मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली चार कंपनियां थीं। माइक्रोमैक्स, इंटेक्स, लावा और कार्बन इन चारों को एक साथ मिला कर ‘मिल्क’ कहा जाता था। इनके उत्पाद खूब बिक रहे थे। पर इसी सरकार ने, जिसने चीन के एप्स बंद किए हैं उसने चीन को इतनी सुविधाएं दीं और नियमों से लेकर शुल्क तक में इतने छूट दिए कि चीन की कंपनियां भारत के बाजार पर छा गईं। रेडमी, शाओमी, वीवो, ओप्पो इन चार ब्रांड के हैंडसेट का भारत के बाजार में 72 फीसदी हिस्सा हो गया। सोचें, यह कैसी विडंबना है कि भारत सरकार ने एप्स पर पाबंदी लगा दी पर ये एप्स जिन हैंडसेट्स में थे उन्हें रहने दिया!

भारत की सरकार में अगर दूरदृष्टि होती तो वह पहले ही अपनी घरेलू कंपनियों को मजबूत करती और चीन के उत्पादों को हतोत्साहित करती। पर उस समय सरकार ने घरेलू मोबाइल कंपनियों को खत्म होने दिया और चीन की कंपनियों को फलने-फूलने दिया। खबर है कि चीन की मोबाइल कंपनियों ने कोरोना से लड़ने के लिए बने पीएम केयर्स में मोटा चंदा भी दिया है। बहरहाल, जिस तरह भारत सरकार ने एयर इंडिया को बचाने में 60 हजार करोड़ रुपए लगाए क्या उस तरह से 10-20 हजार करोड़ रुपए लगा कर भारतीय मोबाइल ब्रांड्स को मजबूत नहीं किया जा सकता था? पर इसकी बजाय प्रधानमंत्री नोएडा में दक्षिण कोरिया की कंपनी सैमसंग के प्लांट का उद्घाटन करके बहुत खुश हुए थे और अब दूसरे मंत्री एपल के भारत में निर्माण शुरू करने को लेकर खुश हो रहे हैं। यानी हम अपनी कंपनियों को मजबूत नहीं करेंगे, चीन पर निर्भर रहेंगे या दक्षिण कोरिया पर या अमेरिका पर! सरकार ने इन एप्स पर पाबंदी लगाते हुए कहा कि ये देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। सवाल है कि इन एप्स से देश की सुरक्षा को कब खतरा पैदा हुआ? अगर पिछले एक-दो हफ्ते या एक महीने में हुआ है तब तो कोई बात नहीं है पर अगर यह खतरा तभी से था, जब से ये एप भारत में चल रहे थे तब तो बड़ा सवाल उठता है कि आखिर सरकार ने तभी कार्रवाई क्यों नहीं की थी? दूसरा सवाल यह भी है कि दूसरे देशों को जो एप्स अभी इस्तेमाल हो रहे हैं, जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन आदि, उनके बारे में क्या जांच-पड़ताल हुई है और सरकार पूरे भरोसे में है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हैं? जाहिर है राष्ट्रीय सुरक्षा को बीच में इसलिए लाया गया है ताकि इस फैसले पर व्यापक जन समर्थन हासिल किया जा सके।

अजीत दि्वेदी
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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