बेपटरी अर्थ व्यवस्था

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भारतीय अर्थव्यवस्था अभी तक पिछले साल के कोरोना के बाद किए लॉकडाउन से उबर नहीं सकी है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियां जरूर भारत के प्रति सकरात्मक अनुमान लगा रही हैं और चालू विा वर्ष में ग्रोथ रेट के बढऩे की बातें कह रही हैं, लेकिन स्थिति व आंकड़े अनुमानों का साथ देते नजर नहीं आ रहे हैं। लॉकडाउन के चलते जो अर्थव्यवस्था बेपटरी हो चुकी हो और तिमाही जीडीपी दर माइनस -23 फीसदी से ऊपर तक चली गई हो, लगातार तीन तिमाही में नकारात्मक ग्रोथ रेट रहा हो, उस अर्थव्यवस्था में केवल विा वर्ष बदल जाने भर से सबकुछ ठीक हो जाएगा और जीडीपी दर हाई ग्रोथ स्थिति में लौट आएगी, अनुमान लगाना अतिश्योति है। अभी कोविड-19 महामारी के दौरान विा वर्ष 2020-21 में भारत का कर्ज व जीडीपी रेश्यो बढ़ कर 90 फीसदी पर चला गया है। यह अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक कोष (आईएमएफ) ने कहा है। आईएमएफ ने कहा कि महामारी से पहले 2019 के आखिर में कर्ज रेश्यो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 74 फीसदी था और 2020 के अंत में ये बढ़कर जीडीपी का करीब 90 फीसदी हो गया है। यह बहुत बड़ी वृद्धि है। कर्ज-जीडीपी अनुपात में किसी देश के सरकारी कर्ज की तुलना उसके सालाना आर्थिक उत्पादन से की जाती है।

सरल शब्दों में समझें तो कर्ज जीडीपी अनुपात या सरकारी कर्ज अनुपात किसी देश की कर्ज चुकाने की क्षमता को दर्शाता है। इस तरह, जिस देश का डेट जीडीपी अनुपात जितना अधिक होता है, उसे सरकारी कर्ज को चुकाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आईएमएफ ने यह जरूर उम्मीद जताई है कि आर्थिक सुधार के साथ ही नए वित्त वर्ष 2021-22 में यह रेश्यो घटकर 80 फीसदी पर आ जाएगा। लेकिन हकीकत यह है कि 80 फीसदी भी बहुत ज्यादा है। भारत के कर्ज चुकाने की क्षमता में कमी होने का सीधा मतलब है कि विश्व बाजार में साख का कमजोर होना। अभी दो दिन पहले ही आईएमएफ ने 2021 में भारत के जीडीपी को लेकर अनुमान लगाया है कि वह 7.5 फीसदी से 12.5 फीसदी तक रह सकता है। अनुमान में इतना फलुचएशन संकेत है कि आईएमएफ खुद भारत के ग्रोथ को लेकर मुत्तमइन नहीं है। विश्व बैंक, संयुत राष्ट्र, एसएंडपी, मूडीज, नोमुरा, क्रिसिल आदि एजेंसियों ने वर्ष 2021 के लिए 5.5 से 7.5 फीसदी तक जीडीपी रहने का अनुमान जताया है। क्रिसिल, रिजर्व बैंक, विा मंत्रालय आदि भी 7.5 फीसदी ग्रोथ रहने की अनुमान लगाया है।

लेकिन देश में जिस तरह कोरोना फिर से बढ़ रहा है, देश आंशिक लॉकडाउन व नाइट कर्फ्यू की ओर अग्रसर है, महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक राज्य से मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है, अभी तक सभी ट्रेनें नहीं चल पाई हैं, स्कूल कालेज डांवाडोल हैं, उपभोता महंगाई दर सात फीसदी से ऊपर है, उद्योग ने रफ्तार नहीं पकड़ी है, उपभोक्ता मांग में तेजी नहीं आई है, तो आखिर विा वर्ष 2021-22 में अर्थव्यवस्था तेज ग्रोथ कैसे करेगी कि वह वी शेप में जंप करके निगेटिव से पॉजीटिव ग्रोथ में आ जाएगी, रिजर्व बैंक इसलिए रेपो रेट में कमी का जोखिम नहीं उठा पा रहा है। लंबे समय से चार फीसदी पर बरकरार है। नए विा वर्ष के लिए बजट बेशक आकर्षक है, लेकिन कोविड के चलते उसे जमीन पर उतारना कठिन होगा। लॉकडाउन से प्रभावित पिछले विा वर्ष में भी सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज का ऐलान किया था, अगर वो धरातल में अमल में लाए गए होते तो देश की जीडीपी दर रिकार्ड नकरात्मक नहीं होती। अब सरकार को सोच समझ कर ही लॉकडाउन का फैसला करना चाहिए। कर्ज व जीडीपी रेश्यो की उच्च दर चिंता की बात है, ये कम तभी होंगे, जब सरकारी खर्च व योजनाएं जमीन पर उतरेंगी।

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