भारत की भूमि पर अनेकों संत महात्मा और ज्ञानी हमारे पथ प्रदर्शक रहे हैं। लेकिन पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति में लीन आज के समाज ने उन्हें भुला दिया प्रकृति हमारी जननी है प्रकृति के साथ खिलवाड़ हमेशा मानवता को भारी पड़ी है आज कुछ ऐसा ही है जब मानव जनित एक वायरस ने पूरी मानवता को हिलाकर रख दिया है। बड़े-बड़े देश आज इसके सामने घुटने टेके हुए हैं। महाकवि सूरदास ने सैकड़ों साल पहले इसकी कल्पना की थी और लिखा था कि संवत दो हजार के ऊपर छप्पन वर्ष चढ़े।
पूरब,पष्चिम, उत्तर, दक्षिण, चहुं दिस काल फिरे।
अकाल मृत्यु जग माहिं व्यापै, परजा बहुत मरे।
सहस्त्र वर्ष लगि सतयुग व्यापै, सुख की दशा फिरै।
स्वर्ण फूल बन पृथ्वी फूले, जो गुरू का ध्यान धरे।
सूरदास हरि की यह लीला, टारे नाहिं टरे।
इसका अर्थ है कि महाकवि सूरदास ने इस काल की परिकल्पना कर ली थी। यही नहीं कई और ज्ञानी ज्योतिषियों ने ग्रहों की दशा से यह बताया था कि दो हजार बीस काफी आपदा वाला होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए हमने कुछ महान ज्योतिषियों से उनके विचार जाने -:
डॉ आचार्य विनोद कुमार के अनुसार दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से गम्भीर खतरे का सामना कर रही है और भारत में भी लोगों के जीवन को इसने प्रभावित किया इनके द्वारा की गई भविष्य वाणी के अनुसार सितम्बर और नवम्बर के बीच भारत में कोरोना वायरस समाप्त हो जाएगा इनके अनुसार जब धर्म का पतन होने लगता है। तो इस तरह की पीड़ा आती हैं। चूकि भारत भूमि संस्कारों की भूमि है, इसलिये समय- समय पर संस्कारों का परिचय हमारे देश के ऋषि मुनि करते हैं और वह हमें प्राप्त होता है। घबराने की जरूरत नहीं बस आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखें चूंकि यह वर्ष राहु का है अगर राहु की चीजों को बढ़ाते हैं जैसे- मांस- मदिरा, हिंसा तो अधर्म के कारण पतन की तरफ झुकाव बढ़ता है। इस समय एकांतवास साधना धर्म के अनुसार करनी चाहिए जिससे दैत्य रूपी कोरोना वायरस से बच सकें । राहु एक ऐसा ग्रह है जो, जो भी देता है, वह अद्भुत् देता है। सुख भी अद्भुत् देता है तो दुख भी उसी तरह देता है। विश्व की कुण्डली को अगर देखें तो कोरोना वायरस का अन्त समय अक्टूबर नवम्बर तक देखा जा रहा है। परन्तु भारत की कुण्डली में इसका असर 29 मार्च से कम होना शुरू हो जाएगा। अप्रैल पहले सप्ताह से इसका घटता प्रभाव तेजी से देखा जा सकता है। क्योंकि यह नया वर्ष धर्म का साल है इसलिये धर्म-कर्म में ज्यादा से ज्यादा समय लगाएं। अपने समग्र जीवन शैली तथा सात्विक जीवन पर वापस जाएं तो सबका कल्याण होगा।
सुप्रसिद्ध ज्योतिषी आरसी चौहान की मानें तो 24 तारीख से मंगल ग्रह के बदलने से कोरोना की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। इस महीने 29 तारीख की रात को बृहस्तपति भी अपना घर बदल रहा है। 30 मार्च से कोरोना से ग्रस्त पूरे विश्व की जनता की हालात में तेजी से सुधार होगा। और जो ग्रसित लोग हैं उनके स्वास्थ्य में भी सुधार होगा साथ ही नए मरीज कम बनेंगे। 23 तारीख से पहले 22 की शाम तक मंगल वृहस्पति और केतु ये तीनों एक राशि में थे केतु राक्षस ग्रह होने के कारण मंगल और वृहस्पति ग्रह की पूरी ताकत ले करके अपनी ताकत को बहुत ज्यादा बढ़ा लिया था और केतु की ताकत बहुत ज्यादा बढ़ने से उसका नुकसान मानव जाति को हुआ। क्यों हुआ ? इसलिये हुआ कि चन्द्रमा का सबसे बड़ा शत्रु केतु है, केतु से ही चन्द्र ग्रहण होता है। चन्द्र से सम्बन्धित मानव शरीर में जो फेफड़ों की बीमारी होती है, जैसे- निमोनिया, टीवी, सर्दी, जुकाम, फ्लू, आदि फैलता है। कोरोना भी फेफडों से सम्बन्धित बीमारी है। इसलिये इस काल में करोना को बढ़ावा मिला और पूरे विश्व में मानवीय जीवन पर इसका प्रभाव पड़ा यही वृहस्पति ग्रह 29 की रात को केतु से अलग होकर अगले घर में चले जाएंगे, मकर राशि में पहुंचते ही वृहस्पति देवता अपने से ठीक सातवां घर कर्क राशि को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे ये उनका उच्चराशि का घर है, इसका अर्थ ये निकला कि चन्द्र के घर को वृहस्पति पूरी ताकत दे जाएंगे और उनकी ताकत देने से जो पूरे विश्व में फेफड़ों से सम्बन्धित बीमारी है, वह खत्म होगी और फेफड़ों में ताकत आएगी फिर कोरोना की एक भी नहीं चलेगी तीस सितम्बर तक कोरोना पूर्ण रूप से हट जाएगा।
डॉ. सुभाष पाण्डेय, ( ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ) – का कहना है, कि रूद्र के नाराज होने से इस तरह की महामारियां फैलती हैं। ऐसे में भगवान शंकर की पूजा और मृत्युंजय महामंत्र का जप ही कल्याणकारी होता है। ओम नमः शिवाय का भी जप करें और अगर हो सके तो अघोर मन्त्र का हवन करें। मंत्र है-
”अघोरेभ्योअथ्घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः।
सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रूद्ररूपेभ्यः।।
जाने माने ज्योतिषाचार्य एवं लाल किताब के ज्ञाता आचार्य गौतम मोहन के अनुसार सत्ताईस अट्ठाईस उनत्तीस और तीस मार्च भारत के लिये ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिये बहुत कठिन है। इसके बाद इसका प्रकोप कम होता जाएगा और इकत्तीस जुलाई तक यह नष्ट हो सकता है। ज्योतिष विद्या तथा भविष्यवाणी हमारे भारतीय जीवन का अंग ही नही बल्कि पथ प्रदर्शक भी रही हैं। हमारे ज्ञानी कवि भी किसी ज्योतिष से कम नहीं जैसा कि सूरदास जी के दोहे में झलकता है। महाकवि रहीम ने भी ऐसे संकट की घड़ी में मानव के लिये एक बड़ी सीख दी और कहा-
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइ हैं, बनत न लगिहैं देर।।
आज यह बात सैकड़ों साल बाद सच साबित हो रही है। आज सिर्फ एक ही गुरू मन्त्र है घर बैठिये और अपने घर के दरवाजे पर लक्ष्मण रेखा खींच लीजिए।
— राघवेंद्र त्रिपाठी, अमित कुमार