आंदोलन जीवी अच्छे या हरामजीवी ?

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रात को भोजन करके सोने की तैयारी कर ही रहा था कि अचानक फोन किकियाने लगा। देखा तो उखरा से मुसद्दी भइया याद कर रहे हैं। कई महीनों से भइया से बात नहीं की थी इसलिए डर के मारे ऐसा लगा कि भइया खुद फोन के स्क्रीन से बाहर निकल आएंगे। हड़बड़ाते हुये फोन उठाया! जोर से पालागन किया! फिर आंख बंद कर ली! लगा कि अब तो जूता परेड होने ही वाली है। लेकिन उधर से भइया का ठहाका सुनाई दिया! हंसते हुए उन्होंने कहा-डरो मत छोटे तुम्हारा हिसाब किताब बाद में होगा। अभी तो तुम हमारी समस्या का समाधान करो! कई घण्टे से चौपाल पर भयंकर वाकयुद्ध चल रहा है। एक ओर हैं मास्टर अनोखेलाल हैं तो दूसरी तरफ मास्टर झब्बूलाल! मेरी जान में जान आई! जोर की सांस ली। फिर पूछा आखिर हुआ क्या है भइया! भइया फिर जोर से हंसे और बोले-अरे लल्ला आज दिन में मास्टर झब्बूलाल ने टीवी पर अपने प्रधानमंत्री जी द्वारा राज्यसभा में दिया गया भाषण सुन लिया था। तब से वे न जाने या जीवी जीवी किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कोई नया शब्द गढ़ा है-आन्दोलनजीवी! झब्बूलाल तब से झूम ही रहे हैं। एक आन्दोलनजीवी के साथ वे न जाने कितने जीवी ढूंढ़ लाये हैं। मसलन- श्रमजीवी, बुद्धिजीवी, परजीवी, कलमजीवी, अल्पजीवी आदि आदि। मैंने भइया को रोकते हुए पूछा कि तो इसमें समस्या क्या है।

झब्बू मास्टर ठीक ही तो कह रहे हैं! अरे समस्या तो अनोखे मास्टर ने खड़ी की है..भइया ने लंबी सांस लेते हुए कहा! मैने कहा कि भइया अनोखे मास्टर ने ऐसा क्या कर दिया जो समस्या खड़ी हो गई। भइया कुछ क्षण को मौन रहे फिर बोले-अरे भाई अनोखे मास्टर ने झब्बूलाल के तमाम जीवियों में एक और जीवी जोड़ दिया है! वह है-हरामजीवी! अनोखे मास्टर कह रहे हैं कि आजकल एक और प्रजाति हमारे देश में पनप रही है! वह है- हरामजीवी! इस प्रजाति के लोग बिना कुछ किये ठस्से से जीते हैं! बचपन से बुढ़ापे तक वे सिवा हरामखोरी के कुछ नहीं करते! बिना स्कूल गए बड़ी बड़ी डिग्रियां ले लेते हैं! दूसरों के घरों में खाते हैं! पहनते भी दूसरों का ही हैं! बातें इतनी बनाते हैं कि पूरी दुनियां में कोई मुकाबला नहीं! यही नहीं बाप दादे मेहनत करके मर गये! लेकिन श्रेय ये ले जाते हैं। ऊपर चढऩे का मौका मिलते ही घर के सब बूढ़ों को कोठरियों में ठेल दिया। ताकि न उन्हें कोई देखे न यह जाने कि मेहनत उन्होंने की और मौज ये कर रहे हैं! कहते हैं कि हम तो फकीर हैं लेकिन दिन में 6 बार परिधान बदलते हैं! लोगों के पास खाने को नहीं और ये लोगों को हगने का शऊर सिखा रहे हैं! यही नहीं कभी कहते थे कि हमारा क्या हम तो झोला उठाकर चले जायेंगे!

लेकिन सालों से इनका झोला तो दिखा नहीं पर इनके चेले क्या तो अपने झोले भरकर फुर्र हो गए क्या फिर सरकारी माल से अपने झोले और बोरे भर रहे हैं! अनोखे मास्टर कहते हैं कि हरामजीवी अपने पुरखों की कमाई को लुटा कर बड़े सेठों को मालामाल करते हैं फिर उनके माल पर पलते हैं! ये किसी को बक्शते नही हैं। न किसी को अपने बराबर आने देते हैं। खुद का घर छोड़ भागे और दूसरों के घरों में घुसे रहते हैं। और भी न जाने कितनी खूबियां गिना रहे हैं अनोखे मास्टर! मैंने कहा कि भइया अनोखे मास्टर ने जीवियों की एक और प्रजाति बताई है।इस पर झब्बू मास्टर को या आपत्ति! भइया बोले-मुद्दा तो यही है! झब्बू मास्टर आन्दोलनजीवी पर अटके हैं और अनोखे मास्टर हरामजीवी पर! दोनों पीछे हटने को तैयार नही हैं। अनोखे मास्टर कह रहे हैं कि झब्बू मास्टर जीवियों की प्रजातियां गिना रहे हैं,वे सब तो बहुत पहले से मौजूद हैं।

आन्दोलनजीवी भी कोई नई बात नही है।अगर आन्दोलनजीवी न होते तो आज संसद की हर परम्परा तोडऩे पर आमादा लोगों को यह मौका कैसे मिलता। बहस इसी मुद्दे पर है।चौपाल पर बैठे सभी लोग कह रहे हैं अनोखे मास्टर जो प्रजाति बता रहे हैं वह नई है जबकि झब्बू मास्टर आन्दोलन जीवी से आगे बढऩे को तैयार नहीं हैं। उनका टेसू वहीं अड़ा हुआ है। बात यहीं अटकी है। अब तुम्ही बताओ क्या किया जाए। अपने ज्ञानी दोस्तों से पूछो कि कौन सी प्रजाति नई है!आन्दोलनजीवी क्या फिर हरामजीवी? हमें लगता है कि तुम्हारे ज्ञानी दोस्त झब्बू और अनोखे के इस अनोखे युद्ध का अंत करा सकते हैं। जल्दी बताना! यह कह कर मुसद्दी भइया ने फोन काट दिया। अब मेरी समझ में नहीं आ रहा कि किसका पक्ष लिया जाए झब्बू क्या अनोखे का। वैसे बात तो आपने पूरी सुन ली। अब आपकी क्या राय है?

राकेश शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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