दंभ की सत्ता का एक और साल

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कहते है संकट से चीजे साफ होती है, लोगों का पता पड़ता है और स्पष्टता आती है। कोविड के संकट ने उसविरासत को जग-जाहिर कर दिया है जिसे नरेंद्र मोदी छोड़ कर जाएंगे। तमाशा आज भी होगा, चलता रहेगा लेकिनदेश की बरबादी, भूख, मौत और तबाहीकी अंतरधारा के साथ। सिलसिला चलेगा रूकेगा नहीं। आज भी संकट के बीच में ही हमें याद करना है कि नरेंद्र मोदी के दूसरे शासन काल का पहला साल पूरा हुआ। क्या आपको याद नहीं? एक साल पहले आज ही के दिन इस देश के परमप्रिय नरेंद्र मोदी ने पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा विश्वास और दंभ के साथ दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी और वह देश को बुद्धिमत्ता के साथ चलाने व लोगों के प्रति स्नेह, संवेदना, सहानुभूति दिखाते हुए उनकी सुरक्षा का भरोसा दिलाने के भाव से थी।

तब को फास्ट फारवर्ड से आज पर लाए और देखे कि कैसे लाखों लोग भूखे और असहाय सड़क पर चले जा रहे हैं, लावारिस व अनाथ से। देश भय और भारी अनिश्चितता में डूबा हुआ है, पता नहीं आने वाले वक्त में क्या होगा? चीन और पाकिस्तान के साथ लगी सीमाओं पर तनाव है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और उनकी मंडली की प्राथमिकताएं इस सबके बीच शीशे की तरफ साफ। शो चलता रहना चाहिए, तमाशा होते रहना चाहिए। दूसरे शासन काल का एक साल पूरे होने का जश्न पहले जैसा ही भव्य होगा। दस करोड़ परिवारों को प्रधानमंत्री के हस्ताक्षर वाले पत्र जाएंगे और सौ आभासी रैलियां होगी जिनसे देशवासियों को याद दिलाया जाएगा कि कश्मीर से धारा 370 खत्म हो गई है, राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हुआ तोसीएए को भी साल भर की उपलब्धियों में ध्यान रखे।

मगर हां, यह नहीं कि इस एक साल में देश की अर्थव्यवस्था डूबी, दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा हुई और नागरिक अंसतोष लोगों का गुस्सा लिए हुए था तो बिना किसी तैयारी व आगा-पीछा सोचे कोविड-19 से लड़ने के लिएजो लॉक़ड़ाउन हुआ तो उसमें पूरा देश जकड़ गया। लेकिन यह सब सोचना नहीं, इन्हे नजरअंदाज कर मनाओं जश्न! यह चमत्कार ही है कि उन सब बातों को भुलाओं, अनदेखा करों जिससेमुश्किले हुई और सोचना सिर्फ यह है कि देश में कैसे नरेंद्र मोदी लगातार लोकप्रियता लिए हुए है और कोविड बाद के आंकड़े भी बता रहे हैं कि लोगों का ‘भरोसा’ नरेंद्र मोदी को लेकर बढ़ा है। संकट के इस वक्त में जब देश के लोगों को जरूरत है कि उनका प्रधानमंत्री मोर्चा संभालें, वैसे में हमें एक ऐसा नेता प्राप्त है जो अपने दफ्तर में बैठा दुनिया के नेताओं से फोन पर चर्चाएं कर रहा है और इस बारे में ट्वीट कर लोगों को बता रहा है।

हमारा महानायक राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग कर रहा है और उन पर धीरे-धीरे जिम्मेवारी टाल दे रहा है ताकि जब हालात बिगड़े तो फिर राजनीतिक हमला बोल के साथ राज्यों के नेताओं पर ठिकरा फोड़ अपनी अपरिहार्यता पर जनता का फिर ठप्पा लगवा सकें। क्यों लोगों का पहले से ही मोदी पर भरोसा गजब का है। उन्होने लोगों के दिमाग में भारत को सोने की चीडिया बना कर बैठा दिया है। वे उसके रक्षक है और जो उन्हे मानते है वे उनकी कमान में भारत केमहान राष्ट्र और विश्व गुरु बनने की गांरटी माने हुए है। जाहिर है भारत को वह प्रधानमंत्री प्राप्त है जो लोगों के दिल-दिमाग को घूमाने की जनसंपर्कमहारथ लिए हुए है। हम एक ऐसे प्रधानमंत्री की आभा में रह रहे हैं जो लोगों को इशारों, भावनाओं और शब्दों से सतत अपनी तरफ खींचे रहने में सफल है।

जो देश के लोगों के मन में कूट-कूट कर यह भरोसा पैठा पाने में कामयाब है कि हम भाग्यशाली है जो हमारे पास एक ऐसा शख्स है जिसके पास सारे सवालों के जवाब और सारी समस्याओं का समाधान हैं। हमें ऐसा प्रधानमंत्री प्राप्त है जो जनता की उन नसों को जानता है जिन्हे छू कर मूर्ख बनाया जा सकता है, यह भरोसा पैदा किया जाता है कि वही उनका असली हीरो है। हम वाकई मूर्ख हैं। आखिर कैसी मूर्खता से पांच अप्रैल को देश के लोगों ने अपने मूर्ख होने का प्रदर्शन किया। नरेंद्र मोदी की इस अपील पर कि कोरोनावायरस को हराने के लिए रात नौ बजे, नौ मिनट घरों के बाहर निकल कर दीया और मोमबत्ती जलाएं, का भारत के लोगों ने अंधे बन कर ऐसे अमलकिया मानों जैसे किसी धर्मगुरु ने कुछ कह दिया है तो उसे टाला नहीं जा सकता है। वायरस भाग जाएगा। फिलहाल भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या पांच हजार करीब है तो एक लाख सत्तर हजार करीब संक्रमित।

वायरस तेजी से लगातार बढ़ रहा है। और वायरस के फैलने के बीच में 12 अप्रैल को इसे अवसर बताने, इससे ‘आत्म निर्भर’ और लोगों से आत्मा निर्भर बनने की अपील मोदी ने की और वह बात भी लोगों के दिल-दिमाग में जादू-मंतर की तरह उतरी। लोग उसे सच्चा होते देख रहे है। और जो उनके दिवाने है वे देखने को, समझने को तैयार नहीं है कि देश के गरीब अपने पांवों की‘आत्म निर्भरता’ कैसे सिसकते, गर्मी में झुलसते पैदल चले जा रहे है,घरों को लौट रहे है। सच्चाई या कोई भी सत्य, तथ्य, विशेषज्ञों और संस्थानों पर (संकट के वक्त में जिन पर भरोसा करना चाहिए, जिनके बूते मेडिकल लड़ाई या संकट समाधान होना चाहिए) मोदी और उनके लोगों का भरोसा कभी नहीं रहा। ये सब बिना मूल्य के, त्याज्य है। उलटे इन्हे सही बात को तोड़-मरोड़ कर पेश करने में सिद्धहस्तता हैं। उसी का परिणाम था जो कोरोनावायरस को एयरपोर्ट पर रोकने में लापरवाही हुई।

न केवल देरी और लीपापोती बल्कि पर्याप्त संख्या की टेस्टिंग के बिना ही वायरस फैलने के कर्व के फ्लैट होने, 15 मई तक वायरस के खत्म होने जैसा ढपोलशंखी हल्ला हुआ। ऊपर से विपक्ष पर यह कहते हुए निशाना कि वे राजनीति कर रहे है और हम काम! प्रधानमंत्री अब ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात और कामनहीं करते। 2014 के प्रधान सेवक ने 2020 में भारत के लोगों को सड़क पर पैदल ला दिया है उन्हेबेबस, बेसहारा छोड दिया है। हर गरीब घर लौटते हुए मन में ख्याल बना बैठा है कि “ मोदी जी हमको रोड पर ले आए।”संभव है और वह वक्त दूर नहीं है वह व्यापारी और मध्यमवर्ग तबका भी यही सोचता हुआ मिले, जिन्होने मूर्खता का प्रदर्शन कर मोदी के कहने पर थाली-ताली बजाई और दीये जला कर अपने को गौरवान्वित महसूस किया था।

देश जल्दी ही भयावह गंभीर आर्थिक संकट में फंसना है। संदेह नहीं पहले शासन काल के पांच सालों से भी ज्यादा नरेंद्र मोदी के दूसरे शासन काल का पहला साल बहुत ही खराब रहा है। कोरोना से निपटने के लिए 2020 और 2021 काजो भी अनर्थकारी घटनाक्रम है या आगे होगा वह बुनियादी तौरपर मोदी सरकार की हेंकड़ी और मूर्खता का ठप्पा लिए होगा। भले वायरस को लोग बाद के सालों में भूला दे लेकिन यह वायरस हमेशा के लिए मोदी की विरासत में ऐसा कुछ छोड़ जाएंगा जो आज के सर्वेक्षणों में जाहिर लोकप्रियता, जश्न की मौजूदा फू-फां के ठीक उलट होगा।

श्रुति व्यास
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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