प्रिय ओबामा, आपसे यह उम्मीद नहीं थी! इसलिए नहीं कि आप दो बार प्रेसिडेन्ट रहे हैं, इसलिए कि आप पीड़ित समाज से आए थे। संवेदना का जो स्तर हमने सोचा था, माफ करें उस तक आप तक नहीं पहुंच पाए। दुनियादारी के बहुत चलताऊ पैमानों पर आपने चीजों को, लोगों को आंका है। आप अपने अनुभवों के तहत अपेक्षा करते तब भी समझ में आता मगर आपने महाजनी संस्कृति के पैमाने पर तोला है कि सारी योग्यताएं हैं मगर व्यापार का जुनून नहीं है। नफा- नुकसान को समझने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है!
प्रिय ओबामा, आदर्श स्थिति में यह बहुत बड़ा गुण है कि सब कुछ जानने और क्षमताओं के बावजूद प्रभावित करने की कोई जरूरत महसूस नहीं करना। हमारे यहां इसे वीतरागी कहते हैं। सामान्य भाषा में अपनी क्षमताओं के प्रदर्शन का अनिच्छुक। सहज स्वाभाविक रूप से या जिसे जेन्टलमेनशिप कहते हैं उसमें भला आदमी कुछ दिखाना, जताना नहीं चाहता। और दूसरी बात संशय! यह तो हर सीखने वाले के लिए जिन्दगी भर जरूरी होता है। अरस्तू ने कहा था ना, मैं कुछ नहीं जानता।
बराक साहब क्या आप से ज्यादा या आपके देशवासियों से ज्यादा कोई जानता है कि मूर्खता के आत्मविश्वास का क्या मतलब होता है! माननीय ट्रंप साहब खुद को हारा हुआ मानने को अब भी तैयार नहीं हैं। वे व्हाइट हाउस कैसे छोड़ेंगे, यह अमेरिका की इन दिनों सबसे बड़ी चिन्ता है।
खैर हम आपको यह खत क्यों लिख रहे हैं? राहुल गांधी के बारे में तो इससे भी कई कई गुनी ज्यादा बुरी बातें कई बार कही गईं। भारत में उनके राजनीति में आने के साथ से ही उनके खिलाफ चरित्रहनन अभियान शुरू हो गया था। वह करीब 16 साल से लगातार चल रहा है। इस बीच 8 साल तो आप खुद उस देश के राष्ट्रपति रहे जिसकी एजेन्सियां पूरी दुनिया पर निगाह रखती है। और खास तौर पर उस भारत पर जिसकी एक प्रधानमंत्री ने आपके एक राष्ट्रपति की सातवां जहाजी बेड़ा भेजने की धमकी का मुंहतोड़ जवाब देते हुए दुनिया का नक्शा ही बदल दिया था।
तो आपका देश अमेरिका इस बात को हमेशा से जानता है कि भारत के किन नेताओं के खिलाफ उसने सबसे ज्यादा जासूसी करवाई है और किन को उस श्रेणी में रखा है जो किसी से खौफ नहीं खाते! भारत के नेताओं के
बारे ब्रीफ करते हुए आपको यह भी बताया गया होगा कि यहां के प्रमुख राजनीतिक परिवार नेहरू गांधी परिवार के हर शख्स के खिलाफ हमेशा एक चरित्रहनन अभियान चलाया जाता रहा है। पं जवाहरलाल नेहरू से लेकर इन्दिरा गांधी, राहुल तक किसी को नहीं छोड़ा गया।
डियर ओबामा क्या दुनिया में कोई ऐसा राजनीतिक परिवार है जिनके खिलाफ इतनॉ व्यक्तिगत दुष्प्रचार हुआ है? और उस परिवार ने इतनी कुर्बानियां दी हों। राहुल के पिता और दादी की ह्त्याओं के बारे में आपको मालूम ही होगा।
इन्दिरा गांधी की जब हत्या हुई तो वे प्रधानमंत्री थीं। राहुल स्कूल में थे, सैंट कोलम्बस में। तब राहुल को लेने स्कूल एक के बाद एक गाड़ियां आईं। फाल्स गाड़ियां। भारत के प्रधानमंत्री की हत्या बहुत बड़ी बात थी। परिवार को पहले से धमकियां मिल रही थीं। एक गाड़ी आती इस तरह शो करती जैसे बच्चे को बिठाया हो मगर फिर निकल जाती। इस तरह कई गाड़ियों के बाद राहुल को बिठाकर एक सफदरजंग लाया गया।
प्रिय ओबामा वह एक छोटी सी घटना क्यों बता रहा हूं ? इसलिए ताकि लडकपन, टीन एज की शुरूआत में किसी लड़के के दिलो दिमाग पर पड़े मनोविज्ञानिक असर को समझने की कोशिश करें। कुछ ही सालों बाद जब राहुल युवावस्था की शुरूआत कर रहे थे तो उनके पिता कि हत्या हुई। इन स्थितियों को क्या समझ सकते है? क्या बीती होगी? फिर इस राहुल को जब राजनीति में आना पड़ा तो दुनिया का एक सबसे बड़ा चरित्रहनन अभियान चलाया गया राहुल को पप्पू साबित करने का। यह ठीक वैसा ही था जैसे हमारे यहां दलित ऐसे होते हैं, यादव वैसे होते हैं, या आपके यहां अमेरिका में कि ब्लैक ऐसे होते हैं, एशियन वैसे होते हैं जैसे। ये नरेटिव कितने भयानक होते है कि अमेरिका में जा कर आप जैसे पीड़ित बैकग्राउंड वाले शख्स पर भी भारी असर कर गया होगा।
भाई ओबामा, हर भेदभाव से ग्रसित व्यक्ति का सम्मान है। उसके लिए विशेष भावनाएं हैं। ब्लैक के खिलाफ भेदभाव के खिलाफ एक भारतीय महात्मा गांधी ही साऊथ अफ्रिका में लड़ा था। जब आप अमेरिका के पहले ब्लैक राष्ट्रपति बने तो भारत में जो खुशी थी वह ऐसी ही थी जैसे किसी अपने को मुद्दतों बाद कोई
अधिकार मिला हो। प्रेम आप से अभी भी कम नहीं होगा। हां, मगर अब कोई अपेक्षा नहीं रहेगी। जो सोच था कि पीड़ित की संवेदना हमेशा दूसरों के लिए बनी रहेगी उस पर थोड़ी चोट आई है।
व्यक्ति आकलन का जो स्टिरियो टाइप आधार आपने चुना है उससे तकलीफ हुई कि क्या यह बात सही है कि गुलाम का आदर्श भी अपने ऊपर अत्याचार करने वाला ही होता है? शराफत को कमजोरी और चालाकी को योग्यता समझना नए दौर की समझ तो नहीं है। यह तो पुराने सामंती संस्कार हैं। जहां आप जाति, रंग, धर्म के आधार पर किसी को भी रिजेक्ट कर सकते थे।
सिर्फ एक, एक पैमाना दे रहे हैं उस पर कस कर देखना। वह यह कि क्या राहुल को कोई पी आर ऐजेन्सी चला सकती है? क्या इस नर्वस आदमी को (आपके शब्दों में) आपकी दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका भी कभी डरा सकता है? आपने कहा कि होमवर्क किया है। होमवर्क काहे का किया है यह मालूम है? बेखौफी का। आम आदमी के लिए लड़ने का। सत्ता से डरे बिना सवाल करने का। और सबसे बड़ा उन मानवीय मूल्यों को आत्मसात करने का जिनके लिए मार्टिन लुथर किंग से लेकर महात्मा गांधी तक लड़ते रहे हैं। और प्रिय
ओबामा कभी कभी आप भी उसका आभास देते रहे हैं। खैर किताब के लिए शुभकामनाएं। इतने विवादों के बाद इसे बेस्ट सेलर बनना ही है। मगर माफ करना यह भारत के संदर्भ में एक अच्छी और सच्ची किताब नहीं बन पाएगी। आशा है हमारी किसी बात को अन्यथा नहीं लेंगे और पीड़ितों के संघर्ष की पृष्ठभूमि में बात को समझने की कोशिश करेंगे। धन्यवाद! आपका शुभचिंतक एक भारतीय पत्रकार
शकील अख्तर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)