अजीब मुसीबत में फंस गए हैं, डोनाल्ड ट्रंप ! अमेरिका के लगभग सभी बड़े शहरों में उनके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। वाशिंगटन डी.सी. में तो व्हाइट हाउस को हजारों लोगों ने ऐसा घेरा कि ट्रंप डर के मारे अभेद्य बंकर में जा छुपे। दर्जनों लोग इन प्रदर्शनों में मारे जा चुके हैं। सैकड़ों भवनों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया है। लोगों ने दुकानों और घरों में घुसकर सामान लूट लिया है।
ट्रंप ने प्रदर्शनकारियों को 10 साल की गिरफ्तारी, लाठियों और गोलियों का डर भी दिखा दिया है। विभिन्न राज्यों के राज्यपालों को इस अराजकता के लिए वे दोषी ठहरा रहे हैं। अमेरिका-जैसे संपन्न और सुशिक्षित देश में यह सब क्यों हो रहा है ? खास तौर से तब जबकि कोरोना से हताहत होनेवालों की संख्या दुनिया में वहीं सबसे ज्यादा है ? इसका कारण वैसे तो मामूली दिखाई पड़ता है लेकिन है, वह बहुत गहरा। अभी तो हुआ यह कि मिनियापॉलिस के एक गोरे पुलिस अफसर ने एक अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लाएड को जमीन पर पटककर उसके गले को घुटने से इतनी देर तक दबाए रखा कि उसने दम तोड़ दिया। वह चिल्लाता रहा कि उसका दम घुट रहा है लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी। इस जानलेवा दुर्घटना का वाीडियो जैसे ही सारी दुनिया में फैला, प्रदर्शन भड़क उठे। उनमें गोरे और काले सभी शामिल हैं। ये प्रदर्शन सिर्फ अमेरिका में ही नहीं हो रहे हैं, आस्ट्रेलिया, ईरान, यूरोपीय और इस्लामी देशों में भी हो रहे हैं। जार्ज का दोष यह बताया जाता है कि वह 20 डॉलर का नकली नोट चलाने की कोशिश कर रहा था।
अमेरिका के 33 करोड़ लोगों में अश्वेतों की संख्या 4 करोड़ के करीब है। ये लोग विपन्न, वंचित और उपेक्षित हैं। ज्यादातर हाड़तोड़ काम यही लोग करते हैं। गरीबी के साथ-साथ ये लोग अशिक्षा और गंदगी के भी शिकार होते हैं। अभी कोरोना से हताहत होनेवालों में भी ज्यादा संख्या इन्हीं की है। अमेरिका में हो रही कोरोना मौतों का 50 प्रतिशत अश्वेतों का है जबकि गोरों का प्रतिशत सिर्फ 20 प्रतिशत है। अमेरिका की जेलें भी अश्वेतों से भरी रहती हैं। अब से 51 साल पहले जब मैं न्यूयार्क की कोलंबिया युनिवर्सिटी में पढ़ता था, तब मेरी कक्षा में एक भी छात्र या एक भी शिक्षक अश्वेत नहीं होता था। बराक ओबामा अश्वेत होते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति जरुर बन गए लेकिन मार्टिन लूथर किंग के बलिदान के बावजूद अमेरिका में आज तक अश्वेतों को बराबरी का दर्जा नहीं मिला है। ट्रंप को अश्वेत लोगों की खास परवाह नहीं है। वे गोरों के थोक वोट के दम पर जीते हैं। इस घटना को वे अपने पक्ष में भुनाने से बाज नहीं आएंगे। वे इन प्रदर्शनों को भड़काने का दोष ‘अंतिफा’ नामक वामपंथी संगठन के मत्थे मढ़ रहे हैं। लेकिन इतने व्यापक अश्वेत हिंसक प्रदर्शन अमेरिका में पहली बार हो रहे हैं।
डॉ वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)