हमें उस भगवान से ही विनती करनी चाहिए। वही हमें देने वाला है, दुनिया के जीव तो एक जरिया है। बाकी उसकी मर्जी से ही मिलता है। इसलिए उस कुल मालिक को हमेशा याद रखो। हर रोज भजन बंदगी सिमरन करो, तब जाकर हमारा परमार्थ और स्वार्थ दोनों बन पाएंगे। इस विषय में एक लघु कथा है। एक राजा था, वह जब पूजा के लिए मंदिर जाता, तो 2 भिखारी उसके दाएं और बाएं बैठा करते। दाईं ओर वाला कहता, ए भगवान! तूने राजा को बहुत कुछ दिया है, मुझे भी दे दे। बाईं ओर वाला कहता, ऐ राजा! भगवान ने तुझे बहुत कुछ दिया है, मुझे भी कुछ दे दे। दाईं ओर वाला भिखारी बाईं ओर वाले से कहता, भगवान से मांग! नि:संदेह वही सबसे अच्छा सुनने वाला है। बाईं ओर वाला जवाब देता, चुप कर मूर्ख। एक बार राजा ने अपने मंत्री को बुलाया और कहा कि मंदिर में दाईं तरफ जो भिखारी बैठता है, वह हमेशा भगवान से मांगता है। तो नि:संदेह भगवान उसकी जरूर सुनेगा। लेकिन जो बाईं तरफ बैठता है, वह हमेशा मुझसे विनती करता रहता है। तो तुम ऐसा करो कि एक बड़े से बर्तन में खीर भर के उस में अशर्फियां डाल दो और वह उसको दे आओ।
मंत्री ने ऐसा ही किया। अब वह भिखारी मजे से खीर खाते-खाते दूसरे भिखारी को चिड़ाता हुआ बोला, हूं बड़ा आया, भगवान देगा। यह देख राजा से मांगा, तो मिल गया ना? खाने के बाद जब उस का पेट भर गया, तो उस ने खीर से भरा बर्तन उस दूसरे भिखारी को दे दिया। और कहा, ले पकड़, तू भी खाले, मूर्ख! अगले दिन जब राजा पूजा के लिए मंदिर आया तो देखा कि बाईं तरफ वाला भिखारी तो आज भी वैसे ही बैठा है। लेकिन दाईं तरफ वाला गायब है। राजा ने चौंक कर उससे पूछा,क्या तुझे खीर से भरा बर्तन नहीं मिला? भिखारी, जी मिला था, क्या शानदार खीर थी। मैंने ख़ूब पेट भर कर खाई! राजा, फिर? भिखारी, फिर वह जो दूसरा भिखारी यहां बैठता है, मैंने उसको दे दी। मूर्ख हमेशा कहता रहता था, भगवान देगा, भगवान देगा! राजा मुस्कुरा कर बोला, बेशक, भगवान ने उसे दे ही दिया! इस कथा का सार यही है कि भगवान की मर्जी से भक्त को मिलता है आदमी धैर्य के साथ भगवान से मांगे तो वह सबकी मनोकामना पूर्ण करता है। जो भगवान से नहीं मांगते, उसे कुछ नहीं मिल पाता।
-एम. रिजवी मैराज