कर्म के अनुसार मिलता है फल

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समाज में कभी एकरूपता नहीं आ सकती, योंकि हमारे कर्म कभी भी एक समान नहीं हो सकते। और जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन समाज, संसार की सारी विषमताएं समाप्त हो जाएंगी। ईश्वर ने हर एक मनुष्य के भाग्य में लिख दिया है कि किसको कब और क्या और कहां मिलेगा। पर यह नहीं लिखा होता है कि वह कैसे मिलेगा। इस विषय में एक लघु कथा है कि एक बार एक शिव भत धनिक शिवालय गया। पैरों में महंगे और नए जूते होने पर सोचा कि क्या करूं? यदि बाहर उतार कर जाता हूं तो कोई उठा न ले जाए और अंदर पूजा में मन भी नहीं लगेगा। सारा ध्यान् जूतों पर ही रहेगा। उसे बाहर एक भिखारी बैठा दिखाई दिया। धनिक बोला, भिखारी से कहा कि भाई मेरे जूतों का ध्यान रखोगे, जब तक मैं पूजा करके वापस न आ जाऊं भिखारी ने हां कर दी।

अंदर पूजा करते समय धनिक ने सोचा कि हे प्रभु! आपने यह कैसा असंतुलित संसार बनाया है? किसी को इतना धन दिया है कि वह पैरों तक में महंगे जूते पहनता है तो किसी को अपना पेट भरने के लिये भीख तक मांगनी पड़ रही है! कितना अच्छा हो कि सभी एक समान हो जायें। वह धनिक निश्चय करता है कि वह बाहर आकर भिखारी को 100 का एक नोट देगा। बाहर आकर वह धनिक ने देखा कि वहां न तो वह भिखारी है और न ही उसके जूते ही। धनिक ठगा सा रह गया। वह कुछ देर भिखारी का इंतजार कर रहा कि शायद भिखारी किसी काम से कहीं चला गया हो। पर वह नहीं आया। धनिक दु:खी मन से नंगे पैर घर के लिए चल दिया। रास्ते में फुटपाथ पर उसने देखा कि एक आदमी जूते चप्पल बेच रहा है।

धनिक चप्पल खरीदने के उद्देश्य से वहां पहुंचा तो या देखता है कि उसके जूते भी वहां रखे हैं। जब धनिक दबाव डालकर उससे जूतों के बारे में पूछता हो वह आदमी ने बताया कि एक भिखारी उन जूतों को 100 रुपये में बेच गया है। धनिक ने वहीं खड़े होकर कुछ सोचा है और मुस्कराते हुए नंगे पैर ही घर के लिए चल दिया। उस दिन धनिक को उसके सवालों के जवाब मिल गए थे। यह हमारे कर्म तय करते हैं। जैसे कि भिखारी के लिये उस दिन तय था कि उसे 100 रुपये मिलेंगे, पर कैसे मिलेंगे यह उस भिखारी ने तय किया। हमारे कर्म ही हमारा भाग्य, यश, अपयश, लाभ, हानि, जय, पराजय, दु:ख, शोक, लोक, परलोक तय करते हैं। हम इसके लिये ईश्वर को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं।

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