वीर सावरकर पर सियासत

0
371

जिसने मातृभूमि को आजाद कराने के वास्ते जिंदगी के बेहतरीन साल सेलुलर जेल में गुजारे, जहां हर वक्त अंधेरा और दमघोंटू माहौल, ऐसे स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को कमतर साबित करने के लिए किसी भी हद तक जाने की बेताबी वाकई हतप्रभ नहीं, व्यथित करती है। दलीय सियासत के अपने सरोकार होते हैं, उसके लिए मुद्दों की कभी कोई कमी नहीं होती बस दृष्टि चाहिए होती है। लेकिन आजादी के नायकों पर अनर्गल आक्षेप से तो खुद की भी गरिमा गिरती है। वैचारिक विपन्नता का नतीजा है शायद, देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के सेवादल ने अपनों के बीच वीर सावरकर पर विवादित पुस्तिका वितरित की है, उसमें प्रस्तुत विवरण इस लायक भी नहीं है कि उसकी शदश: चर्चा की जाए। इससे तो खुद शब्द की भी अपनी मर्यादा कमतर होती है। बहरहाल, उसी पुस्तिका को लेकर संग्राम छिड़ा हुआ है। मध्य प्रदेश में भाजपा कांग्रेस पर हमलावर है पर इसी के साथ यह मुद्दा राष्ट्रव्यापी हो गया है। खासतौर पर महाराष्ट्र में इसको लेकर विशेष प्रतिरोध शुरू हो गया है। भाजपा इसी मुद्दे पर शिवसेना को भी घेर रही है क्योंकि शिवसेना के घोषणापत्र में वीर सावरकर को भारत रत्न दिलाये जाने की मांग प्रमुखता से दर्ज है। सेना के संस्थापक बाल साहब ठाकरे को सावरकर के प्रखर हिन्दुत्व का बड़ा पैरोकार माना जाता रहा है। खुद उद्धव ठाकरे ने भी इसी राह का अनुसरण किया है।

सावरकर को लेकर महाराष्ट्र में एक विलक्षण आदर भाव है। यही वजह है कि इस विवाद पर खुद महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता कुछ बोलने से कतरा रहे हैं। महाराष्ट्र में सत्ता का मौजूदा समीकरण ऐसा है कि इसके सभी घटकों के लिए ऊहापोह की स्थिति है। पर इसमें सर्वाधिक धर्म संकट राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए है। सत्ता संभाले कुछ ही दिन हुए है, कुछ भी मन का बोलने से पहले कई बार सोचने की मजबूरी पैदा हो गई है। यही वजह है, आमतौर पर मुखर रहने वाले ठाकरे अब तक खामोश है। हालांकि संजय राऊत ने जरूर इस पर अपनी राय रखते हुए गेंद मुख्यमंत्री के पाले में डाल दी है। सत्ता से वंचित रह गई भाजपा इसी ऊहापोह पर निशाना साध रही है। पर कांग्रेस के लिए राहुल गांधी की आक्रामकता के बाद यह मुद्दा भाजपा और संघ को घेरने का आसाना नुस्खा हो गया है। हिन्दुत्व को लांक्षित करने की राजनीति कांग्रेस सरीखे दल के लिए सेकुलर मूल्यों का संवर्धन हो गई है। इसीलिए जब उसके वैचारिक अछूतवाद के खिलाफ बात होती है तब विचलित होना स्वाभाविक है। कांग्रेस इसी सिंड्रोम के चलते वीर सावरकर को निशाना बनाती है। राहुल गांधी का इस मामले में ट्रैक रिकार्ड सर्वविदित है, उन्हें विवाद में संवाद का सुख मिलता है। उनके रणनीतिकारों ने शायद समझाया हुआ है कि सार्वजनिक तौर पर सावरकर और संघ को जितना घेरा जाएगा उतनी ही सत्ता की राह आसान होगी।

हालांकि खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी वीर सावरकर को देश का महान सपूत बताया था। पर ध्रुवीकरण की सियासत के लिए देश के नायकों और प्रतीकों को उधार की विचारधारा के आधार पर लांक्षित करना सेकुलरवाद के नाम पर फैशन हो गया है। यह अलग बात कि बाद में कोर्ट लताड़े तो मजबूरी में माफी भी मांग ली जाती है। देश के नायक तो सभी के होते हैं उनके प्रति उसी तरह सम्मान भाव रखना चाहिए जैसे हम अपने कुंटुब के पूर्वजों कर रखते हैं। उन्हें सत्ता की सियासत में ना तो घसीटा जाना चाहिए और ना ही छवि धूमिल करने की कोशिश करनी चाहिए। इसे समाज में अच्छा संदेश नहीं जाता। वीर सावरकार के त्याग और समर्पण की चर्चा होनी चाहिए, जेल में उन्हें जो यातनाएं मिली उस पर बात होनी चाहिए ताकि नई पीढ़ी अपने नायकों को सही परिप्रेक्ष्य में जान सके। हर देश-समाज के अपने नायक होते हैं, प्रेरणा पुरूष होते हैं। ब्रितानी हुकूमत ने जो किया, सो किया और उसी सोच के साये में सुनियोजित ढंग से छवि भंजन का प्रयास हुआ तो हुआ नए भारत में ऐसी किसी भी कोशिश को रोके जाने की जरूरत है। मौजूदा सत्ता प्रतिमान से निपटने के बहुतेरे मुद्दे और रास्ते हो सकते है। लेकिन अपने नायकों को कमतर साबित करने के तरीकों से बचा जाना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here