महात्मा गांधी ने कहा तो था

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दिल्ली के रामलीला मैदान में रविवार को प्रधानमंत्री ने अपनी रैली में नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर देशभर में चल रहे प्रदर्शनों की जमकर आलोचना की थी। अपने लगभग डेढ़ घंटे लंबे भाषण में प्रधानमंत्री ने महात्मा गांधी के बयान का जि़क्र किया, जिसकी ख़ूब चर्चा हो रही थी। उन्होंने कहा था कि महात्मा गांधी जी ने कहा था पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू और सिख साथियों को जब लगे कि उनको भारत आना चाहिए तो उनका स्वागत है। ये मैं नहीं कह रहा हूं पूज्य महात्मा गांधी जी कह रहे हैं। ये क़ानून उस वक्त की सरकार के वायदे के मुताबिक़ है। नागरिकता संशोधन अधिनियम में एक धर्म विशेष को नज़अंदाज़ करने का आरोप सरकार पर लगाया जा रहा है और इसका देशभर में विरोध किया जा रहा है। इस अधिनियम के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफग़ानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम समुदायों के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। पीएम मोदी गांधी के इस बयान का जि़क्र करते हुए विपक्ष और देश से यह कह रहे थे कि ऐसा महात्मा गांधी आज़ादी के समय से चाहते थे। हमनें प्रधानमंत्री के इस दावे की पड़ताल शुरू की. हमने महात्मा गांधी के लेखों, भाषणों, चिट्टियों को खंगालना शुरू किया। इसके बाद हमें कलेटेड वर्क ऑफ़ महात्मा गांधी के वॉल्यूम 89 में इस बयान का जि़क्र मिला। 26 सितंबर, 1947 को यानी आज़ादी के लगभग एक महीने बाद प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी ने ये बात कही थी लेकिन इतिहास के जानकार और गांधी फि़लॉसफ़ी को समझने वाले इस बयान के संदर्भ और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहे हैं।

दरअसल, लाहौर के रहने वाले पंडित ठाकुर गुरुदत्त नाम के एक शख्स ने महात्मा गांधी को बताया था कि कैसे उन्हें ज़बरदस्ती लाहौर छोडऩे पर मजबूर किया गया? वह गांधी जी की इस बात से काफ़ी प्रभावित थे कि हर शख्स को अंत तक अपने जन्म स्थान पर रहना चाहिए लेकिन वो चाह कर भी ये नहीं कर पा रहे थे। इस पर 26 सितंबर, 1947 को महात्मा गांधी ने अपनी प्रार्थना सभा के भाषण में कहा था, आज गुरु दत्त मेरे पास आए। वो एक बड़े वैद्य हैं। आज वो अपनी बात कहते हुए रो पड़े। वो मेरा सम्मान करते हैं और मेरी कही गई बातों को अपने जीवन में उतारने का संभव प्रयास भी करते हैं लेकिन कभी-कभी मेरी बातों का हक़ीक़त में पालन करना बेहद मुश्किल होता है। अगर आपको लगता है कि पाकिस्तान में आपके साथ न्याय नहीं हो रहा है और पाकिस्तान अपनी ग़लती नहीं मान रहा है तो हमारे पास अपनी कैबिनेट है जिसमें जवाहर लाल नेहरू और पटेल जैसे अच्छे लोग हैं। दोनों देशों को आपसी समझौता करना होगा। आखिर ये यों नहीं हो सकता? हम हिंदू और मुसलमान कल तक दोस्त थे। या हम इतने दुश्मन बन गए हैं कि एक दूसरे पर यक़ीन नहीं कर सकते? अगर आप कहते हैं कि आप उन पर यक़ीन नहीं करते तो दोनो पक्षों को हमेशा लड़ते रहना होगा। अगर दोनों पक्षों के बीच कोई समझौता नहीं हो पाता है तो कोई चारा नहीं बचेगा। हमें न्याय का रास्ता चुनना चाहिए।

अगर न्याय के रास्ते पर चलते हुए सभी हिंदू और मुसलमान मर भी जाएं तो मुझे परेशानी नहीं होगी। अगर ये साबित हो जाए कि भारत में रहने वाले साढ़े चार करोड़ मुसलमान छिपे रूप से देश के खिलाफ काम करते हैं तो मुझे ये कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि उन्हें गोली मार देनी चाहिए। ठीक इसी तरह अगर पाकिस्तान में रहने वाले सिख और हिंदू ऐसा करते हैं तो उनके साथ भी यही होना चाहिए। हम पक्षपात नहीं कर सकते। अगर हम अपने मुसलमानों को अपना नहीं मानेंगे तो या पाकिस्तान हिंदू और सिख लोगों को अपना मानेगा? ऐसा नहीं होगा। पाकिस्तान में रह रहे हिंदू-सिख अगर उस देश में नहीं रहना चाहते हैं तो वापस आ सकते हैं। इस स्थिति में ये भारत सरकार का पहला दायित्व होगा कि उन्हें रोजग़ार मिले और उनका जीवन आरामदायक हो लेकिन ये नहीं हो सकता कि वो पाकिस्तान में रहते हुए भारत की जासूसी करें और हमारे लिए काम करें। ऐसा कभी नहीं होना चाहिए और मैं ऐसा करने के सख्त खिलाफ हूं। लेकिन इससे पहले आठ अगस्त 1947 को महात्मा गांधी ने भारत और भारतीयता पर जो कहा वो सबसे ज़्यादा उल्लेखनीय है -स्वाधीन भारत हिंदूराज नहीं, भारतीय राज होगा जो किसी धर्म, संप्रदाय या वर्गविशेष के बहुसंख्यक होने पर आधारित नहीं होगा। दिल्ली पी.सी.सी के अध्यक्ष आसिफ़ अली साहेब ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को लेकर महात्मा गांधी को एक चिट्टी लिखी थी। उर्दू में लिखी इस चिट्टी में उन्होंने गांधी को बताया था कि 3000 के लगभग आरएसएस नाम के संगठन से जुड़े लोग लाठी ड्रिल करते हुए नारे लगाते हैं, हिंदुस्तान हिंदू का, नहीं किसी और का। इसके जवाब में महात्मा गांधी ने कहा था,हिंदुस्तान हर उस इंसान का है जो यहां पैदा हुआ और यहां पला-बढ़ा। जिसके पास कोई देश नहीं, जो किसी देश को अपना नहीं कह सकता उसका भी।

इसलिए भारत पासरी, बेनी इसराइली, भारतीय ईसाई सबका है। स्वाधीन भारत हिंदूराज नहीं, भारतीय राज होगा जो किसी धर्म, संप्रदाय या वर्ग विशेष के बहुसंख्यक होने पर आधारित नहीं होगा, बल्कि किसी भी धार्मिक भेदभाव के बिना सभी लोगों के प्रतिनिधियों पर आधारित होगा। ऐसे में गांधी के इन दोनों बयानों को अलग करके देखने उचित नहीं है। मुसलमान और सिख। को लेकर महात्मा गांधी के इस बयान के जि़क्र पर गांधी और दर्शन के जानकार उर्विश कोठारी कहते हैं-जब गांधी जी ने ये कहा था तो देश को आज़ाद हुए एक महीने ही हुए थे। कई लोग अभी भी पलायन कर ही रहे थे लेकिन आज़ादी के 72 साल बाद इस बयान को नरेंद्र मोदी क्यों पूरा करना चाह रहे हैं मुझे नहीं पता। अब दोनों देशों के लोग व्यवस्थित हो चुके हैं। अगर इन्हें गांधी के बताए मार्ग पर चलना ही था तो गांधी कभी मुसलमानों को अलग नहीं करते। उन्होंने कहा था भारत उसका भी है जिसका कोई देश नही वो बाहर से आने वाले मुसलमानों को भी शरण देने की बात कहते। इस तरह से अपनी सुविधा और राजनीति के मुताबिक गांधी जी की कही बात को तोड़-मरोड़ कर कहना गांधी जी का अपमान है। वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर और दक्षिणपंथी राजनीति की ओर झुकाव रखने वाले संगीत रागी कहते हैं कि जो लोग गांधी के इस बयान को वर्तमान समय में अप्रासंगिक मान रहे हैं।

वो राजनीतिक रूप से मोटिवेडेट लोग हैं। गांधी का ये बयान वर्तमान समय के लिए बिल्कुल उचित है। पाकिस्तानी मुसलमान या तीनों देश के मुसलमान भारत के लिए ख़तरा साबित होंगे। इतिहास के जानकार अव्यक्त कहते हैं,हिंदू या सिख शरणार्थियों के विषय में गांधीजी के वक्तव्य को तात्कालिक संदर्भों से काटकर प्रस्तुत किया जा रहा है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि जो लोग यह कर रहे हैं, वे अप्रत्यक्ष रूप से द्विराष्ट्र सिद्धांत को भारत की ओर से भी आधिकारिक रूप से मुहर लगाने का प्रयास कर रहे हैं। यह हमेशा से उनके एजेंडे में रहा है और इसमें वह गांधीजी के नाम का ग़लत इस्तेमाल करने की बेकार कोशिश कर रहे हैं। वे ऐसा कहने की कोशिश कर रहे हैं कि गांधीजी पाकिस्तान के हिंदू और सिख समुदाय के लोगों को भारत में बसाने के हामी थे। ध्यान दीजिए कि 26 सितंबर, 1947 को दिए गए गांधीजी के उस वक्तव्य को अगर हम पूरा पढ़ें तो वे ऐसा कह रहे हैं कि पाकिस्तान के जो हिंदू या सिख अल्पसंख्यक पाकिस्तान के प्रति वफ़ादार होकर नहीं रह सकते, उन्हें वहाँ रहने का अधिकार नहीं है। महात्मा गांधी अंत तक विभाजन को उस रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए 25 नवंबर, 1947 के प्रार्थना प्रवचन में गांधीजी रिफ्यूजी या शरणार्थीशब्द तक को अस्वीकार कर देते हैं। उसकी जगह निराश्रित और पीडि़तजैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. और ऐसा वे दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों के लिए करते हैं। दरअसल महात्मा गांधी ने ये कहा था कि पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू और सिख साथियों को जब लगे कि उनको भारत आना चाहिए तो उनका स्वागत है। लेकिन इस बयान का संदर्भ और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

कीर्ति दुबे
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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