नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंसा की आग भड़कने के बाद इसने दिल्ली में दस्तक देते हुए यूपी के अलीगढ़ और लखनऊ को भी अपने आगोश में ले लिया। इस पर जमकर सियासत भी होने लगी है। हालांकी इस कानून के अस्तित्व में आने से यहां के किसी भी नागरिक का हित नहीं प्रभावित हो रहा, फिर भी विरोध है यही बात समझ से परे प्रतीत होती है। जहां तक पूर्वोत्तर का प्रश्न है तो यह सही है कि वहां के निवासियों ने अपनी संस्कृति, भाषा और अस्मिता के साथ ही आर्थिक अवसर को बचाए रखने के लिए दशकों लम्बा संघर्ष घसपैठियों के खिलाफ किया था। वहां की शरूआती हिंसा के बाद शांतिपूर्ण ढंग से लोग अपनी चिंता जता रहे हैं। यह जरूर है कि जिस तरह शांतिपूर्ण प्रदर्शन का दायरा विस्तृत हो रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए सरकार को उपायों ,सहित सचेत रहना होगा।वैसे गृहमंत्री ने एक बार फिर ,स्पष्ट किया है कि सुझाव मिलने पर कानून के कुछ प्रावधानों में संशोधन हो सकता है।
इस पृष्टभूमि में पूर्वोत्तर के राज्यों की चिंता समझ में आती है, पर देश के अन्य राज्यों में, वो भी खासकर जामिया और अलीगढ़ विश्वविद्यालय में इस नये कानून से किस बात की दिक्कत है ? जो रविवार को जामिया में हुआ, वो दृर्भाग्यपूर्ण था उसकी निंदा की जानी चाहिए। सवाल है, शांतिपूर्ण प्रदर्शन किन स्थितियों में हिंसक हो गया कि पुलिस को लाठी भांजनी पड़ी ? जेएनयू से लेकर डीयू तक एकजुटता दिखाने के नाम पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाये जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। छात्रों का कहना है कि पुलिस ने खुद आग लगाई है। पुलिस आरोप को गलत बता रही है। आरोप यह भी है कि जामिया परिसर में बिना पूर्व अनुमति के पुलिस ने छात्र-छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार किया है। खुद जामिया की महिला वीसी ने मामले की न्यायिक जांच की मांग की है। बेशक जांच होनी चाहिए। जांच इसकी भी होनी चाहिए कि जब हिंसक प्रदर्शन हो रहे थे तब कुछ पार्टियों के नेतागण वहां क्या कर रहे थे ? इस कानून के विरोध में वो पार्टियों के नेतागण वहां क्या कर रहे थे ?
इस कानून के विरोध में वो पार्टियां सक्रिय दिखाई दे रही हैं, जो संसद में विधेयक को पारित होनी से नहीं रोक पाईं।पीएम नरेन्द मोदी ने सोमवार को ठीक ही सवाल उठाया है कि किसी भी विषय पर सहमति-असहमति होना तो लोकतांत्रिक समाज की खूबसूरती है। लेकिन विरोध के नाम पर पब्लिक प्रापर्टी को आग के हवाले कर देना यह कैसी मानसिकता है ? यह कानून तो संसद में बहुमत से बना है, लोगों ने घंटों पक्ष-विपक्ष में बहस की है, अपने सुझाव और राय दी है। तब यह विरोध का औचित्य ,समझ में नहीं आता। यूपी में भी यह आग विकराल रूप ना ले, इसके लिए योगी सरकार को अतिरित्त्क सचेतता की जरूरत होगी। फिलहाल, अलीगढ़ में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। लखनऊ में नदवा के छात्र भी कानून की मुखालफत में ,सड़क पर उतरे, यह चिंताजनक है। इस कानून को लेकर एक भ्रमपूर्ण विमर्श खड़ा करने की चल रही कोशिश पर विराम लगाये जाने कीआवश्यकता है। इसे अकारण हिंदू-मुसलमान के खांचे में रखकर कुछ ताकतें सियासी हित साधने की फिराक में हैं, उन पर भी नजर रखे जाने की जरूरत हे। जरा-सी चूक भारी पड़ सकती है। देश हित के खिलाफ जो भी साजिश कामयाब करने की कोशिश हो रही है, उसे नाकाम करने के साथ ही, उसमें शामिल चेहरों को बेनकाब करने की भी जरूरत है। सवाल देश का है, इसकी अस्मिता को छेड़ने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती।कि