सुस्त अर्थव्यवस्था में विकास कहां!

0
193

बीजेपी नीत एनडीए की चुनौती देश की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं। भले मोदी सरकार अपने आधिकारिक बयान में मंदी के सवाल को नजरंदाज करे लेकिन इस बाबत किये जाने वाले उपाय सारी चिंता प्रगट कर देते हैं। अभी हाल में एक सवाल के जवाब में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा वह उपायों के बारे में बात कर सकती हैं, बाकी जीएसटी की दरें बढ़ रही हैं या नहीं इस बारे में उनके यहां कोई चर्चा नहीं है। जीएसटी को लेकर जो राजस्व वृद्धि का अनुमान लगाया गया था, वो फेल साबित हो रहा है। तमाम कोशिशों के बाद भी नंबर दो की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण आय छुपाये जा रहे हैं तो ऐसे में राजस्व पर प्रतिकूल असर पडऩा तय है। इसीलिए स्लैब बदलने की चर्चा चल रही है। जो डिफाल्टर हैं उन पर शिकंजा कसने की तैयारी भी है। सवाल मानसिकता का है, उसे भला कौन सरकार बदल पायेगी। यह सच है कि हम जिस भी भूमिका में हैं, यदि उसका ईमानदारी से निर्वाह होता है तो वही देश की सच्ची सेवा है। पर ये स्थितियां आज नहीं पैदा हुई है, पहले भी थीं। यह भी एक बड़ी वजह है कि सरकार के इरादे जमीन पर पूरी तरह नहीं उतर पाते हैं। अतीत में भी इसी कमजोरी के चलते मनरेगा जैसा महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट बंदरबांट की भेंट चढ़ गया। ठीक है योजना से लोगों को कुछ समय के लिए काम तो मिला लेकिन जमीन पर उसका असर दिखाई देता तो ज्यादा अच्छा होता।
पंचायत के स्तर पर ही गोलमाल प्रभावी हो तो मकसद की चर्चा ही बेमानी है। नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक इसी तरह की धरातलीय कमियों के चलते स्थिति और भयावह हुई। इसमें सरकारी और गैरसरकारी -सभी स्टेक होल्डर्स जिम्मेदार हैं, यह बात और है कि अपनी भूमिका में खामी स्वीकारना बेहद मुश्किल होता है। विसंगति यह है कि सत्ता की रेस में यह महत्वपूर्ण पहलू अनदेखा और उपेक्षित रह जाता है। पर इसका यह मतलब भी नहीं है कि विपक्ष खामियों की तरफ इशारा न करे। मौजूदा दिक्कत यह है कि विपक्ष हमले के जोश में महापुरुषों के बंटवारे पर आमादा है। वैचारिक सहमतियों – असहमतियों के आधार पर महापुरुषों के योगदान की मीमांसा हो रही है जिसका कोई मतलब ही नहीं निकलता। दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस की भारत बचाओ रैली थी, जहां राहुल गांधी-प्रियंका गांधी और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की दहाड़ थी। आर्थिक सुस्ती -मंहगाई पर निशाना सटीक था लेकिन चर्चा में महापुरुष वीर सावरकर हैं। महाराष्ट्र में गठबंधन पर वार-पलटवार से विपरीत असर पडऩा प्रारम्भ हो गया है। महाराष्ट्र से बीजेपी दूर की गयी थी पर ऐसी बयानबाजी से उसके समीप आने से इंकार नहीं किया जा सकता। शिवसेना के मुख्यमंत्री रहे मनोहर जोशी ने बीते दिनों कहा था बीजेपी से पुराना रिश्ता रहा है, आगे फिर साथ आ सकते हैं।

हालांकि फडणवीस गठबंधन तोडऩे का तोहमत शिवसेना पर जब-तब लगते रहते हैं। वैसे सियासत में जो कहा जाता है आमतौर पर उसके विपरीत ही देखने में आता है। चर्चा है राहुल की दुबारा ताजपोशी होनी है। पार्टी कार्यकर्ता-नेता सभी यही मांग कर रहे हैं। वैसे रैली में उनके तेवर से भी स्पष्ट हो गया है आने वाले दिनों-महीनों में कमान संभालने के बाद राहुल गांधी 2014 वाले फार्म में पूरी तरह से लौटेंगे। उनको बताया गया है आक्रामकता ही मोदी विरोध की धुरी बनने में मददगार होगी। इस बीच देश की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की निर्मला सीतारमण की कोशिशें भले ही अब तक रंग नहीं लाई हों, लेकिन उनके काम की चर्चा वैश्विक स्तर पर जरूर हो रही है। फोर्ब्स ने निर्मला सीतारमण को विश्व की 100 सबसे पावरफुल महिला की लिस्ट में शामिल किया है। हालांकि विकास दर चिंता का सबब बना हुआ है। रेटिंग एजेंसी मूडीज इंवेस्टर्स सर्विस ने पिछले शुक्रवार को झटका देते हुए साल 2019 के लिए विकास दर के अनुमान को घटा दिया है। एजेंसी ने भारत की विकास दर 5.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। हालांकि , एजेंसी के अनुसार, साल 2020 और 2021 में अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी और विकास दर क्रमश: 6.6 फीसदी और 6.7 फीसदी रहेगी। मूडीज ने रिपोर्ट में कहा कि रोजगार की धीमी वृद्धि दर का उपभोग पर असर पड़ रहा है।

इससे पहले जारी किए गए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों से अर्थव्यवस्था में सुस्ती गहराने के संकेत मिले हैं। जुलाई- सितंबर, 2019 की तिमाही के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर घटकर महज 4.5 फीसदी रह गई, जो लगभग साढ़े छह साल का निचला स्तर है। यह लगातार छठी तिमाही है जब जीडीपी में सुस्ती दर्ज की गई है। इससे पहले जनवरी-मार्च, 2013 तिमाही में जीडीपी विकास दर 4.3 फीसदी रही थी, वहीं एक साल पहले की समान अवधि यानी जुलाई-सितंबर, 2018 तिमाही में यह सात फीसदी रही थी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर पांच फीसदी रही थी। इसी तरह जापान की वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी नोमुरा ने भी इस साल दिसंबर तिमाही का विकास दर का अनुमान घटाकर 4.3 फीसदी किया था। हालांकि नोमुरा के अनुसार, वर्ष 2020 की पहली तिमाही में इसमें सुधार आएगा और यह 4.7 फीसदी पर रह सकती है। इस संदर्भ में नोमुरा की मुख्य अर्थशास्त्री (भारत और एशिया) सोनल वर्मा का कहा कि , गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संकट के कारण डोमेस्टिक लोन अवेबिलिटी की स्थिति गंभीर बनी है। इससे पहले पांच दिसंबर 2019 को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी जीडीपी का अनुमान घटाया था। केंद्रीय बैंक के अनुसार, साल 2019-20 के दौरान जीडीपी में और गिरावट आएगी और यह 6.1 फीसदी से गिरकर पांच फीसदी पर आ सकती है। इससे पहले एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने वित्त वर्ष 2019- 20 के लिए देश की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 6.50 फीसदी से घटाकर 5.10 फीसदी कर दिया था।

प्रमोद कुमार सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here