संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी

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श्री गणेश
भगवान श्री गणेश

संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत से होता है सर्व संकटों का शमन
श्रीगणेशजी के दर्शन-पूजन से मिलता है सुख-समृद्धि
चन्द्रोदय होगा रात्रि 8 बजकर 18 मिनट पर

सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीगणेशजी की अपार महिमा है। कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ करने से पहले श्रीगणेशजी स्मरण करके उनकी पूजा-आराधना सर्वप्रथम करने का विधान है। सुख-समृद्धि के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत अत्यन्त चमत्कारिक है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि पौष कृष्णापक्ष की चतुर्थी तिथि रविवार, 15 दिसम्बर को प्रातः 7 बजकर 18 मिनट पर लगेगी जो कि उसी दिन रविवार, 15 दिसम्बर को अर्द्धरात्रि के पश्चात 5 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत रविवार, 15 दिसम्बर को रखा जाएगा, चन्द्रोदय रात्रि 8 बजकर 18 मिनट पर होगा। चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि के दिन संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। श्रीगणेशजी की आराधना रात्रि में चन्द्र उदय होने के पश्चात चन्द्रमा को अर्घ्य देकर की जाती है।

ऐसा करें पूजा – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के दिन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होना चाहिए। पत्पश्चात अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के उपरान्त अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर श्रीगणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार से पूजा-आराधना करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अत्यन्त प्रिय है, इसलिए दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अर्पित करके पूजा-आराधना करनी चाहिए।

किस पाठ से होती है मनोकामना की पूर्ति – श्रीगणेशजी की विशेष अनुकम्पा के लिए उनकी महिमा में यशगान के रूप में श्रीगणेश स्तुति, श्रीगणेश संकटनाशन, श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश सहस्त्रनाम, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित अन्य स्तोत्र आदि का पाठ अवश्य करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेशजी से सम्बन्धित मन्त्र का जप करना विशेष फलदायी रहता है। ऐसी पौराणिक व धार्मिक मान्यता है कि श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का पातःकाल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का शमन होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का नाश होता है, यदि विधि-विधानपूर्वक एक हजार पाठ किए जाएं तो मनोकामना की पूर्ति के साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत महिला-पुरुष तथा विद्यार्थियों के लिए समानरूप से फलदायी है। जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली के अनुसार ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तरदशा में अनुकूल फल की प्राप्ति न हो रही हो तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाना चाहिए। जिन्हें अपने जीवन में संकटों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी आज के दिन श्रीगणेश जी का दर्शन-पूजन करके व्रत रखना चाहिए। श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से समस्त संकट दूर होते हैं तथा जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली का संयोग बनता है।

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