मोदी सरकार ने पड़ोसी मुल्कों के गैर मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का कदम फिर उठाया है। कैबिनेट से नागरिकता संशोधन कानून को मंजूरी मिल चुकी है। अगले हफ्ते लोकसभा में पेश हो सकती है। पर इसे लेकर अभी से सियासत तेज हो गयी है, लाजिमी भी है। कांग्रेस, तृणमूल, सपा-बसपा सहित कई विरोधी दलों ने इस बिल के पीछे के मंतव्य को लेकर पुरजोर मुखालफत की है। हालांकि बीजेपी इसे अगले आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपने सबसे बड़े एजेंडे के रूप में देख रही है। यह बात और है कि विपक्ष इसे समाज को बांटने वाला बता रहा है। नये बिल से अफगानिस्तान, बांग्लादेश को आसानी से भारत की नागरिकता मिल सकेगी। यदि एक साल पहले भी कोई भारत आया हो और उसे नागरिकता चाहिए तो मिल सकेगी, पहले कम से कम 11 वर्ष यहां निवास करने की शर्त थी। जाहिर है, इससे हजारों गैर मुस्लिम प्रवासियों को लाभ मिल सकेगा। वैसे पूरी तस्वीर तो सदन के पटल पर साफ होगी। विपक्ष का तो विरोध है ही कि इस तरह देश का जो सेकुलर ढांचा है, उसमें रद्दोबदल की कोशिश हो रही है।
विपक्ष का तर्क है कि पड़़ोसी देशों में जो भी कोई प्रताडि़त महसूस करने पर भारत आना चाहता है, उसे जाति-धर्म के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। दरअसल, वो शरणार्थी है और भारत का स्थायी नागरिक होना चाहता है तो उसमें जाति- धर्म की बंदिश नहीं होनी चाहिए। लेकिन भाजपा ठीक इसके विपरीत सोचती है। उसका मानना है कि पड़ोसी मुल्कों में प्रताडि़त किये जाने पर हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी व ईसाई के लिए भारत एक स्वाभाविक पड़ाव के रूप में दिखाई देता है। यदि भारत में उन्हें स्थान ना मिले तो वे किसी और देश की ओर रुख करेंगे। जबकि जिस धर्म विशेष को लेकर सम्पूर्ण विपक्ष लामबंद हो रहा है, उसके लिए अवसर की कमी नहीं है। पार्टी इसी तर्क के साथ आगे बढ़ रही है। विपक्ष एक बार फिर इस बिल की हवा निकालने के प्रयास में है। बदली राजनीतिक परिस्थितियों में शिवसेना एनडीए का हिस्सा नहीं है और महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस के सहयोग से सत्ता में है। इसलिए अगले कुछ दिनों में यह देखना दिलचस्प होने वाला था कि किस ढंग से शिवसेना के सांसद नागरिकता संशोधन विधेयक पर पेश आते हैं। पहले तो शिवसेना भी इसी तरह के बिल के समर्थन में थी। अब उसके रुख में बदलाव होता है या नहीं, यह बहुत कुछ बिल की दिशा दशा तय करेगा।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी विचारधारा हिन्दुत्व है और वह उससे कभी भी समझौता नहीं करेंगे। संजय राउत ने साफ कर दिया है कि उनका समर्थन नागरिक संशोधन विधेयक को रहेगा। वैसे विपक्ष की तरफ से तो जो चुनौती है, वो है ही। इससे भी बड़ी चुनौती भाजपा के लिए पूर्वोत्तर राज्यों से है। इस बिल को लेकर उन राज्यों में जबर्दस्त विरोध है। हालांकि गृहमंत्री अमित शाह की कोशिश है, पूर्वोत्तर के जितने भी स्टेक होल्डर हैं उनको विश्वास में लिया जाये लेकिन यह काम इतना आसान नहीं होगा। ऐसा इसलिए कि पूर्वोत्तर राज्यों को लगता है कि इस कानून से उनकी सांस्कृतिक, भाषाई और सांस्कृतिक पहचान खत्म होगी। आजीविका का संकट पैदा होगा। अभी असम में जब नेशनल रजिस्टर सिटीजनशिप तैयार हो रहा था तो काफी प्रतिरोध हुआ। खुद राज्य की भाजपा के नेताओं को विरोध में आना पड़ा। अब तो वहां नये सिरे से गणना कराये जाने की मांग उठ रही है। बहरहाल, अगला हफ्ता इस मुद्दे पर काफी गहमागहमी भरा रहने वाला है। अब तो कांग्रेस दोबारा नये जोश में है। पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम जेल से बाहर हैं और महंगाई, अर्थव्यवस्था से लेकर प्रस्तावित नगारिक संशोधन बिल पर काफी तार्किक और असरदार हमले होने संभावित हैं। मोदी सरकार के लिए इस बिल के साथ आगे बढऩा इतना आसान नहीं होगा।