प्रदूषण को लेकर इससे पहले कभी सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इतनी सख्त टिप्पणी सुनने को मिली हो, शायद नही। पर सोमवार को कोर्ट ने दिल्ली की सरकार से कहा कि बारूद से जनता घुटकर क्यों करे। विस्फोटक से उड़ा दो। यह सगत लहजा उस समय सामने आया, जब पराली पर प्रतिबंध के आदेश का पंजाब में पालन नहीं हो रहा। इसी मामले में यूपी के मुख्य सचिव को भी लताड़ लगाई। हालांकि यूपी में पराली को लेकर योगी सरकार ने दंड का प्रावधान रखा है। फिर भी इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं। राज्य सरकार की तरफ से इस मामले में एक हजार प्राथमिकी दर्ज किए जाने की जानकारी देते हुए यह भी बताया गया है कि अब तक एक करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया जा चुका है। सख्ती के बावजूद इस तरह के मामले में संज्ञान में आ रहे हैं। खुद सरकार मान रही है कि कुछ जिले ऐसे हैं जहां पराली जलाये जाने की घटनाएं सर्वाधिक हैं इनमें बाराबंकी, शाहजहांपुर और लखीमपुर का विशेष रूप से उल्लेख हुआ है वैसे जिला स्तरीय अफसरों को इन मामलों पर निगरानी रखने को कहा गया है।
इस बारे में किसानों के बीच पराली को लेकर जागरूकता भी फैलाई जा रही है। दरअसल इस मौसम में पानी, खरीफ फसल की कटाई के बादरबी की बुवाई के लिए किसान खेतों में पराली जला देना सुविधाजनक समझते हैं। तब यह ध्यान नहीं रहता कि इसका पर्यावरण पर कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यूं तो प्रदूषण फैलने के कई कारण होते हैं लेकिन उसमें तकरीबन 10- 15 फीसदी हिस्सेदारी पराली की भी होती है यह संकट इन दिनों में इसलिए भी गंभीर और चुनौतीपूर्ण हो जाता है कि धुएं कि स्थिति पैदा होने से आमजन के लिए घुटनभरी परिस्थिति में सामान्य दिनचर्या निपटाना कठिन हो जाता है विशेष रूप से वृद्ध और बच्चों के लिए तो यह स्थिति काफी विक टपूर्ण हो जाती है। दिल्ली, लखनऊ , कानपुर और पब्लिकी यूपी के कई जनपदों में हवा का स्तर इतना खराब हो जाता है कि खासकर सांस के रोगियों की तो जान पर बन जाती है। अभी कुछ दिन पहले तक यूपी के कई जिलों में हवा का स्तर काफी खराब हो गया था। इधर जरूर कहीं-कहीं बारिश होने और तेज हवा चलने से स्थिति सुधरी है।
लखनऊ जैसे शहर में तो सडक़ किनारे पेड़ों पर पानी के फव्वारे चलाकर धुएं से निपटने का जतन किया गया था। शुक्र है इन दिनों राजधानी की हवा चिंताजनक स्तर पर नहीं है। यह बात और कि ट्रैफिक के पीक आवर्स में जरूर हवा का स्तर बिगड़ जाता है। पर्यावरण संरक्षण तो सबकी सामूहिक जिम्मेदारी होती है सिर्फ इसे लेकर किसान ही नहीं सोचेंए वे लोग भी सोचें जो बड़ी-बड़ी डीजल चालित वाहनों से सफर करते हैं। उन उद्यमियों को भी अपने स्तर पर सोचने और तद्नुसार अमल करने की जरूरत है, ताकि प्रदूषण कारक स्थितियों से पहले से ही निपटा जा सके। इसके अलावा भी जरूरी है कि हम सबके लिए वृक्षारोपण सिर्फ नारा बनकर न रह जाए बल्कि जीवन का महत्वपूर्ण कर्मकांड भी बने। बहुतायत वृक्ष हों तो हवा भी साफ.-सुथरी हो सकती है आम तौर पर शहरों में प्रदूषण एक बड़ी समस्या और चुनौती हो सकती है। हम अपने आस- पास इसकी शुरू आत कर सकते है। गमलों में फूल खिलाएं, सजाएं अच्छी बात है लेकिन वृक्षारोपण करें। घर के पास संभव न हो तो पार्कों में इसकी शुरू आत कर सकते हैं। आबादी बढ़ रही है। नगरीकरण बढ़ रहा है और जंगल लगातार कम होते जा रहे हैं। ऐसे में तारतम्यता स्थापित करने के लिए आगे आना होगा। कोर्ट का चिंताजनित आक्रोश हम सबका साझा आक्रोश होना चाहिए।