जनसंपर्क के गुरू एडवर्ड एल बार्नेस ने ठीक एक सौ साल पहले 1920 में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि खबर ही असली विज्ञापन है। खबरों की ताकत विज्ञापन से ज्यादा होती है और अगर ठीक तरीके से खबरों का प्रबंधन किया जाए तो आम आदमी के दिमाग को बेहतर तरीके से प्रभावित किया जा सकता है। उन्होंने बाद में ‘क्रिस्टिलाइजिंग पब्लिक ओपिनियन’ नाम से किताब लिखी। कहा जाता है कि हिटलर के प्रचार मंत्री जोसेफ गोयबल्स ने उसे कई बार पढ़ा था।
बार्नेस ने एक बार सिगरेट के प्रचार के लिए एक इवेंट आयोजित की। उन्होंने कोई एक दर्जन महिलाओं को स्टेज पर बुला कर उनसे सिगरेट जलवाई। इस इवेंट को नाम दिया- टॉर्चेज ऑफ फ्रीडम! उन दिनों अमेरिका में भी महिलाओं के सिगरेट पीने का चलन कम था। सो, मीडिया में यह बड़ी खबर बनी और सिगरेट कंपनी को विज्ञापन के मुकाबले इस खबर से कई गुना ज्यादा फायदा हुआ।
बाद में दुनिया भर की सरकारों ने एडवर्ड एल बार्नेस के तरीकों और सिद्धांतों का इस्तेमाल अपने प्रचार के लिए किया। भारत में भी मौजूदा सरकार खबरों के प्रबंधन से ही अपने प्रचार पर फोकस किए हुए है। तभी समकालीन भारत के सबसे प्रमुख सार्वजनिक बुद्धिजीवियों में से एक अरुण शौरी ने इस सरकार के पिछले कार्यकाल में कहा था कि सरकार का काम सिर्फ सुर्खियों का प्रबंधन है।
असल में सुर्खियों के प्रबंधन के कई फायदे हैं। एक फायदा तो यह है कि इससे अपना प्रचार होता और दूसरा फायदा यह है कि निगेटिव खबरों से लोगों का ध्यान भटकाया जाता है। चूंकि अब सरकार को मुश्किल में डालने वाली घटनाएं ज्यादा होने लगी हैं इसलिए ध्यान भटकाने वाले इवेंट आयोजित करने और उनकी सुर्खियां बनाने वाले काम भी ज्यादा होने लगे हैं।
सोचें, इस समय सरकार को मुश्किल में डालने वाली कितनी घटनाएं हैं? देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष में देश की आर्थिक विकास दर पांच फीसदी रहेगी। बाकी एजेंसियां भी विकास दर का अनुमान घटा रही थी पर वे अभी 5.8 फीसदी के आसपास हैं। पर एसबीआई ने इसे पांच फीसदी तक घटा दिया। क्या कहीं यह खबर प्रमुखता से आई है?
जिस समय एसबीआई ने यह अनुमान जाहिर किया उसी समय महाराष्ट्र के राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश भेज दी और दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट की बैठक बुला ली।
इससे दो-तीन दिन पहले दुनिया की मशहूर रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की रेटिंग डाउनग्रेड की। उसने भारत को स्थिर से निकाल कर निगेटिव अर्थव्यवस्था वाले देशों की श्रेणी में डाल दिया। पर तब भी खबर यह चल रही थी कि राज्यपाल भाजपा को सरकार बनाने के लिए बुला रहे हैं।
प्याज की कीमत पूरे देश में 60 रुपए किलो से ज्यादा है और यह स्थिति पिछले करीब दो महीने से है। पर कुछ साल पहले जिस मसले पर सरकार बदल गई थी वह मीडिया में चर्चा का विषय नहीं है क्योंकि मीडिया के लिए कोई नया इवेंट तैयार कर दिया जाता है।
जैसे अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया। कई दिनों तक देश इसके खुमार में रहा। सोनिया व राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की एसपीजी सुरक्षा हटा दी गई। कई दिन तक मीडिया में इसी पर चर्चा होती रही। नेहरू म्यूजियम एंड मेमोरियल लाइब्रेरी से कांग्रेस नेताओं को हटा दिया गया तो मीडिया के साथ-साथ पार्टियां भी इसी की बहस में उलझी रहीं। इसी बीच करतारपुर कॉरीडोर का उद्घाटन आ गया। अब संविधान लागू होने के 70 साल होने जा रहे हैं, जिसके मौके पर संसद में उत्सव होगा, साझा सत्र आयोजन होगा। राज्यसभा का ढाई सौवां सत्र होने वाला है। सो, उस मौके पर भी जश्न का आयोजन होगा।
देश में बौद्धिक विमर्श का केंद्र रहे जेएनयू में हॉस्टल, मेस और अकादमिक फीस बढ़ा कर छात्रों को उसके आंदोलन में उलझाया गया है। कहीं भगवान राम की प्रतिमा बन रही है तो कहीं सीता माता की भव्य प्रतिमा बनने वाली है और अयोध्या में राम मंदिर तो कंबोडिया के अंकोरवाट से भी बड़ा बनने वाला है। और हां, इसी बीच दिल्ली में नई संसद, नया सचिवालय, नया सेंट्रल विस्टा आदि भी बनने वाले हैं।
सो, देश के लोग इन बातों में मशगूल रहें बाकी तो जो हो रहा है, सो हो ही रहा है। देश में मंदी की स्थिति ऐसी है कि बिजली की खपत 13 फीसदी तक कम हो गई है पर उससे किसी को क्या मतलब है! 90 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं तो क्या हो गया? बड़े बड़े देशों में ऐसी छोटी छोटी घटनाएं होती रहती हैं! असली चीज यह है कि पाकिस्तान कंगाल हो रहा है!
अजीत द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं