एक सच भूख और कुपोषण भी

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भारत कारोबार सुगमता में विश्व रैंकिंग में ऊपर पायदान पर पहुंचता है तो समूचे देश में इसका ढिंढोरा पीटा जाता है। पर जब दुनिया की एजेंसियां भूख व कुपोषण और बच्चों की हालत पर रिपोर्ट जारी करती है तो सरकार और सत्तारूढ़ दल से लेकर मीडिया तक हर आदमी आंकड़ों पर आंकड़े जारी करने वालों पर सवाल खड़े करने लगते हैं। यह पिछले पांच साल की परिघटना है। पर इससे सचाई नहीं बदल सकती है। सचाई यह है कि भारत भूख के वैश्विक सूचकांक में दुनिया के सबसे पिछड़े देशों से भी पीछे है। बोत्सवाना, बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी स्थिति भारत से बेहतर है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 102 नंबर पर है। पाकिस्तान 94 और बांग्लादेश 88वें स्थान पर है। कई अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों में भी भारत से बेहतर स्थिति है। यह रिपोर्ट कुल 120 देशों के अध्ययन के आधार पर तैयार की गई है, जिसमें भारत 102 नंबर पर है। पिछले साल भारत 103 नंबर था। यानी एक साल में एक स्थान का सुधार हुआ है। वह सुधार भी किन कारणों से हुआ है, इस बारे में पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है। वह किसी सरकारी पहल से हुआ है यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है।

सोचें, यह कितने शर्म की बात है कि आजाद की 72 साल बाद भी इस देश में बड़ी संख्या में लोग भूख और कुपोषण का शिकार होते हैं। भूख का वैश्विक सूचकांक बनाने के लिए कई पैमानों पर अध्ययन किया गया है। कुपोषण एक पैमाना है तो बच्चों की बीमारी, उनका कम वजन का होना, उनका अविकसित रह जाना जैसे कई और पैमाने हैं। हर पैमाने पर भारत का प्रदर्शन बहुत खराब है। इस सूचकांक के साथ ही संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ ने बच्चों के ऊपर एक रिपोर्ट पेश की है, जिसमें कहा गया है कि भारत के आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनिसेफ ने दुनिया भर के देशों के बच्चों पर एक रिपोर्ट तैयार की है। यूनिसेफ ने 20 साल में पहली बार ऐसी रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के कुल बच्चों में से आधे कुपोषण के शिकार हैं। इसका कहना है कि पांच साल तक की उम्र के आधे से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं। इस मामले में भी दक्षिण एशिया का हर देश भारत से बेहतर है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और भूटान भी भारत से बेहतर हैं।

यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल तक की उम्र 54 फीसदी भारतीय बच्चे या तो अविकसित रह गए हैं, बीमार हैं या उनका वजन सामान्य से कम है। दक्षिण एशिया में सबसे अच्छी स्थिति श्रीलंका की है, जहां 28 फीसदी बच्चे इस श्रेणी में आते हैं। बहरहाल, कुपोषण का आकलन करने वाले इन तीनों पैमानों पर भारत की स्थिति बेहद खराब है। अगर आंकड़ों को अलग अलग करके देखें तो और तस्वीर साफ होती है। यूनिसेफ के अध्ययन के मुताबिक भारत में पांच साल तक के 35 फीसदी बच्चे अविकसित रह गए हैं। 17 फीसदी किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त हैं और 33 फीसदी बच्चे सामान्य से कम वजन वाले हैं। भारत में सिर्फ दो फीसदी बच्चे की सामान्य से ज्यादा वजन के यानी मोटे हैं। सारी दुनिया के विकसित देश बच्चों के मोटापे की समस्या झेल रहे हैं, जबकि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में आधे बच्चे कुपोषण और भूख, बीमारी से जूझ रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता को सेवा बना कर कई अभियान छेड़े। यह अच्छी बात है कि स्वच्छता अभियान चला, हर घर शौचालय बनाने की योजना चली और शौचालय बने भी, स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान भारत योजना बनी और इससे लाभ लेने वालों का भारी भरकम आंकड़ा भी पेश किया जा रहा है। पर हकीकत यह है कि शौचालय और सफाई के साथ साथ लोगों तक पौष्टिक भोजन पहुंचाना पहली जरूरत है। सरकार को सबसे पहले इस पर ध्यान देना चाहिए।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट से जाहिर हुआ है कि भारत में छह महीने से लेकर 23 महीने तक के बच्चों में सिर्फ 9.6 फीसदी बच्चे ही ऐसे हैं, जिनको इस उम्र के लिए न्यूनतम निर्धारित भोजन मिल पाता है। सोचें, सौ में से 90 बच्चों को न्यूनतम निर्धारित भोजन नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में सरकार की पहली जिम्मेदारी इसमें सुधार की होनी चाहिए। भारत के लिए यह ज्यादा चिंता की बात इसलिए है क्योंकि भारत एक लोकतंत्र है और हमेशा शासन की बेहतर व्यवस्था रही है। भारत के नीचे जो देश हैं जैसे हैती, अफगानिस्तान, यमन आदि ऐसे देश हैं, जो युद्धग्रस्त हैं या जहां शासन की व्यवस्था अच्छी नहीं है।

भारत में लंबे समय से भूख और कुपोषण की स्थिति में सुधार के प्रयास हो रहे हैं। लेकिन स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। हैरानी की बात है कि नाइजर और सियरा लियोन जैसे देशों में भारत के मुकाबले बहुत तेज सुधार हुआ है। सन 2000 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में नाइजर को 52.1 और सियरा लियोन को 53.6 अंक मिले थे और उनकी स्थिति सबसे खराब देशों में थी। उस समय भारत का स्कोर 38.8 था। करीब 20 साल बाद भारत का स्कोर 30.3 है, जबकि नाइजर का 30.2 और सियरा लियोन का 30.4 है। इससे जाहिर होता है कि भारत में सुधार की दर बहुत धीमी है। कहने को भारत सबसे ज्यादा युवाओं का देश है और बच्चे इसका भविष्य हैं। पर ऐसे कुपोषित बच्चों से देश का कैसा भविष्य बनेगा? सो, सरकार को पौष्टिक भोजन, मातृत्व सुरक्षा और स्वास्थ्य पर तत्काल और प्राथमिकता के साथ ध्यान देने की जरूरत है।

शशांक राय
लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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