जादूगरनी के चक्कर में इमरान घनचक्कर

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साल भर पहले इमरान खान जब सत्ता में आए थे तो वे वाकई भीख जैसी मिन्नतें मांगते हुए थे। तकरीबन बीस साल तक लगातार हारने, राजनीतिक गुमनामी में धक्के खाने के बाद इमरान सत्ता तक पहुंचे तो लपक कर उन्होने पाकिस्तान को चलाने वाली दो सबसे बड़ी ताकतों- अल्लाह और सेना से मिन्नतें मांगी और उन्हें खुश रखने की नीति बनाई।

इमरान की हालिया पत्नी बुशरा मेनका हैं। वे कोई अचानक संयोग से उनके जीवन में नहीं आईं, न ही इसके पीछे रोमांस के किस्से-कहानी हैं। पिंकी पीरानी के नाम से मशहूर बुशरा एक महिला पीर हैं, उन्हें एक संत के रूप में देखा जाता है और उनके प्रशंसकों और अनुयायियों की लंबी सूची है। 2013 में चुनावों में हार के बाद इमरान ने उनसे आध्यात्मिक मार्ग-दर्शन लेना शुरू किया। वैनिटी फेयर के सितंबर के अंक में पत्रकार आतिश तासीर ने अपने लेख में बताया है कि कैसे वे तंत्र-मंत्र और जादू-टोने से सुर्खियां बटोर रही हैं, उनके पास दो जिन्न हैं जिनसे वे दियासलाई बनवा देती हैं। अपने को पैंगबर के अवतार में बताती हुईं बुशरा ने ये तक कह दिया था कि उन्हें सपने में आवाज आई थी कि अगर इमरान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनना है तो उसके लिए पहले जरूरी होगा कि वे किसी अच्छी महिला से निकाह करें।

बुशरा पहले से शादीशुदा थीं और उनके पांच बच्चे हैं। उनके मन और दिमाग में जो सपना आया था, वह कह रहा था कि इमरान खान को उनसे शादी रचाने की जरूरत है। इसलिए उन्होंने इमरान से कहा था कि अगर वे उनसे शादी रचाएंगे तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन जाएंगे।

इस तरह की किस्सागोई, अफवाहें पाकिस्तान में हर तरफ फैलीं और सुर्खियां बटोरती हुई है। मंत्रियों से लेकर वरिष्ठ राजनयिकों, पत्रकारों और मनोरंजन करने वाले तक इससे इमरान खान की बदलती तकदीर देखते रहे हैं।

दूसरी ओर, चुनाव प्रचार में इमरान ने सेना को संतुष्ट करने के लिए आक्रामक शैली अपनाई। लोगों और सेना का ध्यान खींचने के लिए इमरान खान ने हर तरह का पासा फेंका। उन्होंने रोजगार, विकास, सशक्तीकरण और देश के नौजवानों का जीवनस्तर बेहतर बनाने जैसे वादे करते हुए नए पाकिस्तान का सिक्का चला। इससे दुनिया में संदेश गया कि इमरान संजीदा है और उनको वाकई मदद होनी चाहिए। हवा बनी कि सेना इमरान खान के साथ है और वह उन्हें सत्ता में लाने का मन बना चुकी है। यहीं से इमरान की तकदीर बदली और पिछले 23 साल से वे जो चाह रहे थे, वह उन्हें हासिल हुआ- पाकिस्तान की सत्ता का शीर्ष पद।

जैसे-जैसे वक्त गुजर रहा है, इमरान खान का भीख मांगना जारी है। अभी तक आईएमएफ और विश्व बैंक से पैसे की भीख मांग रहे थे ताकि मुल्क को कर्ज से उबार कर विकास की दिशा में बढ़ा सके। लेकिन अब वे कश्मीर के लिए भीख मांगते नजर आ रहे हैं। कह रहे हैं कि दुनिया कश्मीर का संज्ञान ले, उसकी तरफ देखे। यह बिडंबना ही है कि खुद उनका देश आर्थिकी, राजनीतिक स्थिरता, और खासतौर से मानवाधिकारों के मामले में बहुत ही पीछे चला गया है। पाकिस्तान में जीवन जीना खतरों में घिरा रहा है। लेकिन इमरान खान की सत्ता में तो यह और ज्यादा बढ़ा है। बावजूद इसके, इमरान खान के लिए कश्मीर मुख्य बिंदु बन गया है।

सवाल है क्यों? इसके लिए दिमाग ज्यादा खपाने की जरूरत नहीं है। पहली बात तो यही है कि इमरान ने साल भर पहले जो चुनावी वादे किए थे, वे उन पर लौट रहे हैं। पिछले साल पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर 3.3 फीसद तक गिर गई थी, जो पिछले नौ साल में सबसे कम हो गई थी, देश का व्यापार और वित्तीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। इमरान मात्र एक साल के भीतर 16 अरब डॉलर का कर्ज ले चुके हैं जो कि 1947 में पाकिस्तान की आजादी के बाद से किसी भी वित्तीय वर्ष में लिए जाने वाला अब तक का सबसे बड़ा कर्ज है। दूसरा यह कि विपक्ष और मीडिया को कुचला जा रहा है। कुछ प्रमुख सांसदों और इमरान सरकार के कटु आलोचकों को निशाना बनाया जा रहा है। उन्हे जेलों में ठूंसा जा रहा है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि इमरान खान का जवाबदेही अभियान राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाकर विपक्ष को चुप करना है।

विपक्ष की खबरें नहीं देने के लिए मीडिया पर भारी दबाव है। बड़े पत्रकार सरकार के खिलाफ लिखने से बच रहे हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है, उन पर हमले हो रहे हैं। सत्ता में आने से पहले इमरान खान ने जनजातीय क्षेत्रों में सैन्य कार्रवाई के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था और पाकिस्तानी नेतृत्व पर आरोप लगाया था कि वह अमेरिका के साथ मिल कर क्षेत्र में अशांति पैदा कर रहा है और पाकिस्तान को रणभूमि में तब्दील कर दिया है। लेकिन आज वही कार्यकर्ता जिनके साथ मिल कर कभी इमरान ने पख्तूनों के दमन के खिलाफ अभियान चलाया था और मंच साझा करते थे, वे सरकार के दमन का शिकार हो रहे हैं और पाकिस्तान के सीमाई इलाकों में चलने वाले इस अभियान को अमेरिका का पूरा समर्थन हासिल है।

तभी इमरान लोगों की नापसंद बनने लगे। उनकी पहचान मौका-परस्त नेता के रूप में बनी और इसी हताशा-निराशा में वे जीत याकि लडाई के लिए दुस्साहस भरे कदम उठाने में नहीं हिचक रहे। अब उन्हें कश्मीर नजर आ रहा है। दुनिया में पाकिस्तान को मुसलमानों के अगुआ के रूप में पेश करने के साथ वे भारत के खिलाफ गोलबंदी में जुट गए हैं, ताकि कट्टरपंथियों के साथ-साथ सेना का भी पुख्ता समर्थन बना रहे।

इसी रणनीति में उन्होंने छलपूर्वक अपने लोगों का ध्यान बांटा है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान पाकिस्तान के हालात और गलत कारनामों से हटाकर कश्मीर पर केंद्रित किया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में वे ज्यादातर वक्त कश्मीर पर ही बोले। उनके भाषण में एक तरह की निराशा भी झलक रही थी, आंखों में एक तरह का खौफ था। भाषण से लगा कि इमरान खान एक ऐसे देश के नेता हैं जो किसी ‘मकसद’ के लिए नहीं बल्कि अपनी जिंदगी के लिए भीख मांग रहे हैं। अंतरराट्रीय मीडिया में चाहे उनके इंटरव्यू हों या फिर अखबारों के संपादकीय पेज, सब जगह यही छपा है कि पाकिस्तान के बाइसवें प्रधानमंत्री परेशान हैं। भारत क्योंकि पाकिस्तान से बात नहीं करेगा इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ नहीं है।

कुल मिलाकर एक घुटे देश का नेता जब एक मुक्त देश के वैश्विक नेता के साथ बैठता है तो वह प्रार्थना करता नजर आता है क्योंकि उसके दिलो-दिमाग में खौफ और आंखों में चिंता है। इस साल जुलाई में जब इमरान डोनाल्ड ट्रंप से मिले थे और कश्मीर पर ट्रंप जो कह-सुन रहे थे, तो इमरान माला फेरने वाली मुद्रा में दिखे थे। इसे देख कर कोई भी कह सकता है कि इस्लामिक दुनिया के नेता को तौर पर पाकिस्तान को पेश करने खासतौर से कश्मीर के मुद्दे को उठाते हुए भी वे अपना डर छिपाने या अपने को धार्मिक बताने से रोक नहीं पा रहे है। वे संकट में घिरे हुए और चिंता है कि कैसे जान बचाई जाए। आने वाला वक्त इमरान के लिए ज्यादा क्रूर होगा क्योंकि इसके कोई संकेत नहीं है कि सत्ता के लिए पाले जिन्न से वे मुक्ति की छटपटाहट में है। वे फंसेगें और देश को भी फंसाएंगे।

श्रुति व्यास
लेखिक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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