जांच-समितियां या कमीशन सत्य पर किया गया लेपन है, जो ऊपर से डाला जाकर पोलों को ढक देता है। अनजाने रोग के मरीज की कब्र है, जो अपनी बीमारियों सहित दफन हो जाता है। जांच-समिति अपराधियों की फर्म का शोरूम है, जहां प्रचार-सामग्री बांटी जाती है। रिसेप्शन रूम है, जहां आपको हाथ मिलाकर लौटाया जाता है। पूरी साजिश अंदर के कमरों में चलती है। जांच-समिति वास्तविकता पर चढ़ा पलस्तर है, रोगन है, पॉलिश है। जांच-समिति मोटा परदा है, जो सूर्य की उपस्थिति नकार आपको ठंडे अंधेरे में रख सकता है। जांच-समिति चांदी का वर्क है, ऊपर डला हरा धनिया है, खोपरा है, मिठाई पर पड़ा पिश्ता है, ऊपर रखी चेरी है। जांच-समिति विषकन्या का श्रृंगार है। हत्यारों की मुस्कान है। चोरों की भोली सफाई है। जांच-समिति अखबार और इतिहास के बीच की खाई है। बफर जोन है। जांच-समिति बांधी गई हवा है।
सत्य में आया दिलचस्प घुमाव है। जांच-समिति मीठा भम्र है, जो दूसरों के साथ खुद को भी दिया जाता है। जांच- समिति राजा के घर ऋषियों द्वारा आयोजित यज्ञ है। हवन है। यहां स्वाहा करने के लिए हर सामग्री उपलब्ध है। शब्द गुंजाना और आकाश में धुआं फैलाना इसका लक्ष्य है। जांच-समिति अपराध के सिंहासन के सामने डुलाया जाता श्वेत चंवर है। झूठों द्वारा चोरों को प्रदत्त प्रमाणपत्र है। जांच-समिति एक हंसी है, कहकहा है। खाली बैठे षड्यंत्रकारियों की चकल्लस है। सांस लेने के लिए अपराधियों का विश्रामगृह है। जांच समिति अपराध और दंड के बीच का निरर्थक समय है, जो एक हो भुलाने और दूसरे को क्षमा करने में सहायक होता है जांच के लिए बनी समिति एक ज्यामिति है, जो अपराध के अनिश्चित कोणों को जोड़कर जाल रच वही सिद्ध करती है, जो होना था। जांच-समिति अपराध और न्याय के बीच दूरियां सुनिश्चित करने वाला एक समीकरण है, जो अंततः ‘एक्स’ का मूल्य जितना नहीं है, वह बताता है। जांच-समिति स्वार्थ की बही पर लगा चालाकी का अंगूठा है।
जांच-समिति खुसफुसाहटों पर हावी हो जाने वाला कानफोड़ू संगीत है। वास्तविकताओं को अचेतन बनाने वाली मीठी गैस है। जांच-समिति की जांच सांच को आंच से बचाती है। हाथ कंगन को आरसी के सामने आने से रोकती है। जांच-समिति सत्य और प्रमाण के बीच दीवार है। रिपोर्ट की सनसनी को उपन्यासों के रहस्यवाद में तब्दील करती है। जांच समिति ऐसा छायावाद है, जिसमें सूक्ष्म के प्रति स्थूल का विद्रोह होता है। एफ आईआर को अभिनंदन में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। जांच-समिति जांच के सम की इति करती है। उसे विषम कर देती है। अनजंचे को अनदेखा कर जंचे को फिर से जांच प्रतिवेदन टाइप करने में रिबन और कागज का राष्ट्रीय बर्बादी पर्व है। धूल झोंकने का विनम्र प्रयास है। लोहार की दुकान का पानी है, जो तपते लोहे को बुझाने के काम आता है। जांच-समिति एक ऐतिहासिक ट्रेजेडी को राष्ट्रीय नौटंकी में बदलने वाला आयोजन है। पहाड़ खोदने के उपरांत उपलब्ध चुहिया है। जांच-समिति खुद अपने में एक जांचा जाने योग्य मामला है।
स्व. शरद जोशी
(लेखक भारत के जाने-माने व्यंगकार थे, 21 अप्रैल, 1988 को ये व्यंग प्रकाशित हुआ था)