भारत और नेपाल के बीच 69 किमी की तेल पाइपलाइन का बन जाना भारत के सभी पड़ौसी देशों याने संपूर्ण दक्षिण एशिया के लिए अत्यंत प्रेरणादायक घटना है। यदि भारत और उसके पड़ौसी देशों के बीच इसी तरह गैस, तेल, बिजली और पानी की पाइपलाइनें पड़ जाएं तो बड़ा चमत्कार हो सकता है। सभी दक्षिण एशियाई देशों को अरबों रु. की बचत हर साल हो सकती है।
भारत की इस पाइपलाइन से नेपाल को हर साल 200 करोड़ रु. की बचत होगी। आम लोगों को पेट्रोल 2 रु. लीटर सस्ता मिलेगा। वे देरी और मिलावट से भी बचेंगे। सैकड़ों ट्रकों की आवाजाही से फैलनेवा ला प्रदूषण भी रुकेगा। इस पाइपलाइन के फायदे दोनों देशों को पता थे, इसलिए जिसे 30 महिने में बनना था, वह 15 महिने में ही बनकर तैयार हो गई।
भारत ने इसके निर्माण में 324 करोड़ रु. लगाए हैं। नेपाल के अमलेख गंज में 75 करोड़ रु. की लागत से एक भंडार-गृह भी शीघ्र बनेगा। इस पाइपलाइन से हर साल 20 लाख टन पेट्रोलियम भारत से नेपाल जाएगा। यह पाइपलाइन भारत और नेपाल के बीच लाइफलाइन बन जाएगी। इस समय चीन की कोशिश है कि वह नेपाल के अंदर तक पहुंचने के लिए रेलों का जाल बिछा दे। 2015 में हुई नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी का फायदा उठाकर चीन ने नेपाल में कई प्रायोजनाएं शुरु करने की पहल की थी। लेकिन अब भारत के प्रति नेपाल का रवैया पहले से अधिक मैत्रीपूर्ण होने की संभावना है।
यहां प्रश्न यही है कि भारत की इस सफल पहल से क्या हमारे अन्य पड़ौसी देश कुछ प्रेरणा लेंगे या नहीं? 2015 में तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के बीच समझौता हुआ था कि एक 1680 किमी लंबी इस ‘तापी’ नामक गैस की पाइपलाइन से तुर्कमान गैस अफगानिस्तान और पाकिस्तान होती हुई भारत आएगी। 56 इंच चौड़ी इस पाइलाइन से 9 करोड़ क्यूबिक मीटर गैस इन तीनों देशों को रोज़ मिलेगी। यह गैस काफी सस्ती होगी। इस पाइपलाइन पर 10 बिलियन डालर खर्च होने थे। कई अमेरिकी कंपनियां भी इस खर्च के लिए तैयार थी लेकिन 2013 से चल रही ये कोशिशें आज तक परवान नहीं चढ़ पाई।
क्यों नहीं चढ़ पाई क्योंकि तालिबान विवाद के कारण अफगानिस्तान में अस्थिरता है और कश्मीर-विवाद के कारण पाकिस्तान की त्यौरियां चढ़ी रहती हैं। ये दोनों देश भयंकर आर्थिक संकट में फंसे हुए हैं लेकिन वे यह क्यों नहीं समझते कि ये गैस, तेल और बिजली की पाइपलाइनें इन तीनों देशों में पड़ जाएं तो वे इन्हें आर्थिक दृष्टि से इतना घनिष्ट बना देंगी कि वह घनिष्टता इनकी राजनीतिक खाइयों को पाटने का काम भी कर सकती हैं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं