बांटो धन-जीतो बाकी देशों के मन!

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आश्चर्य हुआ लेकिन क्योंकि मैंने खुद पिछले सप्ताह लिखा था कि रिजर्व बैंक के पौने दो लाख करोड़ रुपए सरकार को कश्मीर, उस पर जंग-कूटनीति की आशंकाओं के लिए खर्च करने को रखना चाहिए तो रूस को एक अरब डॉलर देने का प्रधानमंत्री का फैसला अपनी ही लाइन पर अमल है। अपन तो यहां तक सोचते हैं कि नरेंद्र मोदी यदि अंबानी, अदानी से पांच-दस अरब डॉलर पुतिन, राष्ट्रपति शी व ट्रंप को बंटवा सकें तो वह देश हित में होग क्योंकि आज पाकिस्तान के स्यापे की काट भारत की पहली जरुरत है। सो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रूस को एक अरब डॉलर याकि 7,167 करोड़ रुपए देने का फैसला सौ टका ठीक है। कह सकते हैं कि भारत रूस को पैसा मुहैया याकि क्रेडिट साख दे तो वह क्या अपनी कंगाली में आटा गीला करना नहीं है? पर इस समय ऐसे नहीं सोचें। यह भी जानें कि पुतिन, डोनाल्ड़ ट्रंप हर तरह से भूखे नेता हैं। ये लहरें गिन कर भी पैसा कमा लेंगे। सो, जम्मू कश्मीर के मौजूदा मामले में भारत और पाकिस्तान के लिए देशों का समर्थन जुटाने का एक तरीका पैसा भी है। कूटनीति आखिर क्या है? तुम हमें समर्थन दो व हमारे साथ खड़े रहो और बताओ कि बदले में क्या चाहिए? चीन को धंधा चाहिए। रूस को हथियार सौदे चाहिएं। अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप को हां में हां मिलाने वाला चाहिए तो इन सबकी इच्छा पूरी करना ही कूटनीति भी है!

तभी प्रधानमंत्री मोदी रूस गए और उन्होंने पुतिन के आगे वहां के सुदूर पूर्व के विकास की बात कर क्रेडिट लाइन याकि भारत से एक अरब डॉलर उठाने का मौका पेश किया तो भला पुतिन क्यों खुश नहीं होंगे। यों रूस को पैसे की कमी नहीं है। तेल की कमाई ने वहां नागरिकों का जीवन स्तर बढ़ाया हुआ है। रूस में प्रति व्यक्ति जीडीपी का आकंड़ा कोई 11 हजार डॉलर के आसपास बैठता है जबकि भारत में प्रति व्यक्ति कमाई दो हजार डॉलर सालाना की है।

जो हो, प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा से राष्ट्रपति पुतिन खुश हुए होंगे। भारत उनसे हथियार खरीदने के सौदे अलग से कर ही रहा है तो उसके दूरदराज के विकास के लिए भी भारत से पैसे का ऑफर है। ऐसे ही प्रधानमंत्री की आगे चीन के राष्ट्रपति शी से भी मुलाकात है। डोकलाम के बाद से हम चीन को जैसे लगातार पटाते रहे हैं और राष्ट्रपति शी व चीनी नेताओं के आगे भारत की कूटनीति ने जैसे आज्ञाकारी देश की तरह का व्यवहार किया है और मेक इन चाइना के लिए और ज्यादा खिड़की-दरवाजे सब खोले हैं तो उससे चीन कुछ तो दुविधा में होगा कि वह पाकिस्तान के साथ किस सीमा तक जाए, जिससे भारत कुट्टी नहीं करे। निश्चित ही अनुच्छेद 370 खत्म होने की पांच अगस्त की तारीख के बाद चीन का भारत विरोधी व्यवहार दो टूक दिखा है। चीन के ही दबाव के चलते सुरक्षा परिषद् में जम्मू कश्मीर की स्थिति पर विचार हुआ। चीन न केवल पाकिस्तान के साथ खड़ा है, बल्कि उसकी सेना पाकिस्तान का हौसला भी बढ़ा रही है।

तब सवाल है कि चीन को कैसे खुश करें? ध्यान रहे जम्मू कश्मीर के फैसले के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ताबड़तोड़ बीजिंग गए थे। उन्हें वहां खरी-खरी सुननी पड़ी तभी आखिर में उनका बयान था कि मतभेद है तो कोई बात नहीं, इनसे रिश्तों में आड़ नहीं आनी चाहिए। मतलब चीन को पटाने की हम लगातार कोशिश करते रहेंगे। पाकिस्तान के साथ चीन कितनी ही गलबहियां करे, उसकी सेना को लड़ाई के लिए उकसाए, जंग की बातों को वह हवा दे तब भी भारत नाराज नहीं होगा। वह चीन को पटाने की लगातार कोशिश करता रहेगा।

इसलिए तय मानें कि जैसे राष्ट्रपति पुतिन को पटाना प्राथमिकता है तो वैसे ही चीन के राष्ट्रपति शी को खुश करना भी भारत की सर्वोच्च प्राथमिकता है। यदि चीन माने तो रूस को भारत ने एक अरब डॉलर दिए हैं तो चीन को वह दस अरब डॉलर दे देगा बशर्ते वह सिर्फ तटस्थ हो जाए। भारत-पाकिस्तान के झगड़े में चीन तटस्थ बने और रूस मौन समर्थक तो भारत के लिए इस राउंड का मुकाबला जीतना चुट्कियों का काम है।

जान लें भारत सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री और पूरा विदेश मंत्रालय मतलब सभी इस समय जबरदस्त वैश्विक कूटनीति के उलझ़े हुए हैं। हम-आपको याकि भारत के सामान्य-सुधी नागरिकों को अनुमान नहीं है कि कूटनीति किस पिच पर खेली जा रही है। अपना मानना है कि रविवार को डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अफगान वार्ता को रद्द करना भी भारत बनाम पाकिस्तान की कूटनीतिक जोर-आजमाइश की छाया में है। पाकिस्तान वापस अफगानिस्तान को सुलगाने लगा है। शनिवार को काबुल के छावनीनुमा, अफगान खुफिया एजेंसी के मुख्यालय वाले शास दाराक इलाके में हुआ भयावह विस्फोट एक बानगी है। इसमें एक अमेरिकी सैनिक भी मारा गया, जबकि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के कैंप डेविड में तालिबानी व अफगान नेताओं के साथ रविवार को गोपनीय मुलाकात करके सेना वापसी के समझौते पर सहमति देते लग रहे थे। धमाके ने सब गड़बड़ा दिया। ट्रंप ने बातचीत-मुलाकात रद्द कर दी। उन्होंने कहा कि मैं इधर तालिबानियों से मिलने वाला था और उधर तालिबानियों ने धमाके में अमेरिकी जवान को उड़ाया तो ऐसे बात नहीं होगी और उन्होंने बातचीत रद्द कर दी।

हां, काबुल में धमाके के बाद तालिबानियों ने इसका जिम्मा भी लिया। तभी तय मानें कि खुफिया जानकार इस सबके पीछे पाकिस्तानी आईएसआई, पाक सेना-तालिबानी गठजोड़ का हाथ बूझ रहे होंगे। मतलब इमरान खान की सरकार दुनिया में मैसेज बना दे रही है, कूटनीति कर रही है कि यदि कश्मीर के मामले में हमारी नहीं सुनी तो हम अफगानिस्तान को पुरानी दशा में लौटा देंगे। और जान लिया जाए कि इस खतरे को सुरक्षा परिषद् या यूरोपीय देश नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। पाकिस्तान का ट्रंप कार्ड अफगानिस्तान है, जिसके चलते दुनिया के देशों में पाकिस्तान की कूटनीति को सुना जा रहा है। तभी भारत की मुश्किल है। उस नाते सितंबर का महीना भारत के लिए दुनिया के देशों को पटाने के मिशन में करो-मरो वाला महीना है। इस पर कल और।

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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