खैरात बांटने पर चुनिंदा आपत्तियां

0
537

‘माले मुफ्त दिले बेरहम’ लोकोक्ति का क्या अर्थ होता है यह समझना हो तो भारत की राजनीतिक पार्टियों का घोषणापत्र देख लें या चुनाव से पहले ताबड़तोड़ होने वाली घोषणाओं को सुन लें। कोई भी पार्टी इसमें पीछे नहीं है और न अपवाद है। जो सरकार में होता है वह खुले हाथ खैरात बांटता है और जो सरकार में नहीं होता है वह सरकार में आने पर खैरात बांटने का वादा करता है। जैसे कांग्रेस विपक्ष में है तो राहुल गांधी ने वादा किया कि उनकी सरकार बनी तो वे देश के हर गरीब के खाते में हर साल 72 हजार रुपए डालेंगे। और भाजपा सरकार में है तो उसने किसानों के खाते में हर साल छह हजार रुपए डालने शुरू कर दिए।

खैरात बांटने वाली इन पार्टियों को, इनकी खैरात को जनता का हक बताने वाले आर्थिक जानकारों को और इन पर चुप्पी साधे रहने वाली अदालतों को भी अरविंद केजरीवाल के खैरात बांटने पर घनघोर आपत्ति है। देश की सर्वोच्च अदालत ने भी उनके ऊपर सवाल उठाए हैं और कहा है कि अगर अदालत को लगा कि सरकारी धन का दुरुपयोग हो रहा है तो वह उस पर रोक भी लगा सकती है। सवाल है कि यह कैसे पता चलेगा कि कौन सा खैरात बांटना सदुपयोग की श्रेणी में है और कौन सा दुरुपयोग की श्रेणी में? क्या खैरात बांटने वाली पार्टियों के आधार पर इसका फैसला होगा या खैरात की रकम पर या लाभार्थियों के आधार पर? कौन तय करेगा कि इसका फैसला किस आधार पर होगा?

सबसे ज्यादा आपत्ति इस बात पर है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार मेट्रो में महिलाओं को मुफ्त सफर की सुविधा देने जा रहे हैं। मेट्रो मैन के नाम से मशहूर दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के पहले चेयरमैन ई श्रीधरन को भी इस पर आपत्ति है और अदालत को भी। दोनों ने एक जैसी बात कही। पहले श्रीधरन ने कहा कि इससे मेट्रो की हालत खराब हो जाएगी। तो अदालत ने भी कहा कि मेट्रो को इससे नुकसान हो सकता है। जबकि बिल्कुल सरल सा तथ्य यह है कि मेट्रो को एक पैसे का घाटा नहीं होना है क्योंकि मेट्रो को पैसे दिल्ली सरकार देगी। उलटे इससे मेट्रो को फायदा होगा क्योंकि महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा देने के बाद मेट्रो में यात्रा करने वाली महिलाओं की संख्या में बडा इजाफा होगा और उनके किराए का एकमुश्त पैसा मेट्रो को दिल्ली सरकार देगी। सो, मेट्रो को नुकसान की बजाय फायदा होगा।

अब रही बात कि दिल्ली सरकार कहां से पैसे लाएगी और क्यों महिलाओं की मुफ्त यात्रा पर खर्च करेगी? यह सवाल पूछने का नैतिक अधिकार उन लोगों के लिए सुरक्षित है, जिन्होंने किसानों को हर साल छह हजार रुपए देने की केंद्र सरकार की योजना का विरोध किया हो। या जिन्होंने आयुष्मान भारत योजना के तहत पांच लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की सुविधा का विरोध किया हो। या महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान तक में किसानों की कर्ज माफी का विरोध किया हो। अगर आप खैरात बांटने की इन योजनाओं के समर्थक हैं या इन पर चुप्पी साधे रखी है तो मेट्रो में महिलाओं की मुफ्त यात्रा के अरविंद केजरीवाल के प्रस्ताव पर भी आप चुप ही रहिए।

ऐसा भी नहीं है कि केजरीवाल पहली बार इस तरह खैरात बांटने की कोई योजना ला रहे हैं। वे डीटीसी की बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा देने जा रहे हैं। उन्होंने दो सौ यूनिट तक बिजली फ्री कर दी है। उनकी सरकार सात सौ लीटर तक पानी फ्री में देती है। वे दिल्ली के लोगों को मुफ्त वाई फाई की सुविधा देने जा रहे हैं। वे बुजुर्गों को मुफ्त में तीर्थाटन करा रहे हैं, जैसा कि पहले उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार ने और मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार ने किया था।

सो, अगर खैरात बांटने की इन योजनाओं या इनके जैसी दूसरी सैकड़ों योजनाओं का विरोध नहीं किया गया है और इनको जनता का हक माना गया है तो मेट्रो में महिलाओं की मुफ्त यात्रा का भी विरोध नहीं किया जाना चाहिए। अगर दिल्ली में आप सरकार की विरोधी पार्टियां जैसे कांग्रेस या भाजपा विरोध करें या इसे चुनावी स्टंट बताएं तो बात समझ में आती है। पर श्रीधरन जैसे तटस्थ व्यक्ति को या न्यायपालिका को इस पर क्यों आपत्ति होनी चाहिए, यह समझ से परे है।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here