सोमवार, गणेश उत्सव शुरू हो रहा है। इस दौरान गणेशजी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जिस तरह राक्षसों के नाश के लिए भगवान विष्णु ने अवतार लिए हैं, ठीक उसी तरह गणेशजी ने भी अवतार लिए हैं। जानिए ये अवतार कौन-कौन से हैं और किस राक्षस के अंत के लिए गणेशजी ने अवतार लिए हैं…
महोदर :- प्रचलित कथाओं के अनुसार तारकासुर का वध कार्तिकेय स्वामी ने किया था। इसके बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर की मदद देवताओं पर आक्रमण कर दिया। सभी देवता गणेशजी के पास पहुंचे और मोहासुर के आतंक को खत्म करने की प्रार्थना की। गणेशजी ने महोदर यानी बड़े पेट वाले गणेशजी का अवतार लिया। ये स्वरूप देखकर मोहासुर ने स्वयं ही पराजय स्वीकार कर ली और गणेशजी का भक्त बन गया।
वक्र तुंड :- मत्सरासुर नाम का असुर शिव भक्त था। उसने शिवजी को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया। शुक्राचार्य की प्रेरणा से मत्सरासुर ने अपने पुत्र सुंदरप्रिय और विषयप्रिय के साथ देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता की प्रार्थना पर गणेशजी ने वक्र तुंड स्वरूप में अवतार लिया। वक्रतुंड ने असुर के दोनों पुत्रों का वध कर दिया और मत्सरासुर को पराजित कर दिया।
एक दंत :- मद नाम के राक्षस ने शुक्राचार्य से दीक्षा ली। इसके बाद उसने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। तब देवताओं ने गणेशजी से प्रार्थना की। गणेशजी ने एक दंत स्वरूप में अवतार लिया। एक दंत ने मदासुर को पराजित किया।
विकट :- एक कामासुर नाम के दैत्य ने शिवजी से त्रिलोक विजय का वरदान प्राप्त किया। इसके बाद उसने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। तब गणेशजी ने मोर पर विराजित विकट नाम का अवतार लिया और कामासुर के आतंक को खत्म किया।
गजानन :- लोभासुर नाम के दैत्य ने शिवजी को प्रसन्न किया और वरदान प्राप्त किया। उसने तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया था। तब गणेशजी ने गजानन नाम का अवतार लिया और लोभासुर को पराजित कर दिया।
लंबोदर :- क्रोधासुर नाम के दैत्य ने सूर्यदेव को प्रसन्न किया था और सभी देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली थी। तब गणेशजी ने लंबोदर स्वरूप में अवतार लिया। लंबोदर स्वरूप के सामने क्रोधासुर टिक नहीं सका और उसका आतंक खत्म हो गया।
विघ्नराज :- ममासुर नाम के दैत्य ने सभी देवताओं को बंदी बना लिया था। तब देवताओं ने गणेशजी से प्रार्थना की और गणेश ने विघ्नराज स्वरूप में अवतार लिया और ममासुर को पराजित करके सभी देवताओं को आजाद करवाया।
धूम्रवर्ण :- अहंतासुर के आतंक को खत्म करने के लिए गणेशजी ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका रंग धुंए जैसा था, इसीलिए धूम्रवर्ण कहलाए। गणेशजी के इस अवतार ने अहंतासुर को पराजित किया।