गांधी की गलती भी सुधारेंगे मोदी…

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केन्द में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का सबसे पुराना और सुनहरा सपना अखण्ड भारत की स्थापना रहा है, इस अखण्ड भारत के नक्शें में पौराणिक काल के आर्यावर्त के दर्शन तो नहीं होते किंतु उस अखण्ड भारत के दर्शन अवश्य होते है जो अंग्रेजी व रियासती शासनकालों के दौरान हुआ करता था, अर्थात् इस अखण्ड भारत में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्याँमार, श्रीलंका आदि भारत में समाहित है। पुराणकालीन आर्यावर्त मंे अफगानिस्तान, ईराक, ईरान आदि सभी तत्कालीन आर्यावर्त के हिस्से थे। हाँ, तो यहां चर्चा भारतीय जनता पार्टी के अखण्ड भारत की बात हो रही थी। पार्टी की नही पार्टी से जुड़े अन्य सहयोगी संगठन विश्व हिन्दू परिषद, स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल आदि सभी भी चाहते है कि आज का भारत अतीत के अखण्ड भारत के रूप में उभर कर आए और इस अखण्ड भारत पर भारतीय जनता पार्टी का ‘अखण्ड’ राज हो।

जबसे भारत में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 खत्म करने का करिश्मा किया है, तब से पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं के हौसलों में काफी ईजाफा हो गया है और वे इस सरकार कश्मीर से आगे भी काफी अपेक्षाएं करने लगे है, यद्यपि देश में सत्तारूढ़ भाजपा के संगठन व सरकार के पदाधिकारी अब 370 से आगे पाक अधीकृत कश्मीर (पीओके) और चीन द्वारा हड्पी गई भारतीय जमीन सियाचीन को कब्जाने की बात कर रहे है, और यह तय है कि कश्मीर के पूरी तरह पटरी पर आ जाने के बाद केन्द्र सरकार का भी अगला यही लक्ष्य होगा, पीओके और सियाचीन को हर हाल में भारत के कब्जे में करने के उच्चस्तर पर प्रयास होंगे ओर यह भी तय है कि हर तरफ से अलग-थलग पड़ा निराश पाकिस्तान कुछ भी नहीं कर पाएगा। किंतु सवाल यह है कि क्या पीओके और सियाचीन अपने कब्जे में लेने के बाद मोदी-अमित शाह मौन होकर चुपचाप बैठ जाएगें? क्या इससे भी आगे बढ़कर नेहरू की गलती ठीक करने की तर्ज पर महात्मा गांधी की गलती को ठीक करने का प्रयास नहीं करंेगे? अर्थात् गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना ने जो पिछली सदी की सबसे बड़ी गलती कर सम्प्रदाय के आधार पर पाकिस्तान बनाने की गुस्ताखी की क्या मोदी-शाह उसे सुधारने और अखण्ड भारत की स्थापना करने का प्रयास शुरू नहीं करेंगे? क्योंकि अब दिनों-दिन पाकिस्तान को जिन कठिन हालातों से गुजरने को मजबूर होना पड़ रहा है, वह दयनीय है। आज वह न सिर्फ भीषण आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है, बल्कि आज उसकी सहायता के लिए कोई भी देश उसके साथ नहीं खड़ा है, यदि यही स्थिति आगे और चलती रही तो पाक की स्थिति विस्फोटक हो सकती है।

यद्यपि भारत इन दिनों पाक की स्थिति पर तीखी नज़र रखे हुए है, भारत के शासकों को पाक के हुक्मरानों पर ऐसी दुरावस्था के लिए तरस व दया भी आ रही है, लेकिन हैंकड़बाज पाक शासक भारत की ओर किसी भी तरह की सहायता के लिए याचक की नजर से देख ही नहीं रहे है तो फिर भारत चाहते हुए भी पाक की सहायता व सहयोग का हाथ आगे कैसे बढ़ाए।

अब आज की सबसे बड़ी और अहम् जरूरत यह है कि धर्म व सम्प्रदाय के आधार पर राष्ट्रों व देशों को यह संदेश दिया जाए वे अब अपना धर्म-सम्प्रदाय का चौला उतार देश, जनता व विश्व के हित के बारे में कुछ सोंचे?

पिछले दिनों कांग्रेस के नेता पी. चिदम्बरम् का यह विवादास्पद बयान था कि ‘‘जम्मू-कश्मीर चूंकि मुस्लिम प्रधान क्षेत्र था, इसलिए भाजपा सरकार ने यह कदम उठाया यदि वह हिन्दू प्रदेश होता तो ऐसा नहीं होता’’, यद्यपि चिदम्बरम् जी के इस बयान की हर तरफ भर्त्सना की गई, किंतु क्या स्वयं चिदम्बरम् जी की ही पार्टी ने भारत की आजादी के समय साम्प्रदायिकता के आधार पर दो-दो पाकिस्तानों का गठन नहीं किया? और आज उनका क्या हश्र है, एक पाकिस्तान बंगलादेश बन गया और दूसरा अपनी हैकड़ियों के कारण अपनी समस्याओं से जूझ रहा है, आज की यह एक बहुत कड़वी हकीकत है।

इसलिए यदि आज भारत के बुद्धिजीवी या सत्तारूढ़ दल के जागरूक और आशावादी सदस्य सत्ता के मुखिया मोदी व अमित शाह से अखण्ड भारत की स्थापना की अपेक्षा कर रहे है, तो वह कतई गलत नहीं है, वह जरूरी और समयानुकूल है, क्योंकि अकेले कश्मीर से अखण्ड भारत नहीं बनता जब तक कि उसमें भारत की पुराना हिस्सा (पाकिस्तान) शामिल नहीं हो, आशा है मोदी जी व अमित शाह जी भारतवासियों की मूल भावना को समझेगें अपने इरादों को और ऊँचा आकाश देगें?

ओमप्रकाश मेहता
लेखक टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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