एक लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक राजा को अपने दरबार के लिए ज्योतिषी नियुक्त करना था। राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी। निर्धारित दिन राज्य के कई बड़े-बड़े ज्योतिषी दरबार में पहुंचे।
राजा ने एक-एक करके सभी ज्योतिषियों का साक्षात्मकार लिया। सवाल- जवाब के बाद तीन ज्योतिषी अंतिम चरण में पहुंच गए। राजा ने पहले ज्योतिषी से पूछा कि आप भविष्य कैसे देखते है? ज्योतिषी ने जवाब दिया कि मैं ग्रह-नक्षत्रों की चाल देखकर भविष्य बताता हूं। दूसरे ज्योतिषी से भी यही सवाल पूछा तो उसने कहा कि मैं हस्तरेखा की मदद से भविष्य देखता हूं। तीसरे ज्योतिषी ने कहा कि मैं ग्रहों के अनुसार भविष्य बताता हूं। इन तीनो ज्योतिषियों की बातें राजा को पसंद नहीं आई। राजा को तभी अपने राज्य के एक निर्धन ज्योतिषी की याद आई। राजा एक बार उस ज्योतिषी से मिला था और राजा उससे प्रभावित हुआ था। राजा ने तुरंत ही अपने सेवकों को भेजकर उसे बुलवाया। राजा ने उससे पूछा कि हमने पूरे राज्य में घोषणा करवाई थी कि हमें ज्योतिषी चाहिए तो साक्षात्कार देने तुम क्यों नहीं आए?
निर्धन ज्योतिषी ने कहा कि महाराज मैं मेरा भविष्य जानता था कि आप स्वयं मुझे बुलवाएंगे और मुझे दरबार में ज्योतिषी नियुक्त करेंगे, इसीलिए मैं नहीं आया। ज्योतिषी की प्रतिभा देखकर और उसकी बातें सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। राजा ने उसे दरबार में ज्योतिषी नियुक्त कर दिया।
कथा की सीख
इस छोटी सी कथा की सीख यह है कि जिन लोगों में प्रतिभा होती है, वे अपने लक्ष्य तक जरूर पहुंचते हैं। इसीलिए हमें अपनी प्रतिभा निखारने के लिए कोशिश करते रहना चाहिए।