संसद ने रचा इतिहास

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आखिरकार राज्यसभा में भी मंगलवार को तत्काल तीन तलाक के खिलाफबिल पास हो गया। इस तरह तलाके बिद्द के रूप में चली आ रह मध्ययुगीन कुप्रथा का अतं हो जाएगा। वाकई तीन तलाक से पीडि़त महिलाओं को अब अपने समाज में जारी अन्य कुप्रथाओं के खिलाफ भी लडऩे का हौसला मिलेगा। देश में तकरीबन 8 करोड़ मुस्लिम महिलाएं हैं, जिन्हें अब तलाके बिद्दत के डर के साये में जीना नहीं पड़ेगा। यह सच है कि तत्काल तीन तलाक के मामले तकरीबन एक फीसदी हैं, लेकिन इसका सबसे दुखद पहलू यह है ज्यादातर पीडि़ताएं गरीब परिवारों से हैं। कानून बनते ही अब ऐसे पुरूषों पर जरूर लगाम लगेगी, जो बेबात तीन तलाक बोलकर अपनी महिलाओं की जिंदगी में अंधेरा करने से बाज नहीं आते। मंगलवार का दिन मुस्लिम महिलाओं के लिए अविस्मरणीय रहेगा। शाहबानो से लेकर सायरा बानो तक, महिलाओं का संघर्ष बेमिसाल है।

मोदी सरकार तो साधुवाद की पात्र है ही, संघर्षशील महिलाएं सबसे ज्यादा मुबारकबाद की हकदार हैं। इसलिए कि अपने समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ खड़ा होना बड़े साहस की मांग करता है। जब बदलाव की मांग समाज के भीतर से उठती है तब उसकी राह कोई नहीं रोक सकता-पुरूष प्रधान समाज भी। तीन तलाक बिल के विरोधियों का तर्क था कि मुस्लिम समाज में विवाह एक सिविल कांटैक्ट होता है इसलिए तीन तलाक को आपराधिक मामला बनाने की क्या जरूरत? आपत्ति इस बात पर भी कि तीन साल के लिए जब पति जेल भेज दिया जाएगा तब उसकी पत्नी और यदि बच्चे भी हैं, उनका भरण-पोषण कौन करेगा? बिल में इस पहलू पर सरकार ने गौर नहीं किया। विरोधियों का एक तर्क और था कि जब सुप्रीम कोर्ट ने तलाके बिद्दत को असंवैधानिक करार दिया है, तब इस पर अलग से कानून बनाने की क्या जरूरत?

हालांकि बिल के विरोधी इतना तो स्वीकारते हैं कि तलाके बिद्दत गैर इस्लामिक है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इस्लाम का हिस्सा ना होने के बावजूद चंद मौलानाओं की शह पर मुस्लिम-महिलाएं तलाके बिद्दत का शिकार होती रही हैं। इस रोशनी में आवश्यक हो गया था कि एक ऐसा कानून बने, जिससे उन पुरूषों में खौफ पैदा हो ताकि कुप्रथा पर रोक लग सके । वैसे विरोधियों का यह सवाल वाजिब है कि बड़ी तादाद में हिंदू महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, अकारण छोड़ दी जाती हैं, उनके लिए भी मोदी सरकार अपनी तत्परता दिखाए। इसी तरह मॉब लिंचिंग पर कानून बनाये, जिससे समाज के कुछ तबके निशाना बने रहे हैं उस पर रोक लग सके । सच है, दूसरे ज्वलंत सवालों पर भी मोदी सरकार को ध्यान देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग पर कानून बनाये जाने की बात कही है।

पर इन सारी बातों का यह मतलब नहीं कि तीन तलाक पर कानून के लिए सरकार आगे ना बढ़ती। दिसंबर 2017 में मोदी सरकार की कोशिश नाकाम हो गई थी लेकिन 30 जुलाई 2019 को आखिरकार राज्यसभा से भी तीन तलाक बिल पास हो गया। हालांकि राज्यसभा में मोदी सरकार अभी बहुमत से दूर है इसलिए जिस नाटकीय ढंग से सदन में बहुमत का प्रबंध किया गया, वो निश्चित तौर पर मोदी सरकार के फ्लोर मनैजमेंट की काबिलियत के साथ ही आने वाले दिनों की राजनीति का इशारा भी करती है। तीन तलाक बिल पर सभी दलों ने अपना विचार व्यक्त किया लेकिन वोटिंग से पहले वाक आउट कर गये। एनडीए का हिस्सा जेडीयू रहा बिल के विरोध में पर वोटिंग से दूर रहा। यही हाल टीआरएस, पीडीपी, बसपा, एआईडीएमके का रहा। सबसे दिलचस्प बहस से दूरी बनाने वाले नेताओं की रही। इसमें एनसीपी नेता शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल की गैर मौजूदगी उल्लेखनीय है। यहां यह भी दिलचस्प है कि कांग्रेस के के टीएस तुलसी भी सदन नहीं पहुंचे।

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