तारीफ के काबिल अमरीकी संसद की स्पीकर

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डोनाल्ड ट्रंप और अमित शाह में कोई तुलना नहीं है। बावजूद इसके भाई लोगों ने लोकसभा में अमित शाह और ओवैसी की जुबानी जंग का हवाला देते हुए मुझे जब कहा कि आजाद भारत ने पहले क्या कभी गृह मंत्री के मुंह से इस अंदाज में डायलॉग सुने तो मैंने मन ही मन सोचा ये भले लोग कुंए की टर्र-टर्र से कब बाहर निकलेंगे। जरा दुनिया की भी खबर रखें। पूरी दुनिया में ही जब भद्र राजनीति आउट है व जुबानी जुमलेबाजी से वोट पकाने की चौतरफा मारामारी है तो दिल्ली सल्तनत तो शुरू से ही अहंकारी, मुगालतों और भाषणवीरों से डूबी रही है। जरा विश्व राजनीति के सिरमौर अमेरिका को देखें। डोनाल्डन ट्रंप अपने सांसदों से बोले अरे तुम कालों जहां से आए हो वहां लौट जाओ! हां, यहीं भाव है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अपने सांसदों पर की गई ट्विट टिप्पणियों का। तभी सोचें, दुनिया और उसकी राजनीति आज किस मुकाम पर है? अमेरिका का राष्ट्रपति अपनी संसद की महिला सांसदों, अश्वेत सांसदों से कह रहा है कि तुम लोग लौट जाओ वहां, जहां से आई हो!

पर अमेरिकी लोकतंत्र की वाह जो कल अमेरिकी संसद ने अपने राष्ट्रपति के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर उसकी भर्त्सना की। राष्ट्रपति और उनके कहे को ‘नस्लवादी’ कहा। अमेरिकी कांग्रेस याकि लोकसभा ने राष्ट्रपति के खिलाफ 187 के मुकाबले 240 वोटों से प्रस्ताव पास किया। ध्यान रहे अमेरिकी लोकसभा में इस समय विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है। पर ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के चार सांसदों ने भी राष्ट्रपति को नस्लवादी बताने वाले प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया। ट्रंप के खिलाफ इंपीचमेंट की मांग करते हुए रिपब्लिकन पार्टी छ़ोड़ने वाले मिशिगन के सांसद ने अलग प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया।

और लोकतंत्र के उस अमेरिकी मंदिर का कमाल देखिए जो संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने सदन में कहा- इस संस्था के हर सदस्य, डेमोक्रेट और रिपब्लिकन को राष्ट्रपति के नस्लवादी ट्विट की निंदा करनी चाहिए। ऐसा न करना हमारे देश के मूल्यों, आदर्शों को त्यागना (shocking rejection of our values) होगा। अमेरिकी लोगों की रक्षा के दायित्व में ली गई पद की कसम का उल्लंघन होगा।

सोचें, अमेरिकी लोकसभा की स्पीकर अपने राष्ट्रपति को रेसिस्ट, नस्लवादी कहे तो उसका देश-दुनिया में क्या अर्थ निकलेगा? इसलिए स्पीकर ने ज्योंहि अपनी बात कहीं ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों ने हल्ला किया और नस्लवादी जुमले को रिकार्डिंग से निकालने को कहा। संसद में गतिरोध बना लेकिन स्पीकर अपनी बात में अड़ी रहीं और राष्ट्रपति के ट्विट को नस्लवादी बताते हुए उसकी भर्त्सना का प्रस्ताव पास हुआ तो स्पीकर ने बात दोहराते हुए कहा कि मैंने सदन में जो बोला है उस पर मुझे गर्व है इसलिए क्योंकि राष्ट्रपति ने हमारे साथियों पर जो कहा वह पूरी तरह अनुचित, गलत है।

डोनाल्ड ट्रंप बिलबिला गए। खिसियानी बिल्ली की तरह ट्विट किया- डेमोक्रेटिक महिला सांसदों ने सदन और सीनेट में एक नेता (राष्ट्रपति पर) पर अब तक की सर्वाधिक घृणापूर्ण, लांछनपूर्ण टिप्पणी की और उसे संसद से पास भी करा लिया। यह डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए भी लज्जाजनक है। क्यों नहीं सदन उन शब्दों को वापस लेने का प्रस्ताव पास कर पाया इसलिए क्योंकि ये रेडिकल लेफ्ट वाले हैं और डेमोक्रेट उनसे पंगा नहीं लेना चाहते। दुखद!

ट्रंप के ऐसे उकसाने के बावजूद रिपब्लिकन पार्टी के सांसद राष्ट्रपति को नस्लवादी घोषित किए जाने के प्रस्ताव, स्पीकर के जुमले को को डिलीट नहीं करा सके। ट्रंप के भक्त सांसदों की सफाई है कि क्या करें मुद्दा नस्ल का नहीं, बल्कि विचारधारा का है। डेमोक्रेटिक पार्टी की महिला सांसद सोशलिस्ट हैं, एंटी अमेरिकी हैं।

सो, पूरा अमेरिका खदबदाया हुआ है। ध्यान रहे ट्रंप ने डेमोक्रेटिक पार्टी की चुनी चार नई महिला सांसदों की आलोचनाओं के जवाब में तुनकते हुए कहा था कि वे लौट जाएं अपने उन देशों में जहां से आई हैं और वहां जा कर अपराध व्यवस्था सुधारें। ये चारों अश्वेत हैं। गोरी नहीं हैं। तो ट्रंप की बात का पहला मतलब है कि वे अमेरिका को गोरों का देश मानते हैं। बताया कि गोरों के वर्चस्व, सुपरमेसी लिए हुए अमेरिका है। प्रवासी अश्वेत लोगों का स्वागत नहीं है। ट्रंप ने जिन चार महिला सांसदों पर निशाना साधा था उसमें तीन का जन्म अमेरिका में ही हुआ है। केवल ओमार का जन्म इथियोपिया में हुआ था और बीस साल पहले 17 साल की उम्र में वे अमेरिकी नागरिक बनीं। वे अब सांसद हैं। चारों सांसद अश्वेत और महिला और घोर ट्रंप विरोधी। तभी चिढ़ कर ट्रंप ने वे ट्विट किए थे।

निश्चित ही डेमोक्रेटिक पार्टी के कई सांसद इन दिनों डोनाल्ड ट्रंप की पद से बरखास्तगी वाले इंपीचमेंट की मुहिम चलाए हुए हैं। नस्लवादी ट्विट के बाद ट्रंप ने सफाई में कहा कि उनकी हड्डियों में तनिक भी नस्लवादिता नहीं है तो महिला सांसद ओकेसिया कोर्टेज ने पलट कर कहा- हां, राष्ट्रपति, आप सही कहते हैं, हड्डियों में नहीं है लेकिन आपके सिर में नस्लवादी दिमाग है और सीने में नस्लवादी दिल!

जो हो, आज अमेरिकी संसद के रिकार्ड में उसका राष्ट्रपति बतौर ‘नस्लवादी’ उल्लेखित है। स्पीकर ने उसे सदन में ‘नस्ली’ कहा। संसद ने राष्ट्रपति की भर्त्सना की। हिसाब से दुनिया ने नस्लवादी नेताओं की ट्रायल के लिए अंतरराष्ट्रीय कोर्ट बनाई हुई है। एक्टिविस्टों को विश्व अदालत जा कर अमेरिकी संसद के प्रस्ताव के हवाले ट्रंप के खिलाफ नस्लवादी होने का मुकद्दमा चलवाना चाहिए। पर इस सबसे सांड़ की मोटी चमड़ी पर असर नहीं पड़ेगा। उलटे उनका अगला चुनाव आसान होगा। अमेरिकी गोरे ट्रंप के दिवाने होंगे क्योंकि वे सभी मानेंगे कि उनका सांड़ बहादुर, छप्पन इंची छाती वाला। सांड़ ने पिछले चुनाव में मुसलमानों को न आने देने की बात कही थी और अब कालों, एशियाई, भारतीयों सबको कहने लगा है कि लौटो अपने घर। वहां जा कर राजनीति करो। गोरे राष्ट्रपति, गोरे नेताओं को न सिखाएं कि क्या करना है और क्या नहीं। इसलिए 2020 के अमेरिकी चुनाव का एजेंडा सेट हो गया है। अमेरिकी फैसला देंगे कि रक्षा सांड़ ट्रंप से है या मूल्यों, मानवाधिकारों, संस्कारों के ढर्रे में बंधे हुए भले, मानवीय नेताओं से!

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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