कुछ समय से ये दो द्विज उपयोग की, पहनने व उछाले जाने वाली नायाब चीजें मेरे भेजे में बिल्लियों उछल रही हैं! इसके पीछे इनका दोनों का समवेत स्वभाव है? दोनों वैसे अंग्रेजी शब्द मिसाइल का ही देशी संस्करण हैं। जैसे कि पुरातन काल में आधुनिक समय के उपग्रहों की जगह हमारे यहां ‘पुष्पक विमान’ हुआ करते थे। एक चहारदीवारी के भीतर तो दूसरी बाहर उपयोग होती है। दोनों का प्राथमिक उद्देश्य निशाने पर लगना नहीं होता? बल्कि सामने वाले की इज्जत में पलीता लगाना होता है। एक हस्त में तो दूसरी पाद में उपयोग होती है। लेकिन दोनों में से एक भी उछाले जाने पर सामने वाले की पेंट गीली करवा सकते हैं! दोनों के क ई प्रकार होते हैं व दोनों के कई संस्करण उपयोगकर्ता रखता है, जैसे चप्पल, सैंडिल, बूट, जूता या जूती और फिर चमड़ा या प्लास्टिक या रेग्जीन या कपड़े की और इसी तरह बेलन मोटा, पतला, छोटा, लम्बा, स्लिम चिकना, खुरदरा आदि हो सकता है।
यह स्टॉक में दोनों महान उपयोगकर्ताओं के पास पर्याप्त संख्या में रहता है। वे जिस पर इसका उपयोग करना है उसको देखकर इसका चुनाव करते हैं। वैसे बेलन तो आवश्यक रूप से पति नामक जीव पर ही प्रयुक्त होता है! और वैसे भी बेलन शब्द बालमा शब्द के कि तना समीप है। इसलिये तो चाहे जब उसके समीप पंहुच जाता है! हिंदी के विद्वानों को बल्कि पता लगाना चाहिये कि बेलन का उद्भव बालमा से ही हुआ होगा! दोनों के इस इतर उपयोग में भिन्नता यह है कि जूता पूरे नियोजन के साथ फेंका जाता है। इसके लिये बकायदा उपयोगकर्ता रेकी करता है, अलग-अलग आकार-प्रकार, वजन व रंग के जूतों को परखता है, उसका ट्रायल करता है, लेकिन बेलन स्वाभाविक रूप से किसी बात पर नाराज होकर फेंक दिया जाता है! इसके पीछे कोई पूर्व नियोजन नहीं होता है! अत: पति नामक जीव खुशकिस्मत है कि बेलन उछाल पत्नी की नाराजगी की एक स्वाभाविक उछाल है! ‘जूता उछाल’ में मीडिया में काफी कवरेज होता है, लेकिन बेलन आंतरिक मामला होता है।
कैबिनेट की मीटिंग की तरह जो इसमें शामिल रहता है उसी को विषय व घटनाक्रम के बारे में पता होता है, बाकी बाहरी लोग अनभिज्ञ रहते हैं। हां, नौकरों द्वारा कानाफूंसी होने पर पास पड़ोस के लोग पूरे घटनाक्रम से अवगत होने उत्सुक ता से उत्सुक रहते हैं! जैसे कैबिनेट मीटिंग की भी बातें आजकल बाहर आ जाती हैं, उसी तरह बेलन उछाल के साथ भी हो जाता है। जूता फेंके जाने के बाद फि र उपयोगकर्ता द्वारा उपयोग नहीं होता, यह एक महत्वपूर्ण जप्ती की चीज बन जाती है। इस जूते को बकायदा सीलबंद कर दिया जाता है, इसकी बारीकी से जांच होती है। इसका आकार, रंग, कंपनी, कहां से खरीदा गया आदि सारी बाते लिपिबद्ध कर दी जाती हैं, लेकिन बेलन का बार-बार उपयोग होता है। उसी बेलन से जिससे पहले मार मिली थी ताकि मार से बाल-बाल बचे थे। फिर बेलन नहीं तो जली-कटी रोटी या नमक भरी दाल सब्जी की मार यार पति मानक जीव को मिल सकती है।
वैसे अबके समय में इतने जूते उछाले जा रहे हैं कि इसको ठीक से समझने जूता सेंसेक्स की संकल्पना तक आकार लेने लगी है और गंगू को तो लगता है कि जूते उछालने वाले लोग वही हताश व कुंठित पति लोग हैं, जिन पर कभी उनकी पत्नी ने किसी बात पर बेलन उछाल दिया हो! वैसे पत्नी कोई पागल नहीं होती कि बेलन ऐसे ही उछाल दे, पत्नी वैसे भी कोई भी काम बिना वजह के नहीं करती। यदि पति नामक व्यक्ति कोई बेतुकी बात बार-बार करता है, इशारे करने पर भी उसका एंटेना कि सी समझदारी की बात को जो पत्नी बता रही हो उसको कैच नहीं करता तो फिर पत्नी को मजबूरन उसके सदियों के दो धारी उपक रण बेलन का सहारा अपने बालम या अपनी सासु के प्यारे ‘लल्लन’ या राजू या बबलू आदि की खिदमत के लिये करना पड़ता है! हां, ऐसा निराश पति ही अपनी कुंठा दूर करने के लिये फिर किसी सेलेब्रिटी के कार्यक्रम में जूता उछाल कर हिसाब बराबर करने का एक सफल या असफल प्रयास करते होंगे! अध्ययन का विषय है एक एनजीओ को कोई जीओ काम दे सकता है।
सुदर्शन कुमार सोनी
(लेखक व्यंगकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं)