हादसों का एक्सप्रेस वे

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लखनऊ से दिल्ली जा रही अवध डिपो की जनरथ बस सोमवार तड़के यमुना एक्सप्रेस वे से गुजरते समय झरना नाले में गिरने से 29 व्यक्तियों की मौत हो गयी और दर्जनों लोग घायल हो गये। परिवहन विभाग के मुताबिक ड्राइवर को नींद आ गयी और नतीजतन इस रूट पर यह अब तक का सबसे बड़ा हादसा हो गया। सूचना मिलने पर प्रशासनिक मशीनरी चेती और आनन—फानन में राहत के सारे इंतजाम किये जाने लगे। शासन की तरफ से मुआवजे की घोषणाा भी कर दी गयी। पर अहम सवाल यह है कि उन यात्रियों का क्या, जिनकी जानें बिलावजह चली गयीं? ह्वया जनरथ से सफर करना उनका गुनाह था? लोगों की आमदरफ्त को रफ्तार मिले इसके लिए एक्सप्रेस वे बने हैं, पर इन मार्गों पर हादसों की रफ्तार का बढ़ते जाना चिंताजनक है। इन सडक़ों पर हादसों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है।

अकेले यमुना एक्सप्रेस वे पर बीते ढाई वर्षों में चार सौ लोगों की मौतें हुई हैं। लखनऊ —आगरा एक्सप्रेस वे की बात करें तो वर्ष 2018 में 143 हादसे हुए, जिनमें 137 लोगों की जानें गई। इन राजमार्गों पर ऐसी दुर्घटनाओं के शिकार लोगों को चिकित्सा सुविधा देने के लिए एक भी ट्रामा सेंटर नहीं हैं। हालांकि इस बाबत सरकार विचार जरूर कर रही है। जिस तरह हादसों का सफर जारी है, जरूरी है घायलों को तत्काल प्राथमिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा दिया जाये। यह सब तो होना ही चाहिए। आखिर कब तक ऐसे हादसों पर अफसोस और फिर सरकारी मुआवजे का दंश झेलने को लोग मजबूर होते रहेंगे! सोमवार को हुए हादसे का आखिरकार जिम्मेदार कौन? परिवहन विभाग के ड्राईवर जिन परिस्थितियों में गाड़ी चलाते हैं, यह जानना भी जरूरी है।

वैसे व्यवस्थाओं या नियमों की बात हो तो परिवहन निगम आपको एक लंबी—चौड़ी सूची थमा देगा। मसलन गाड़ी संचालन के नियम हों या फिर चालक की ट्रेनिंग अथवा ड्यूटी के घंटे तक सब कुछ लिखा—पढ़ी में है पर उसका अनुपालन कि तना होता है, यह समझने के लिए ड्राइवरों की परिस्थिति जानना बेहद जरूरी है। मोटर ट्रांसपोर्ट वर्क्स एक्ट के मुताबिक साढ़े सात घंटे का संचालन दो चरण में होना चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि साढ़े तीन घंटे बाद चालक को कुछ देर का ब्रेक मिलना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं। ड्राइवर लगातार ड्यूटी करता है, जो हादसे का कारण बनता है। सोमवार को तडक़े ड्राइवर को झपकी आने का साफ मतलब है कि उसे आराम नहीं मिला होगा। परिवहन निगम की बसों के संचालन के लिए साढ़े तीन सौ किमी. प्रतिदिन चलने का नियम है।

लेकिन रुपये कमाने के फेर में कुछ संविदा चालकों को तो पहुंच के बल पर खूब ड्यूटी मिलती है और कुछ ड्यूटी पाने को तरसते रहते हैं। यही वजह है कि कई थके ड्राइवरों को गाड़ी की बार—बार कमान सौंपी जाती है। एक विरोधाभास यह भी है कि एक ड्राइवर के कंधे पर यात्रियों की जिंदगी का जिम्मा होता है पर उनकी सेहत के लिए स्थायी तौर पर स्वास्थ्य कैंप तक नहीं लगते। कई बार कुछ ड्राइवरों की नजर कमजोर होने की शिकायतें भी सामने आती हैं। सरकार के निर्देश पर इस भीषण हादसे के जांच के लिए समिति गठित हो गयी है, जो उन स्थितियों को समझने क प्रयास करेगी जिसकी वहह से दर्जनों यात्रियों की जानें चली गयीं। अच्छा हो, इस हादसे से सबक लेकर आगे से सुदृढ़ व्यवस्था बने और उसका सख्ती से पालन भी हो ताकि लोगों का सफर शुभ हो।

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