तू-तूम मैं-मैं कतई ठीक नहीं है कश्मीर पर

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जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन अब छह महिने और चलेगा। गृहमंत्री अमित शाह की इस घोषणा पर कश्मीरी नेताओं और विपक्ष ने नाराजी जाहिर की है। उनकी नाराजी स्वाभाविक है लेकिन अमित शाह का कहना है कि लोकसभा के चुनावों के साथ-साथ दो माह पहले कश्मीर में विधानसभा के चुनाव इसीलिए नहीं करवाए जा सकते थे कि विधानसभा के सदस्यों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। विपक्ष ने एक तर्क और भी दिया है। उसका कहना है कि यदि गृहमंत्री मानते हैं कि कश्मीर में हालात सुधर रहे हैं तो फिर वे चुनाव कराने से क्यों डर रहे हैं ?

सरकार का दावा है कि आतंकवादियों का खात्मा इतनी तेजी से हो रहा है कि अब कश्मीर के अपने आतंकवादी 8-10 भी नहीं बचे हैं लेकिन अब भी लगभग 200 आतंकवादी सक्रिय हैं, जो सीमा-पार से आए हुए हैं। अमित शाह ने अमरनाथ-यात्रा के मौके पर कड़ी सुरक्षा का इंतजाम तो किया ही है, उन्होंने पुलिस और फौज को यह निर्देश भी दिया है कि वे आतंकवादियों के परिजन से संवाद कायम करें और नौजवानों को गुमराह होने से बचाएं।

उन्होंने उनसे यह आग्रह भी किया कि जिन सिपाहियों की आतंक से लड़ते हुए शहादत होती है, उनके सगे-संबंधियों से भी विशेष संबंध कायम किए जाएं। जैसे कि वे स्वयं 12 जून को अनंतनाग में शहीद होने वाले पुलिस इंस्पेक्टर अर्शद खान के घर गए। शाह ने ऐसा संकेत भी दिया है कि अभी अलगाववादियों से संवाद चलाने की स्थिति पैदा नहीं हुई है। सच्चाई तो यह है कि ज्यादातर अलगाववादी नेताओं के खिलाफ तरह-तरह की जांचे चल रही हैं, जिनके कारण वे घबराए हुए हैं।

उधर पाकिस्तान में बढ़ते हुए आर्थिक संकट ने भी अलगाववादियों के मनोबल को गिरा दिया है। सच पूछा जाए तो केंद्र की सरकार आज कश्मीर समस्या का हल निकालने जैसी उत्तम स्थिति में है, वैसी वह पहले कभी शायद ही रही है। ऐसे नाजुक वक्त में भाजपा और कांग्रेस कश्मीर को लेकर एक-दूसरे पर छींटाकशी करें, यह उनकी राजनीति के तो हित में हो सकता है लेकिन यह राष्ट्रहित में नहीं है।

इस समय कश्मीर के बारे में देश की सभी पार्टियों का एक स्वर होना चाहिए ताकि जो भी हल निकले, उसे कश्मीरी जनता तहे-दिल से स्वीकार करे। यहां हमें पीवी नरसिंहरावजी और अटलजी के कथन याद रखने चाहिए। अटलजी ने कहा था कि कश्मीर समस्या इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के दायरे में हल होनी चाहिए और राव साहब ने कहा था कि जहां तक कश्मीरियों की स्वायत्तता का सवाल है, उसकी सीमा आकाश तक है।

डॉ. वेदप्रपात वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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