कनाडा के क्यूबेक प्रांत में एक कमाल का कानून पास हुआ है। इसके मुताबिक वहां का कोई भी सरकारी नागरिक अब अपना धार्मिक चिन्ह सार्वजनिक रुप से धारण नहीं कर सकता याने ईसाई लोग अपने गले में क्रास नहीं लटका सकते, मुसलमान गोल टोपी और हिजाब नहीं लगा सकते, सिख लोग पगड़ी नहीं पहन सकते। हिंदुओं के लिए भी शायद चोटी और जनेऊ वगैरह रखने या तिलक और बिंदी लगाने पर पाबंदी हो जाए।
यह कानून सब लोगों पर लागू नहीं होगा। यह सिर्फ सरकारी कर्मचारियों पर लागू होगा। क्यूबेक की प्रांतीय संसद ने इसे 35 के मुकाबले 75 सांसदों की सहमति से पारित किया है। इस कानून की निंदा कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो ने भी की है। इस कानून का विरोध सरकारी कर्मचारियों के अलावा स्कूल-कालेजों के अध्यापक, न्यायाधीश, पुलिस अफसर, सांसद आदि सभी कर रहे हैं, क्योंकि यह उन पर भी लागू होगा।
प्रवासी भारतीयों के कई संगठन भी इसके विरोध में उतर आए हैं। लेकिन क्यूबेक के प्रधानमंत्री अपनेवाली पर अड़े हुए हैं। वे कहते हैं कि धर्म-निरपेक्षता का आखिर मतलब क्या है? यदि हमारी सरकार सेक्यूलर है, धर्म-निरपेक्ष है तो वह वैसी दिखनी भी चाहिए या नहीं ? उनकी भावना तो ठीक है लेकिन क्या सिर्फ ऊपरी चिन्ह हटा देने से कोई अपना दिमागी रुझान भी हटा देता है, क्या ? इस तर्क का क्या जवाब है ?
कभी-कभी इसका उल्टा भी होता है। जो सांप्रदायिक चिन्हों का प्रदर्शन करते हैं, वे भयंकर रुप से संकीर्ण होते हैं। इसके अलावा पगड़ी, टोपी, क्रास, तिलक, तलवार, चोटी-जनेऊ वगैरह किसी भी धर्म के अनिवार्य या मूल सिद्धांत नहीं होते। ये तो बाहरी प्रतीक हैं लेकिन धर्मों के क्यों, विभिन्न भाषाभाषियों, विभिन्न देशों, विभिन्न जातियों, विभिन्न वर्गों के भी अपने बाहरी प्रतीक होते हैं। यदि आप धार्मिक प्रतीक को हटा रहे हैं तो इन सब अन्य प्रतीकों का क्या होगा ?
यदि क्यूबेक में कोई तमिल बोलेगा और लुंगी पहनेगा या हिंदी बोलेगा और धोती पहनेगा तो उस पर भी सरकार को आपत्ति होगी। लोग अपनी चमड़ी का रंग कैसे बदलेंगे? क्यूबेक के सारे नागरिक अपने नाम क्या फ्रांसीसी या अंग्रेजी में रखेंगे? क्या सारे प्रवासी भारतीयों, चीनियों और पाकिस्तानियों को अपने नाम भी बदलने होंगे? यह भी अलगाव या अलग पहचान का मामला बन जाएगा। यह सवाल अनंत आयामी है। इसका समाधान यही है कि सब अपने खाने-पीने, पहनने, दिखने- दिखाने में स्वतंत्र और स्वायत्त रहें लेकिन दूसरों के प्रति सदभाव रखें और सहिष्णु रहें।
डॉ. वेदप्रकाश वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं,ये उनके निजी विचार हैं…