क्या जात देखकर इलाज हुआ करेगा!

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पूरे देश के डॉक्टरों ने सोमवार को हड़ताल की। भला किस चिंगारी पर? कोलकाता के अस्पताल में हिंदू डॉक्टर और मुसलमान मरीज के झगड़े की चिंगारी में। कोलकाता के एक अस्पताल में 75 साल के एक बूढ़े मुसलमान ने दम तोड़ा। मरीज के परिवारजनों को डॉक्टर की लापरवाही लगी। परिवारजनों और डॉक्टरों में तू-तू, मैं-मैं व हाथापाई हुई। एक डॉक्टर बुरी तरह घायल हुआ। डॉक्टरों ने हड़ताल की। भाजपा कूद पड़ी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा ममता सरकार गुंड़ों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है क्योंकि वे उनके वोट बैंक (मुसलमान) हैं। ममता का जवाब था – बीजेपी मामले को सांप्रदायिक रंग दे रही है। गृह मंत्री हैं …..अमित शाह जो पार्टी काडर को सांप्रदायिक रंग देने के लिए उकसा रहे हैं और फेसबुक पर प्रोपेगेंडा चल रहा है। डॉक्टरों की हड़ताल साजिश है। कैसे मरीज को हिंदू या मुस्लिम में बांट सकते हैं? वे डॉक्टरों को उकसा रहे हैं कि मुसलमान मरीजों को नहीं देखें, उन्हें केवल बीजेपी (हिंदू) मरीजों को देखना चाहिए। मैं डॉक्टरों के आंदोलन की भर्त्सना करती हूं। जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल साजिश है।

इसके बाद पश्चिम बंगाल के भाजपा नेता मुकुल रॉय हों या भद्र बांग्लाभाजपाई बौद्विकता वाले स्वप्न दासगुप्ता सबके बयान या ट्विट देश, दुनिया को यह जानकारी देने वाले थे कि कोलकाता अस्पताल का जूनियर डॉक्टर परीबाह मुखर्जी मौत से जूझ रहा है। उसे उन कुछ लोगों के ग्रुप ने मारा जो वोट बैंक (मुस्लिम) की राजनीति से लाड़ले (ममता बनर्जी के) बने हुए हैं। इसी के चलते पश्चिम बंगाल अराजकता की और बढ़ रहा है।

मतलब हिंदू बनाम मुसलमान का झगड़ा और मुसलमानों ने डॉक्टर को पीट दिया लेकिन ममता मुसलमानों की तरफदार हैं इसलिए डॉक्टरों की हड़ताल!बंगाल के घर-घर इस तरह चर्चा हुई। और एक दिन अखिल भारतीय चिकित्सा संगठन याकि आईएमए ने भी बंगाल में हिंदू डॉक्टर बनाम मुस्लिम मरीज की लड़ाई में अपने को ला खड़ा किया। जो डॉक्टरी के पेशे की मेडिकल राजनीति को जानते हैं उन्हें पता है कि यह संगठन गुजरात के केतन देसाई के कैसे असर में रहा है और केतन देसाई क्या काम करते रहे हैं। जाहिर है कि कोलकाता के एपिसेंटर से उपजे मेडिकल संकट में मरीज मुसलमान यदि ममता बनर्जी का सरंक्षण पाए हुए हैं तो हिंदू डॉक्टरों को भाजपा, नरेंद्र मोदी-अमित शाह-देसाई का यह सरंक्षण प्राप्त है कि तुम संर्घष करो हम तुम्हारे पीछे हैं।

तथ्य है किडॉक्टर पहले भी मरीज के परिवारजनों के गुस्से में पीटते रहे हैं। चिकित्सा का ज्यों-ज्यों व्यवसायीकरण हो रहा है त्यों-त्यों डॉक्टरों का महंगा और लापरवाह इलाज जनता में संदेह, अविश्वास और गुस्सा बढ़ाता जा रहा है। यदि ऐसे ही चिकित्सा व्यवस्था में अराजकता बनती गई तो आने वाले सालों में सवा सौ करोड़ नागरिकों में जब विस्फोट होगा तो संभाले नहीं संभलेगा। सवाल है क्या डॉक्टरों की सोमवार की अखिल भारतीय हड़ताल पर केंद्र या राज्य सरकार ऐसा कानून या ऐसी व्यवस्था बनवा सकती है कि जो मरीज अस्पताल में भर्ती हो गया तो उसके बाद उसे और उसके परिवारजनों का हक नहीं है। वह इलाज में जीये या मरे, उसके लिए डॉक्टर या अस्पताल न जिम्मेवार है और न जवाबदेह!

तभी सवाल है कि डॉक्टरों ने किस बात के लिए हड़ताल की? क्या अपने को जवाबदेही से मुक्त बनाने के लिए? या कोलकत्ता के अस्पताल के कानून-व्यवस्था के मसले पर या मुस्लिम मरीज बनाम हिंदू डॉक्टर की लड़ाई को देशव्यापी प्रचारित करवाने के लिए? अपना मानना है कि कोलकाता के अस्पताल में जो हुआ वह सौ टका लोकल कानून-व्यवस्था का झगड़ा था। वह हिंदू डॉक्टर बनाम मुस्लिम मरीज और तृणमूल बनाम भाजपा या सांप्रदायिक राजनीति का मुद्दा बना तो वह ममता और भाजपा नेताओं की गलती के चलते है। उस पर देश भर के डॉक्टरों का आंदोलन फिर चिकित्सा के पेशे का भी सांप्रदायिककरण है। क्या पता है कि उर्दू मीडिया और नैरेटिव की इस आंदोलन में किस तरह चर्चा हुई है?कोलकाता और बंगाल के अस्पताल में अब मुस्लिम मरीज या हिंदू डॉक्टर का जब एक दूसरे से पाला पड़ेगा तो दोनों का एक -दूसरे के प्रति क्या भाव बना होगा?

निःसंदेह कोलकाता और बंगाल का मुसलमान ममता बनर्जी के राज से न केवल अपने को सुरक्षित पाता है, बल्कि उसने बीस रुपए की अपनी नमाजी टोपी को मनमानी और कानून को ठेंगा बताने का लाइसेंस भी माना हुआ है। मुसलमान की दिक्कत है कि वह अपने इलाके में, अपनी बहुसंख्या वाले बाड़ों में अपनी पर उतरा रहता है। उसकी इस अति ने ही पश्चिम बंगाल में हिंदुओं का भाजपा की और रूझान बनवाया है। कोलकाता में ट्रैफिक सिपाही दाढ़ी या नमाजी टोपी पहने मुसलमान का ट्रैफिक उल्लंघन अनदेखा करता है तोउल्लंघन यदि हिंदू करता मिलेगा तो वह चालान में हिचकता नहीं है, ऐसी बातों से ही ममता के राज में मुसलमानों के सिर पर बैठे होने की धारणा है। तभी अस्पताल में मुसलमान मरीज के परिवारजनों ने दादागिरी की। हिंदू डॉक्टर की पिटाई की।

लेकिन मरीज और डॉक्टर के बीच कहासुनी-पिटाई की घटनाएं होती रही हैं सरकार को, मुख्यमंत्री को इस पर तुरंत जांच बैठा कानून-व्यवस्था के झगड़े में मामले को सुलझाना चाहिए था। लेकिन ममता ने तुरंत इमरजेंसी सेवा बहाल कराने की जबरदस्ती, दोषी मुसलमानों के प्रति पुलिस की ढिलाई और भाजपा नेताओं के हिंदू-मुस्लिम की वोट राजनीति का हल्ला बनानाइस बात को बंगाल में आग की तरह बात फैला गया कि हिंदू डॉक्टर ने मुस्लिम मरीज को मरने दियाया मुसलमानों ने हिंदू डॉक्टर की पिटाई कर उसका जबड़ा तोड़ डाला।

वह विषैलाहल्ला अखिल भारतीय स्तर पर डॉक्टरों की अखिल भारतीय हड़ताल से फैला। जाहिर है चुनाव जीतने के बाद भी भाजपा बंगाल में संतुष्ट-शांत हो कर बैठी नहीं है। बंगाल को हिंदू बनाम मुस्लिम का मैदान बनाना ही है। बंगाल में तृणमूल, लेफ्ट और कांग्रेस सदमे में सो रहे होंगे लेकिन भाजपा मिशन में कायम है। तभी अस्पताल भी बना है हिंदू बनाम मुस्लिम का अखाड़ा। सो, राजनीति कुछ और पक गई। साथ ही लोगों के जहन में पका होगा कि इलाज कराएं या करें तो पहले सोचें कि सामने हिंदू है या मुसलमान? और इससे फिर आगे……?

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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